सत्यं शिवं सुन्दरम्
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कहा जाता है कि झूठ के पांव नहीं होते हैं इसलिए वह एक न एक दिन धराशाई जरूर होता है। यही हुआ है कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के साथ। पुदुच्चेरी के एक स्थानीय न्यायालय ने शंकराचार्य सहित उन सभी 23 आरोपियों को बरी कर दिया है,जिन पर कांचीपुरम के वरदराजपेरुमल मन्दिर के प्रबंधक शंकर रमन की हत्या का आरोप लगा था।
इन सभी को बरी करते हुए न्यायालय ने कहा कि आरोपियों के विरुद्घ कोई ठोस सबूत नहीं है। न्यायाधीश सीएस मुरुगन ने इस मामले की जांच के सन्दर्भ में कांचीपुरम के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रेम कुमार की 'अवांछित और सक्रिय भागीदारी' की भी विशेष रूप से चर्चा की।
उल्लेखनीय है कि 11 नवम्बर, 2004 की रात 10 बजे पूज्य शंकराचार्य जी को तमिलनाडु पुलिस ने आंध्र प्रदेश के महबूबनगर से गिरफ्तार किया था। शंकराचार्य वहां विश्व शांति हेतु आयोजित एक यज्ञ में भाग लेने गए थे। एक विशेष विमान से तमिलनाडु पुलिस आंध्र प्रदेश पहुंची थी। गिरफ्तार करने से पहले पुलिस ने शंकराचार्य जी से कहा कि पूछताछ करके उन्हें यहीं छोड़ दिया जाएगा,किन्तु शंकराचार्य जी को रात में ही विमान से चेन्नै ले जाया गया और उसके बाद उनके अपमान का सिलसिला शुरू हो गया। रात में ही उन्हें कांचीपुरम ले जाया गया। छुट्टी होने के बावजूद 11-12 नवम्बर की रात को ही अदालत लगाई गई और उन्हें 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। 12 नवम्बर की सुबह यह समाचार प्रसारित होते ही पूरे देश में सन्नाटा छा गया था। उस दिन कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कछार तक विरोध प्रदर्शन हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
उस समय मीडिया,विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने शंकराचार्य को इस तरह प्रस्तुत किया था मानो वे एक बहुत बड़े अपराधी हों। प्रथम पृष्ठ पर महीनों तक ऐसे समाचार और लेख लिखे गए,जिनमें शंकराचार्य की परम्परा पर भी अंगुली उठाई गई थी। पूरे सन्त समाज को लांछित किया गया था। किन्तु उसी मीडिया ने आज शंकराचार्य जी के ससम्मान बरी होने के समाचार को ठीक से प्रकाशित करना भी उचित नहीं समझा। देश के बड़े अंग्रेजी समाचार पत्रों ने यह समाचार प्रकाशित तो जरूर किया,किन्तु अन्दर के पन्नों पर आधा-अधूरा।
2004 में जब शंकराचार्य जी को गिरफ्तार किया गया था उस समय देश-विदेश के सभी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने कहा था कि यह हिन्दू समाज को अपमानित करने का षड्यंत्र है। अब न्यायालय के निर्णय से यह बात सही साबित हुई है।
उल्लेखनीय है कि कांचीपीठ वषोंर् से मतान्तरण में लगे ईसाइयों और देश विरोधी ताकतों के निशाने पर है। विशेषकर शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के कायोंर् से ईसाइयत बहुत परेशान थी। शंकराचार्य जी वंचित समाज के बीच अनेक कार्य कर रहे थे। उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने अनेक प्रकल्प शुरू किए थे। उन्होंने वंचित समाज के युवाओं को पुजारी बनाने का प्रशिक्षण देना शुरू किया था। जो वंचित युवक पुजारी का प्रशिक्षण पूरा कर लेते थे उन्हें मन्दिरों में नियुक्त भी किया गया था। शंकराचार्य जी के इन कायोंर् से ईसाई प्रचारक हिन्दुओं का मतान्तरण नहीं कर पा रहे थे। यही कारण है कि ऐसे तत्व शंकराचार्य के विरुद्घ षड्यंत्र रच रहे थे। मई,2004 में जब दिल्ली में सोनिया-मनमोहन सरकार आई तो ऐसे तत्वों का हौसला बढ़ा और उन्होंने हिन्दू सन्तों के विरुद्घ साजिश रचना शुरू किया। ऐसे तत्वों के पहले शिकार बने पूज्य शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती। आज भी ये तत्व अपने षड्यंत्र से बाज नहीं आ रहे हैं। हिन्दू समाज ऐसे तत्वों को पहचान ले तो कई षड्यंत्रों को समय रहते विफल किया जा सकता है। प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
सत्य जीता, षड्यंत्र हारा
धर्म और सत्य की जीत हुई है। हमारे गुरु ने हमें यह शिक्षा दी कि प्रत्येक परिस्थिति मेंं उसका डट कर मुकाबला करना और उससे कभी भी नहीं घबराना चाहे कितनी ही विपत्तियां क्यों न आ आएं। जो 9 वर्ष का समय व्यतीत हुआ वह सत्य को जानने का समय रहा, हां, उस दौरान हमारा कुछ कार्य जरूर बाधित रहा, लेकिन मठ में सभी कार्य, समय-समय पर उत्सव आदि सुचारू रूप से होते रहे हैं। मैं अपने श्रद्घालुओं को सन्देश देता हूं कि जीवन में पूरे जोश के साथ आगे बढे़ें, सत्य के साथ रहें ,चाहे कितना भी बड़ा संकट क्यों न आ जाए।
-स्वामी जयेन्द्र सरस्वती
शंकराचार्य, कांची कामकोटि पीठ
यह स्पष्ट हो गया है कि 2004 की दीपावली की रात हैदराबाद के तत्कालीन ईसाई मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी द्वारा उन्हें एक बड़े षड्यंत्र के तहत गिरफ्तार किया गया। सोनिया जी जब से भारत में आयी हैं वह हमारी-धार्मिक सांस्कृतिक आस्थाओं को कुचलने में लगी हैं। यह कार्य योजनाबद्ध रूप से सन्तों, आचार्यों, महन्तों और महात्माओं के प्रति श्रद्धा को समाप्त करने के लिए जानबूझकर अपनाया गया ईसाई षड्यंत्र था। स्वामी जी के बेदाग छूट जाने से अब यह षड्यंत्र पूर्ण रूप से उजागर हो गया है।
-अशोक सिंहल, संरक्षक, विहिप
न्यायालय ने श्री शंकराचार्य जी एवं सभी लोगों को बरी कर दिया है लेकिन इस निर्णय से सिद्घ हो गया है कि कुछ शक्तिशाली लोग हंै जो परदे के पीछे से हिन्दू धर्म, साधु-संन्यासियों और धार्मिक स्थलों को बदनाम करने में लगे हुए हैं। समय है कि ऐसे षड्यंत्रकारी लोगों को पहचान कर उनको दण्ड दिया जाना चाहिए, ताकि पुन: वे ऐसे किसी भी सन्त, धार्मिक स्थान को बदनाम करने की साजिश न कर सकें।
-पी. परमेश्वरन
अध्यक्ष, विवेकानंद केन्द, कन्याकुमारी
आज उन तमाम लोगों को प्रायश्चित करना चाहिए, सामूहिक क्षमायाचना करनी चाहिए, जो पूज्य शंकराचार्य जी महाराज को हत्या का दोषी मानते थे। समाज को भी यह समझना चाहिए कि आज के युग में षड्यंत्र कैसे रचे जाते हैं। ऐसे षड्यंत्रों का एकमात्र उद्देश्य होता है हिन्दू समाज के श्रद्धा केन्द्र हिल जाएं। भविष्य में समाज को ऐसे षड्यंत्रों से सावधान रहना चाहिए।
-चम्पत राय, महामंत्री, विहिप
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