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आवरण कथा ह्यविलासिता नहीं, आवश्यकता है मंगल अभियानह्ण काफी अच्छी लगी। भारत के लिए एक गौरव की बात है कि उसने यह साहस किया। मानव और समाज की समस्याओं के हल खोजने के क्रम में यह एक बड़ी उपलब्धि साबित होगी।
-सन्तोष कुमार
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110075
० भारत ने मंगल अभियान प्रारम्भ कर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। हमें अपने वैज्ञानिकों को बधाई देनी चाहिए कि जिस प्रकार इन लोगों ने बहुत ही कम खर्च और कम समय में यह काम करके दिखाया है वह पूरी दुनिया को हतप्रभ करता है। आज हम विश्व की महाशक्तियों के बीच में खडे़ हुए हैं।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.़प्ऱ)
० कुछ लोग मंगल अभियान की आलोचना कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है क्योंकि यह अभियान भविष्य में हमारे देश के लिए उत्तम और लाभकारी सिद्घ होगा। इस अभियान पर कुल 450 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं जो कि दिल्ली में बनने वाले किसी एक ह्यफ्लाईओवरह्ण की लागत से भी कम है। इसलिए यह आने वाले दिनोंे में देश के लिए काफी महत्वपूर्ण और उपयोगी साबित होगा।
-शक्ति कुमार मिश्र
ग्रा.व पो.-बावन, जिला-हरदोई (उ.़प्ऱ)
० भारत जिस प्रकार दिन-प्रतिदिन अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए-नए कार्यक्रम कर रहा है उससे भारत की छवि व सम्मान दुनिया में बढ़ता ही जा रहा है। सभी की आंखें भारत पर टिकी हुई हंै। पूरे विश्व ने इस अभियान के लिए भारत की जमकर प्रंशसा की है।
-प्ंाकज कुमार
तिरुपति खंड,गोमतीनगर,लखनऊ (उ.प्र.)
महंगाई की मार
आज महंगाई आम जनता को रूला रही है। सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। लोग महंगाई की मार से बेचैन हैं, लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है और तो और सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल चिढ़ाते हुए आमजनमानस को कम सब्जी खाने की सलाह दे रहे हैं। इससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस सरकार देश के आम लोगों की कितनी चिन्ता करती है।
-हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार (बिहार)
छा रहे हैं मोदी
देश में आज मोदी की लहर है । आज हम देखते हैं कि मोदी की प्रत्येक सभा में लाखों की भीड़ होती है, जबकि वहीं कांग्रेस के ह्ययुवराजह्ण राहुल गंाधी की रैली में हजार लोग भी जुटाना कांग्रेस के लिए एक बड़ी बात हो जाती है। देश में हुए विधानसभा चुनावों में इस बात की झलक प्रत्येक लोगों ने देखी है।
-कमलेश कुमार ओझा
दक्षिणपुरी, नई दिल्ली
पाञ्चजन्य की विशेषता
पाञ्चजन्य समाचार पत्र जिस प्रकार हिन्दूहित से जुड़े विषय उठाता है और उससे समाज में जो जागृति होती है उसकी मैं सराहना करता हूं । यही एक ऐसा पत्र है जो हिन्दुओं से जुड़े समाचारों को प्रकाशित करता है और सेकुलर मीडिया संस्थान तो हिन्दुओं से जुड़े समाचार छापते ही नहीं हैं। पाञ्चजन्य की जितनी सराहना की जाए, वह कम है।
-अनिल गोयल
500/12, थम्बल वाला बाग मुजफ्फरनगर (उ.़प्ऱ)
हिन्दू उत्पीड़न
मुजफ्फरनगर में जिस प्रकार हिन्दुओं के साथ उत्पीड़न हुआ उससे अखिलेश सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति सामने आ रही है। प्रदेश सरकार हिन्दुओं का दमन करने पर तुली हुई है। ऐसे में हिन्दुओं को एकजुट होकर इसका जबाव देना होगा। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के पाखण्डों से जनता परिचित हो चुकी है।
-मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग, प़ निमाड़ (म.़प्ऱ)
खुली पोल
गांधी मैदान पटना में हुए धमाकों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पोल खुल गई है कि वे किस प्रकार मोदी से चिढ़े हुए हैं। हुंकार रैली से भयभीत नीतीश ने मोदी की रैली की पूर्ण सुरक्षा नहीं की थी जिसके फलस्वरूप इतनी बड़ी घटना घट गई। प्रदेश सरकार अगर सावधान होती तो इतनी बड़ी घटना नहीं घटती।
-उपेन्द्रनाथ उपाध्याय
गीता मानस मन्दिर
यादवपुर रोड – गोपालगंज (बिहार)
जननायक सरदार
सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर जिस प्रकार कांग्रेस सरकार राजनीति कर रही है वह बहुत ही गलत है। सरदार पटेल भारत के लोगों के दिलों पर राज करके जननायक बने थे। लेकिन जिस प्रकार कांग्रेस पटेल जी के विषय में झूठे तथ्यों के साथ लोगों को बरगलाने का प्रयास कर रही है वह और कुछ भी नहीं एक प्रकार का षड्यंत्र है । कांग्रेस पार्टी इतिहास को कुतरने का काम कर
रही है।
-हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इन्दौर (म.़प्र.)
भारत में पाकिस्तानी क्यों?
पाकिस्तानी कलाकार हमारे यहां रह कर बखूबी रूप से अपने काम को करते हैं और लाखों रुपए कमाते हैं। वहीं दूसरी ओर जब भारत का कोई कलाकार पाकिस्तान जाता है तो वहां की सरकारें और आमजन ही उसका विरोध करने लगते हैं। इसलिए हम भारतीय अपने कलाकारों को ही पसन्द करें एवं अपने कलाकारों को ही महत्व दंे। जब पाकिस्तान हमारे कलाकारों को स्वीकारेगा तब हम भी पाकिस्तानी कलाकारों को स्वीकारने लगेंगे।
-प्रतीक गर्ग
संकल्प भवन, कमला कालोनी
शामली (उ.प्र.)
अंग्रेजी मानसिकता
पिछली दीवाली में बेंगलूरू में था। ह्यडेक्कन क्रोनिकलह्ण वहां का सर्वाधिक लोकप्रिय अंग्रेजी अखबार है। दीपावली से सम्बंधित जो मुख्य समाचार इस अखबार के मुखपृष्ठ पर था, वह दीपावली की आतिशबाजी के कारण हुए प्रदूषण से था। जनता ने कितने उत्साह से यह पर्व मनाया, क्या-क्या आयोजन किए गए थे और किन-किन लोगों ने दीपावली की शुभकामनाएं जनता को दी थीं, इसका कहीं जिक्र तक नहीं था। अखबार के अन्दर पृष्ठ 8 पर अनिल धरकर का लेख पढ़ने को मिला। शीर्षक था – ड४१ पूरा लेख गुजरात में नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची लौह प्रतिमा स्थापित करने के विरोध में था। लेखक का मानना है कि प्रतिमा की स्थापना से भारत में व्यक्ति-पूजा की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, जो कहीं से भी प्रशंसनीय नहीं है। लेखक को मुंबई के विक्टोरिया टर्मिनल और वहां के हवाई अड्डे का नाम छत्रपति शिवाजी के नाम पर रखने का भी बहुत मलाल है।
अंग्रेजी के लेखक, चाहे वे पत्रकार हों, इतिहासकार हों, उपन्यासकार हों, हीनता से हमेशा ग्रस्त रहे हैं। भारत के देसी महापुरुष, देसी संस्कृति, देसी परंपरायें और देसी रहन-सहन उनके लिये सदा ही उपहास के विषय रहे हैं। उसी श्रृंखला में वे न तो शिवाजी को मान्यता देते हैं, न सरदार पटेल को और ना ही दीपावली के त्योहार को। इनका एजेन्डा गुप्त तो है लेकिन समाज पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है। कारपोरेट घराने की मदद और कुकुरमुत्ते की तरह उग आए समाचार चैनलों के माध्यम से इन्होंने आंग्ल नववर्ष, क्रिसमस और वेलेन्टाइन डे को राष्ट्रीय त्योहार तो बना ही दिया है, अब कुदृष्टि बहुसंख्यक समुदाय के अन्दर गहरा पैठ रखने वाले उनके मुख्य त्योहारों पर है। ध्वनि और धुएं के नाम पर दीपावली को बदनाम करना, पानी के ज्यादा उपयोग पर होली को कोसना और नदियों एवं समुद्र के प्रदूषण के नाम पर गणेशोत्सव और दुर्गापूजा की आलोचना करना अंग्रेजीदां बुद्घिजीवियों का प्रमुख शगल है। इन महानुभावों को क्रिसमस और आंग्ल नववर्ष तथा शबेबारात के अवसर पर की जा रही आतिशबाजी कहीं दिखाई नहीं पड़ती। बकरीद के अवसर पर सामूहिक जीवहत्या और उसके कचड़े को मुख्य मार्ग पर फेंक देना कभी नजर नहीं आता। ये लोग दिल्ली के औरंगजेब और अकबर मार्ग पर गलती से भी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन विक्टोरिया टर्मिनल को छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के नामकरण पर सैकड़ों लेख लिख डालेंगे। ये लोग आज भी अंग्रेजों के शासन-काल को बेहतर मानते हैं। ये लोग नेहरू, इन्दिरा, राजीव, सोनिया और राहुल को इसलिये पसन्द करते हैं कि ये सभी आपस में अंग्रेजी में ही बात करते थे, करते हैं और करते रहेंगे। अंग्रेजी मीडिया इन्हें अंग्रेजों का वास्तविक उत्तराधिकारी मानती है। अंग्रेजी की प्रख्यात लेखिका एवं पत्रकार तवलीन सिंह ने अपनी पुस्तक ह्यदरबारह्ण में इस मानसिकता का विस्तार से वर्णन किया है। हालांकि उन्होंने इस मानसिकता के विरोध में एक हल्की आवाज उठाई है परन्तु वे स्वयं इस मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त दिखती हैं। अंग्रेजी बोलने वाले जिस कुलीन वर्ग का उन्होंने प्रशंसा के साथ वर्णन किया है उसमें पुरुषों के साथ महिलाओं के मुक्त विचरण, सार्वजनिक रूप से पार्टियों में शराब और सिगरेट का सेवन और सपना भी अंग्रेजी में देखने की आदत को अभिजात्य वर्ग की सामान्य आदतों के रूप में स्वीकार करना शामिल है। ऐसी ही पार्टियों के माध्यम से लेखिका ने सोनिया और राजीव गांधी से निकटता बढ़ाई थी, यह तथ्य उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। उनके अनुसार राजनीति में आने के पहले सोनिया पूरी तरह अंग्रेजी रंग में रंगी थीं। यहां तक कि वे खाना भी इटालियन ही पसन्द करती थीं, कपड़े के नाम पर वे फ्राक पहनती थीं और दोस्ती भी उन्हीं से करती थीं जो अंग्रेजी अंग्रेजों की तरह बोल लेते थे। अगर कोई इटालियन बोलने वाला मिल गया, तो फिर क्या कहने।
अपने देसी अन्दाज के ही कारण सरदार पटेल आजादी के पहले और बाद में भी अंग्रेजी अखबारों के लिए खलनायक से कम नहीं थे। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को इतना महिमामंडित किया कि सरदार पटेल, सुभासचन्द्र बोस, डा़ राजेन्द्र प्रसाद, वीर सावरकर तो क्या गांधीजी का भी आभामंडल फीका पड़ गया। भारत के हर कोने में, चाहे वह पूरब हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्खिन, : सड़कों, मुहल्लों, स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों, चौराहों, अस्पतालों, हवाई अड्डों, बस स्टेशन, शोध केन्द्रों, सेतुओं, योजनाओं और भवनों के नाम नेहरू, इन्दिरा, राजीव और संजय गांधी के नाम पर ही हैं। गांधी बाबा भी इनके पीछे ही हैं। पूरे हिन्दुस्थान में इनकी न जाने कितनी मूर्तियां लगी हैं, लेकिन सरदार पटेल की नरेन्द्र मोदी द्वारा एक प्रतिमा स्थापित करने पर इन काले अंग्रेज बुद्घिजीवियों (तथाकथित) को घोर आपत्ति है। सरदार पटेल उन्हें आज भी नेहरू को चुनौती देते दीख रहे हैं। एक तो करेला, उस पर नीम चढ़ा। मोदी के बदले राहुल प्रतिमा की स्थापना करते (जो असंभव था), तो उन्हें कोई विशेष आपत्ति नहीं होती। लेकिन ठेठ देसी नरेन्द्र मोदी ऐसा कर रहे हैं, उनके अनुसार यह लोहे की बर्बादी और व्यक्तिवाद को बढ़ावा देने के निन्दनीय प्रयास के अलावा और कुछ भी नहीं है।
अंग्रेजी अखबार आजादी के पहले अंग्रेजों का गुणगान करते थे। कांग्रेस और आजादी की जोरदार आलोचना करते थे। आजादी के बाद इनकी निष्ठा नेहरू-परिवार की चेरी बनी। इन्होंने आपात काल और इन्दिरा की शान में बेइन्तहां कसीदे काढ़े। जयप्रकाश नारायण और संपूर्ण क्रान्ति को जी भरकर कोसा। न तो वे देश को आजाद होने से रोक पाए और न ही में जनता पार्टी को सत्तारूढ़ होने से डिगा सके। आज भी वे समय की नब्ज पहचान पाने में असमर्थ हैं। दूर अमरीका और इंगलैण्ड में नरेन्द्र मोदी की विजय-दुन्दुभि अभी से सुनाई पड़ने लगी है लेकिन ये देखकर भी अन्धेपन का और सुनकर भी बहरेपन का अभिनय करने को विवश हैं। ये खाते हैं दाल-रोटी और पीते हैं शैंपेन। हंसते हैं हिन्दी में, बोलते अंग्रेजी में। लार्ड मैकाले की आत्मा गदगद हो रही होगी। जो काम गोरे अंग्रेज नहीं कर पाये, वह काले अंग्रेज कर रहे हैं – उनसे भी ज्यादा निष्ठा, ईमानदारी, लगन, भक्ति और शक्ति से।
-बिपिन किशोर सिन्हा
लेन -8सी, प्लाट नं.-78
महामना पुरी विस्तार, पो.-बी.एच.यू.
वाराणसी (उ.प्र.)
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