सावधानी से प्रयोग हों महिला हित में बने कानून
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सावधानी से प्रयोग हों महिला हित में बने कानून

by
Dec 7, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Dec 2013 16:32:03

हर राष्ट्रभक्त, सामाजिक चेतना युक्त और भारतीय संस्कृति को समझने वाला नागरिक इस समय एकदम हताश है, परेशान है क्योंकि जिस देश का मूलमंत्र मातृवत् परदारेषु है अर्थात हर स्त्री मां है और जिस देश में कन्या पूजन हमारी संस्कृति की पहचान है उस देश में जिधर से भी सुनो यौन अपराधों के समाचार आ रहे हैं। अपने देश में आदर्श भगवान श्रीरामचंद्र जी और राम राज्य है। श्रीरामचंद्र जी ने तो यहां तक कह दिया था कि जो किसी भी स्त्री की ओर कुदृष्टि करता है उसका वध कर देना भी बुरा नहीं। वास्तविकता यह रही कि जब राजा आदर्श समाज और राज्य के लिए स्वयं उदाहरण बनते हैं तब देश में कहीं भी दुराचार, अनाचार नहीं होता। स्वामी दयानंद जी तो पांच वर्षीय बालिका को भी देखकर मां कहकर प्रणाम करते थे। उनका यही आदर्श भारतीयों का भी प्रेरणास्रोत बना और स्वामी दयानंद जी प्रेरक।
निर्णय यह लेना होगा कि आज के इस वातावरण के लिए कौन दोषी  है। नवजात बालिका से लेकर जिंदगी के सौ वर्ष पूरे करने जा रही महिला भी वासना के दरिंदों का शिकार हो जाती है। देश के शासक यह समझते होंगे कि दिसंबर 2012 की दिल्ली में घटित भयावह घटना के बाद जब देश में बहुत सशक्त आवाज उठी, संसद भी हिली, कानूनों में संशोधन होकर कठोरतम कानून बनाए गए, न्यायालयों द्वारा फांसी की सजा भी घोषित हो गई, उसके बाद संभवत: महिलाओं के विरुद्घ बलात्कार जैसे घृणित अपराध कम हो जाएंगे। लेकिन कठोर सच्चाई यह है कि अपराधों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, देश का कोई प्रांत, कोई वर्ग इस अपराध से अछूता नहीं।
धार्मिक जगत में भी कोई न कोई छद्म वेशी धार्मिक पुरुष इस अपराध में घिरा दिखाई दे जाता है। राजनीति के गलियारों में नाम कमाने वाले कुछ राजनेता भी इसी दलदल में फंसे दिखाई दे जाते हैं। पुलिस की वर्दी पहनकर कानून की रक्षा का  दम भरने वाले कुछ लोग भी महिलाओं के प्रति अपराध करने में पीछे नहीं रहते। पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े एक-दो बड़े नाम भी अब इसी दलदल में लिप्त दिखाई दे रहे हैं। प्रश्न यह है कि क्या वासना के अंधे कु ंए में गिरते समय अपराधी को यह दिखाई ही नहीं देता कि उसका एक भटका हुआ कदम बहुत से जीवन तबाह कर सकता है और वह स्वयं भी सींखचों के पीछे सदा के लिए बंद हो जाएगा? आज तक हमारे बुद्घिजीवी, कानूनविद्, मनोरोग विशेषज्ञ यह तय नहीं कर पाए कि किस मानसिकता में ग्रसित व्यक्ति यह अपराध करता है।
पर इस प्रश्न का एक पक्ष दूसरा भी है। क्या यह सच नहीं कि जब कहीं से देह व्यापार के अवैध कारोबार को पकड़ा जाता है तो बहुत सी महिलाएं भी उस धंधे में संलिप्त पाई जाती हैं अर्थात महिलाएं स्वेच्छा से इस धंधे को चलाती हैं और दूसरी अबोध अथवा बालिग लड़कियों को देह व्यापार के काले काम में धकेलती हैं या उनमें से कुछ   स्वयं धन के मोह में भटक कर इन अंधेरी गलियों में पहुंच जाती हैं। 
समाचार पत्रों में ऐसे समाचार यदा-कदा मिलते रहते हैं कि एक महिला को किसी ने विदेश ले जाने का आश्वासन अथवा अखबारी भाषा में झांसा कहें और वह अपनी इच्छा से ही उस पुरुष के साथ दीर्घकाल तक शारीरिक संबंध बनाकर रहती है और जब कोई झगड़ा हो गया अथवा विदेश पहुंचने का अवसर न मिला तब पुलिस का दरवाजा खटखटाकर कानून की मदद लेने पहुंच गई। यह भी प्रतिदिन सुनने को मिलता है कि शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए। नौकरी दिलाने का भी लेकर भी शारीरिक शोषण की बात कही जाती है। अगर तो बालिका अबोध है, आयु में बहुत छोटी है, उसके साथ कोई यौन अपराध होता है तब तो पुरुष अपराधी है ही, पर जहां कुछ बालिग लड़कियां माता-पिता से विद्रोह करके अपनी इच्छा से शादी के नाम पर किसी भी युवक के साथ घर से भागकर प्रत्यक्षत: पति-पत्नी जैसा जीवनयापन करती हैं और जैसे ही अपने हित पूरे न हुए तो कानून की मदद के लिए सार्वजनिक रूप से गुहार लगाती हैं तब अगर पुरुष अपराधी है तो बालिग महिला भी बराबर की दोषी है। दंड दोनों को बराबर क्यों न दिया जाए?
वैसे भी वषोंर् पुरानी शारीरिक संबंधों की घटना को आधार बनाकर जब कोई शिकायती बनती है तो प्रश्न उठता है कि वषोंर् तक चुप  क्यों रहीं और ऐसा कौन सा उसका निजी हित था जिसके लालच में मुंह बंद रखने वाली युवती अथवा महिला वषोंर् बाद चिल्ला-चिल्लाकर न्याय के लिए गुहार लगाती है। कई बार ऐसा लगता है कि जान-बूझ कर यौन संबंध बना चुकी महिलाएं अपनी तथाकथित छवि सुधारने के लिए, समाज की सहानुभूति पाने के लिए अथवा सरकार द्वारा अब दिए जा रहे आर्थिक लाभ पर नजर रखती हुई न्याय के लिए पुकार करती हैं। वासना के जो दरिंदे अबोध बालिकाओं को उठाते, उनके शरीरों को नोंचते और फिर लाश बना देते हैं उनको तो कठोरतम दंड मिलना ही चाहिए, पर सहमति से बनाए संबंधों में यह नियम लागू होना अन्याय हो जाएगा।
टीवी चैनलों पर चर्चा करना बहुत आसान है, पर धरातल पर आज क्या स्थिति है इसका सही आकलन उनको नहीं है जो केवल चर्चा करते हैं। सरकारी, निजी कार्यालयों में जो महिलाएं काम कर रही हैं उनके पुरुष अधिकारियों और सहकारियों में एक अजीब प्रकार का भय व्याप्त हो गया है। लगभग हर अधिकारी अब अपने निजी स्टाफ में से महिलाओं को दूर रखना चाह रहा है। कुछ प्रमुख और वरिष्ठ अधिकारियों से निजी भेंट में मैंने जब उनका विचार जानना चाहा तो वे स्वयं को बेबस महसूस कर रहे थे। कहीं-कहीं तो यह व्यवस्था कर दी गई है कि जब भी कोई महिला कर्मचारी उनके कक्ष में किसी भी कार्य के लिए आए तब वहां दूसरा कोई विश्वसनीय कर्मचारी उपस्थित रहे। संभवत: हर समय एक साक्षी साथ रखने की मानसिकता अब कार्यालयों में हो गई है। कहीं-कहीं तो समय पर ड्यूटी पर न आने वाली, कुशलता से कार्य न करनी वाली महिला कर्मचारियों से भी अब अफसर तथा सहकारी भयभीत हो रहे हैं। उनका कथन यही है कि कोई महिला झूठा आरोप भी लगा देगी तो पुरुष की सुनने वाला कोई नहीं। महिलाओं के विरुद्घ अपराधों की जांच करने के लिए जो भी अधिकारी तय किया जाए उनसे यह आशा रखी जानी चाहिए कि वे एक पक्षीय कोई भी निर्णय नहीं लेंगे, धन-बल और रिश्वत बल के प्रभाव से मुक्त रहेंगे तथा किसी भी वर्ग के लिए पूर्व आग्रह मन में नहीं रखेंगे।
 इसलिए आज की आवश्यकता यह है कि पहले तो देश के गणमान्य लोग स्वयं प्रेरक आदर्श बनकर नई पीढ़ी के समक्ष उपस्थित हों। शिक्षा के क्षेत्र में सात्विकता और संस्कृ ति का पाठ पढ़ाया जाए तथा अवैध संबंध बनाने के अपराध के लिए स्त्री और पुरुष दोनों को समान दंड दिया जाए। पर इस व्यवस्था का दुरुपयोग कोई न कर पाए, यह भी देखना देश और समाज के कर्णधारों का दायित्व है।

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