कहानी : सच्चा कलाकार
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कहानी : सच्चा कलाकार

by
Dec 7, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Dec 2013 17:05:56

विद्यालय में वार्षिकोत्सव का उल्लास हर तरफ बिखरा हुआ था। सभी लोग उत्सव की तैयारी में व्यस्त थे। कोई गाने का अभ्यास कर रहा था, तो कोई नाचने का। कोई पेन्टिंग की तैयारी में लगा था, तो कोई कार्यक्रम के संचालन की तैयारी में। शिक्षकों  और बच्चों दोनों में ही समान रूप से उत्साह था। शिक्षक सिखाने में व्यस्त थे तो विद्यार्थी सीखने मंे। वार्षिकोत्सव में होने वाली प्रतियोगिताओं में सम्मिलित प्रतियोगियों में जीतने की विशेष ललक थी।
उत्सव को दो दिन ही बचे थे। सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। खुशी के इस माहौल में भी अमित उदास बैठा था। स्कूल के गार्डेन में उसे अकेले बैठा देखकर उसके दोस्तों रंजन, सन्दीप, जया और ज्योतिका ने आकर घेर लिया और अमित से उसके उदास होने का कारण पूछने लगे। पहले तो अमित हंसकर टालने लगा लेकिन बात नहीं बनी। दोस्तों की जिद्द पर उसे अपने मन की बात बतानी पड़ी। अमित ने दु:खी होते हुए बताया, ह्यह्यतुम लोग तो जानते ही हो कि मैंने गाने की प्रतियोगिता के लिए नाम दिया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं जीत पाऊंगा।ह्णह्ण
ह्यह्यलेकिन ऐसा क्यों? तुम तो बहुत ही अच्छा गाते हो।ह्णह्ण जया हैरान होते हुए बोली।
ह्यह्यहां अमित, जया सच कह रही है। तुम सचमुच अच्छा गाते हो। तुम्हारा मुकाबला स्कूल में शायद ही कोई कर सके।ह्णह्ण रंजन अमित को समझाते हुए बोला।
ह्यह्यहां  मुझे भी लगता है कि मैं अच्छा गाता हुं।ह्णह्ण यह कहते हुए अमित ने सर झुका लिया।
ह्यह्यआखिर परेशानी क्या है?ह्णह्ण
सन्दीप ने जोर देकर पूछा तो अमित ने झिझकते हुए बताया ह्यह्यअसल में मैंने जिस गाने की प्रतियोगिता में नाम दिया है उसमें नीलम और प्रणव भी शामिल हैं। तुम लोग तो जानते ही हो कि प्रणव ह्यप्रिंसिपल मैडमह्ण का बेटा है और नीलम, गीता मैडम की बेटी। प्रतियोगिता की निर्णायक गीता मैडम ही हैं। तो भला मैं कैसे जीत सकूंगा? गीता मैडम अपनी बेटी को ज्यादा नम्बर देकर विजयी बना देंगी और ह्यप्रिंसिपल मैडमह्ण से उनकी गहरी मित्रता है इसलिए प्रणव भी जीत ही जायेगा।ह्णह्ण
अमित की बात सुनकर भी सभी दोस्त चुप रहे। अमित आश्चर्य में पड़ते हुए बोला ह्यह्यतुम सब चुप क्यों हो, कुछ बोलते क्यों नहीं?ह्णह्ण
परन्तु किसी ने भी उत्तर नहीं दिया अमित कुछ समझ नहीं पा रहा था। अनायास ही उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह सकपका गया। पीछे गीता मैडम खड़ी थीं और उसे गौर से देख रही थीं। ह्यह्यप्रतियोगता में दो दिन ही बचे हैं, तुम्हें अपना सारा ध्यान अभ्यास में ही लगाना चाहिए।ह्णह्ण गीता मैडम ने अमित से कहा और वहां से चली गईं।
अमित निराश हो गया। वह समझ गया कि उसे जीतने की आशा ही छोड़ देनी चाहिए क्योंकि गीता मैडम ने उसकी सारी बातें सुन ली थीं। वह बोझिल कदमों से घर की तरफ चल पड़ा जबकि उसके दोस्त पहले ही जा चुके थे। दु:खी अमित उत्सव में नहीं जाना चाहता था लेकिन वह जानता था कि जब प्रतियोगिता में उसका नाम पुकारा जाएगा और वह उपस्थित नहीं होगा तो सभी लोग उस पर हंसंेगे। उसका मजाक बनाकर कहेंगे कि अमित हार जाने के डर से नहीं आया। लेकिन वह हार जाना अच्छा समझता था डर जाने से। उसने तय किया कि वह भले ही हार जाए लेकिन प्रतियोगिता में सम्मिलित जरूर होगा। अपना प्रयास जरूर करेगा।
वार्षिकोत्सव वाले दिन प्रतियोगिता में सचमुच ही अमित ने कमाल कर दिया। उसने लाजवाब गाना गया। सभी लोगों से उसे बेहद प्रशंसा मिली। फिर भी वह खुश नहीं था। इतना अच्छा गाने के बाद भी उसे जीतने की कोई आशा नहीं थी।
कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जब गीता मैडम ने पुरस्कारों की घोषणा की तो अमित चांैक उठा। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। वह प्रथम आया था। जबकि गीता मैडम की बेटी नीलम द्वितीय विजेता थी। और भी अधिक हैरान तो वह तब रह गया जब उसे पता चला कि ह्यप्रिंसिपल मैडमह्ण के बेटे प्रणव को कोई स्थान नहीं मिला।
इसके बाद ह्यप्रिंसिपल मैडमह्ण ने विजेताओं को पुरस्कार दिए। अमित पुरस्कार प्राप्त करने के बाद सीधे गीता मैडम के पास गया। उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था लेकिन वह उनसे कुछ कहने का साहस न कर सका। गीता मैडम उसे बधाई देते हुए बोलीं, ह्यह्यमुझे विश्वास था कि तुम्हीं जीतोगे। तुमने बहुत अच्छा गाया।ह्णह्ण
ह्यह्यलेकिन मैडम मैं तो सोच रहा था कि़.़.।ह्णह्ण
अमित अपनी बात पूरी न कर सका और रो पड़ा। गीता मैडम को बात समझते देर न लगी। वह उसके आंसू पोंछ कर उसे समझाते हुए बोली, ह्यह्यरो मत मेरे बेटा, मैंने उस दिन तुम्हारी बात सुनी थी। एक सच्चा कलाकर सिर्फ कला को देखता है व्यक्ति को नहीं। मैं निर्णायक के रूप में अमित, नीलम या प्रणव को नहीं देख रही थी ,बल्कि इनके भीतर छिपे कलाकार को देख रही थी। एक सच्चा कलाकार कला के साथ भेदभाव कैसे कर सकता है? गीता मैडम की आंखंे भावुकता से भरी थीं और अमित को अपनी भूल का पश्चाताप था । वह सच्चे कलाकार का आशीष लेने गीता मैडम के चरणों में झुक पड़ा। आशीष शुक्ला

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