जनता का मन जीता तो जीत पक्की थी.
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नक्सलियों के भारी विरोध को जनता ने किया चुनाव में दर-किनार
लगातार तीसरी बार जीती भाजपा।
भाजपा को कल्याणकारी योजनाओं का मिला लाभ।
शहरी क्षेत्र ने बनाया जीत का आधार।
धरे रह गए केन्द्र के झुलावे-फ र्जीवाड़े।
कांग्रेस के दावों को जनता ने नकारा।
प्रदेश के सभी परिवारों तरक मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का श्रेय।
कांग्रेस की गुटबाजी बनी विधानसभा चुनाव में हार का कारण।
अजित जोगी के क्षेत्र में भी मिली कांग्रेस को हार।
पिछले दिनों सम्पन्न चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में देश को मोटे तौर पर यही सन्देश गया है कि जोड़-तोड़, साजिश और भावनात्मक मुद्दों पर की जाने वाली राजनीति अब नहीं चलेगी,अब ठोस काम करने वाले दल ही जनादेश प्राप्त करेंगे, उन्हें ही जनता की सेवा करने का मौका मिलेगा। छत्तीसगढ़ में अगर सीटों की बात करें तो निश्चित ही लगभग पिछले दो चुनावों की तरह ही इस बार भी भाजपा को वही जनादेश मिला है। पिछले तीन चुनावों से लोकसभा और विधानसभा की सीटें कांग्रेस और भाजपा, दोनों मुख्य दलों के लिए लगभग एक जितनी ही रही हैं। लेकिन जब आप मत प्रतिशत देखेंगे तो लगेगा कि मामला इतना आसान भी नहीं है।
छत्तीसगढ़ में राहें इतनी आसान नहीं थीं। जबरदस्त मतदान के बाद कांग्रेस और भाजपा के मतों का अंतर 75 प्रतिशत का होना यह साबित करता है कि यहां इतने सारे विकास कायोंर् के बावजूद भी स्थानीय प्रत्याशियों का जनता से व्यक्तिगत संबंध ही महत्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ शासन के पांच मंत्री बुरी तरह हारे। इसी तरह भाजपा द्वारा 13 विधायकों के टिकट काटे जाने के बावजूद 21 विधायक हार गए। यानी भाजपा के 49 विधायकों में से मात्र 15 ही दुबारा विधानसभा की देहरी तक पहुंच पाए हैं। इसका अर्थ यही है कि आपकी विचारधारा, आपके कार्य, ढेर सारी नवीन और काल्पनिक योजनाएं, सफल और सशक्त नेतृत्व के अलावा जरूरत इस बात की है कि जन-प्रतिनिधियों की जनता तक सीधी पहुंच हो। इतिहास की दृष्टि से ही विहंगावलोकन करें तो यही कह सकते हैं अब छल-प्रपंच और साजिशों का जमाना गया। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की हार का आंकड़ा यही रहा है। उसके भी 38 में से 27 विधायक हार गए और एक की टिकट भी काटी गयी थी। कैबिनेट मंत्री के समकक्ष माने जाने वाले विपक्ष के नेता समेत तमाम कद्दावरों का चुनाव हारना यही साबित करता है कि न केवल कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व बल्कि प्रदेश संगठन भी जनता का भरोसा खो चुका है। उनके जनप्रतिनिधियों का शर्मनाक प्रदर्शन इस बात के प्रमाण है। लेकिन अभी भी कांग्रेस के मत का प्रतिशत छत्तीसगढ में 40 तक है। यहां तक कि जिस नक्सल हमले में कांग्रेस के 30 नेता शहीद हुए हों उस पर भी वोट की राजनीति कर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में भी अपनी कब्र ही खोदी है। जिस तरह जन-सरोकारों से जुड़े हर मुद्दे पर केन्द्र से लेकर कोंटा तक भद्दी राजनीति की गयी है उसका परिणाम तो यही निकलना था। लेकिन समग्रता से देखें तो छत्तीसगढ़ के इस परिणाम ने माओवाद पर लोकतंत्र की जीत के पक्ष में भी एक बार फिर जनादेश दिया। बस्तर का एक धुर नक्सल प्रभावित पहुंच विहीन गांव जहां नक्सलियों ने स्याही लगी अंगुलियों को काट डालने की धमकी दी थी। उसके अलावा पर्चे आदि बांट कर मतदान से दूर रहने की हिदायत या फिर अंजाम भुगतने की धमकी भी बस्तर के वनवासी बंधुओं को मिली। लेकिन बावजूद उसके लोगों में कोई डर देखने को नहीं मिला। बस्तर में 80 प्रतिशत तक मतदान हुआ। चप्पे-चप्पे पर चुनाव आयोग समेत देश-विदेश के मीडिया के कैमरों की नजर रहती है। हथियारबंद गुरिल्लाओं के मुंह पर निहत्थे युवकांे का यह तमाचा ऐसा था जिसकी गूंज सदियों तक सुनाई देगी । इसके अलावा यह मतदान उन मुट्ठी भर आततायी सफेदपोशों को भी मुंहतोड़ जबाब देने वाला है,जिन्हें दरभा हमला अनुशासित हिंसा लगता है। झीरम दुष्कृत्य जिन्हें जनता का प्रतिशोध नजर आता है। खुर्दबीन लेकर खड़ी देशी-विदेशी मीडिया को कहीं भी कोई धांधली की शिकायत भी नहीं मिलती। समस्या कहीं से भी छत्तीसगढ़ के बाहर से आये मुट्ठी भर आतंकी नहीं हैं। समस्या हैं तो चंद भाड़े के हत्यारे। बहरहाल अब भाजपा पर यह जिम्मेदारी है कि वह लोकतंत्र पर भरोसे की इस जीत को कायम रखने में अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वहन करे। यह जनादेश यह विजय, विश्राम के लिए नहीं बल्कि जनता से किये वादे को पूरे करने में जुट जाने का समय है। प्रदेश के 48 लाख परिवारों को नाम मात्र की कीमत पर चावल देकर, उन्हें मुफ्त नमक, प्रदेश के सभी परिवारों तक मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा आदि पहंुचाने के बाद अब अगला कदम प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की ओर होना देना चाहिए। उसके अलावा प्रदेश के सभी संसाधनों का पहला लाभार्थी यहां के माटी पुत्र हों, इसे ध्यान में रख कर काम करने की जरूरत होगी। प्रदेश में लगने वाले सभी उद्योगों में रोजी-रोजगार लायक प्रदेश का मानव संसाधन तैयार हो इस हेतु काम किये जाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। निश्चित ही प्राथमिक आवश्यकता लोगों को भोजन का अधिकार देने की थी जिस पर खरा उतरने का ही पुरस्कार भाजपा को दो बार मिला है।
कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी बात करना जनता को नागवार गुजरना ही था। जनता को इसके अलावा प्रदेश में विधानसभा क्षेत्र कम होने के बावजूद विधि-विरुद्घ, विधान परिषद का वादा करने समेत ऐसे ढेर सारे वादे किये गए जिसे पूरा करना किसी राज्य के अधिकार क्षेत्र की बात ही नहीं थी। डा़ रमन सिंह के पिछले दो कार्यकाल इस बात की गवाही देते प्रतीत होते हैंै कि न केवल भाजपा ने घोषणा पत्रों में किये गए वादों का शत-प्रतिशत क्रियान्वयन किया बल्कि उससे आगे जा कर भी राशन वितरण प्रणाली, लैपटाप-टैबलेट वितरण, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि कई नयी योजनायें लागू कीं, जिसने प्रदेश का चहेरा बदल दिया। भाजपा के पक्ष में छत्तीसगढ़ का तीसरा जनादेश यही सन्देश देता है की सभी प्रदेशवासी अपनी सरकार के साथ कदमताल कर स्थायी विकास में जुट जाएं। पंकज कुमार झा
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