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साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक पर बवाल मचा हुआ है। सरकार कहती है कि वह संसद के इसी सत्र में इस विधेयक को पारित करा लेगी,वहीं विपक्ष इस विधेयक का जमकर विरोध कर रहा है। भाजपा, तृणमूल कांग्रेस,अन्नाद्रमुक जहां खुलकर इस विधेयक के विरोध में बोल रही हैं,तो सपा,बसपा जैसी पार्टियां अंदरखाने इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की चिट्ठी ने तो इस विधेयक पर हो रही बहस को और धार दे दी है। सरकार कह रही है कि विपक्ष को जिन मुद्दों पर एतराज था,उन्हें विधेयक से हटा लिया गया है। इसके बाद इसका विरोध करना सिर्फ राजनीति है। लेकिन इस विधेयक को जिस हड़बड़ी में लाया जा रहा है वह भी राजनीति से प्रेरित है। भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने ठीक ही कहा है कि यह ह्यकम्युनल वोट बिल हैह्ण। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने मुजफ्फरनगर दंगों के खिलाफ एक रैली की थी। इस रैली में वक्ताओं ने कहा था कि केन्द्र सरकार जल्दी से जल्दी सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को पारित कराए,नहीं तो उसे मुसलमानों का गुस्सा झेलना पड़ेगा। इसके बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहमान खान ने सरकार पर इस विधेयक को लेकर दबाव बढ़ाया। उसी दबाव के बाद सरकार इस विधेयक को संसद में रखने की बात करने लगी। वास्तव में यह विधेयक मुसलमानों को खुश करने के लिए ही लाया जा रहा है। इसलिए इस विधेयक में हिन्दुओं को अपमानित और लांछित करने वाले अनेक प्रावधान हैं। भले ही यह सरकार कहे कि आपत्तिजनक लगने वाली सारी बातें हटा दी गई हैं, यह सही नहीं है। यदि ऐसा होता तो यह सरकार इस विधेयक को लेकर इस तरह जिद्द पर नहीं उतरती। इस विधेयक को सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने तैयार किया है। इसको तैयार करने वाली टोली में हर्ष मंदर,तीस्ता सीतलवाड,राधिका कुमार जैसे हिन्दू-विरोधी लोग शामिल हैं। इन लोगों ने इस विधेयक में चुन-चुन कर ऐसी बातों को शामिल किया है,जो हिन्दुओं को अपमानित ही नहीं करतीं,बल्कि उन्हें दोषी न होने पर भी दोषी ठहराती हैं।
यह बदलाव किए
1-बिल से समुदाय(बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक) का जिक्र हटा दिया गया है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी। यदि परिवर्तन नहीं होता तो हर दंगे के लिए बहुसंख्यक यानी हिन्दू ही जिम्मेदार होते।
2-राज्य सरकार के अनुरोध पर ही केन्द्र सरकार दंगों की रोकथाम में मदद देगी। पहले केन्द्र दंगे की स्थिति में सीधे सुरक्षा बल भेजने की बात कह रहा था। इससे राज्य सरकार के कामकाज में बेवजह विरोध उत्पन्न होता।
विरोध अब भी बना रहेगा
1-विधेयक में अधिकारियों की जवाबदेही तय की गई है। यदि वे दंगा रोकने में असफल रहे तो उन्हें दो से पांच साल की सजा भी हो सकती है। श्री मोदी का कहना है कि इससे अधिकारियों का मनोबल कमजोर पड़ेगा।
2-कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है। इस पर राज्यों को केन्द्र का कानून स्वीकार नहीं है। श्री मोदी का तर्क था कि एक मॉडल बिल तैयार कर उसका पालन करने के लिए राज्यों को निर्देश दिया जाना चाहिए था।
मुस्लिमों को संरक्षण: तोगडि़या
विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष अध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगडि़या ने भी साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक लाए जाने पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केन्द्र सरकार की आलोचना की थी।। उन्होंने कहा था कि यह बिल केवल देश में मुस्लिमों को संरक्षण देने वाला है जिससे सिर्फ हिन्दुओं को निशाना बनाया जाएगा। उन्होंने आशंका व्यक्त करते हुए कहा था कि यदि ऐसा होता है भविष्य के लिए यह असंवैधानिक विधेयक राज्य की शक्तियों को प्रभावित करने वाला होगा। उधर बिल को लेकर शिवसेना ने भी श्री मोदी का समर्थन किया है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि नरेंद्र भाई ने जो मुद्दे इस बिल पर रखे हैं, उसको शिवसेना का समर्थन है। वोट बैंक की राजनीति के लिए किसी को खुश करने के लिए इस बिल को लाने की कोशिश की जाएगी, लेकिन वे उसे लाने नहीं देंगे।
क्या है इस विधेयक में?
विधेयक का उद्देश्य है केन्द्र और राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों को साम्प्रदायिक हिंसा को निष्पक्षता के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार ानाना है।
इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमें दूसरे राज्य में स्थानान्तरित करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उटाने का भी प्रस्ताव है।
नरेन्द्र मोदी की चिट्ठी का सार
श्री मोदी ने विधेयक को राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण का प्रयास का आरोप लगाते हुए कहा था कि इस संबंध में आगे कोई कदम उठाने से पहले इस पर राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों, पुलिस और सुरक्षा एजेंसी जैसे साझेदारों से व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि प्रस्तावित कानून से लोग धार्मिक और भाषाई आधार पर और भी बंट जाएंगे। प्रस्तावित विधेयक से धार्मिक और भाषाई पहचान और भी मजबूत होगी और हिंसा की मामूली घटनाओं को भी सांप्रदायिक रंग दिया जाएगा। इस तरह विधेयक जो हासिल करना चाहता है उसका उलटा नतीजा आएगा। चिट्ठी में लिखा है कि केंद्र ऐसे कानून बनाने में व्यस्त है, जो राज्य सरकारों का मामला है। उनकी चिट्ठी पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार आम सहमति से आगे बढ़ने की बात कर रही है। उन्होंने कहा कि इस बिल पर आम सहमति बनाने के बाद ही सरकार आगे बढे़गी। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार विधेयकों को सुगमता से पारित कराना सुनिश्चित करने के लिए संसद के सभी वर्गों का सहयोग चाहती है। सुशील कुमार शिंदे ने भी कहा था कि बिल इसी सत्र में पेश होगा।
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