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वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो एक तपस्वी बाबा बालगिरी जी ने संगम तट पर त्रिशूल गाड़कर धुनी जमाने का प्रयास किया। धुनी की खुदाई के समय रेत के नीचे टकराने की आवाज आयी तो राम भक्त संत ने खुदाई करके इस विग्रह को निकाला। इस अप्रत्याशित घटना को ईश्वर की कृपा मानकर बालगिरी महाराज ने हनुमान जी की दिव्य पूजा-अर्चना शुरू कर दी। धीरे-2 इस विग्रह के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ने लगी। बाबा बालगिरी जी जिस श्रद्धालु को हनुमान जी का चन्दन लगाते उसके मनोरथ पूर्ण हो जाते।
मुगलकाल आया तो मन्दिरों को तोड़ने का कुचक्र चल पड़ा। औरंगजेब को इस मन्दिर के बारे में पता चला तो वह अपने सैनिकों के साथ यहां पहुंचा और सैनिकों को आदेश दिया कि प्रतिमा को निकाल कर फेंक दो। औरंगजेब का आदेश सुनकर बाबा बालगिरी मन में विलाप करते हुए हनुमान जी से प्रार्थना करने लगे कि प्रभु अब आप लाज बचाओ। संत की गुहार सुनकर हनुमान जी ने सचमुच का चमत्कार दिखा दिया। मुगल सैनिक जैसे-जैसे खुदायी करते गए प्रतिमा निकलने के बजाय धरती में बैठती गयी। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा, मुगल सैनिक हार मानने को तैयार नहीं थे। आखिरकार बाबा बालगिरी ने सैनिकों को श्राप दे दिया और स्वयं वहां से उठ कर एक बरगद के वृक्ष के नीचे जाकर ध्यान करने लगे।
संत के श्राप से मुगल सेना रोगग्रस्त हो गई। श्राप की जानकारी औरंगजेब को हुई तो उसने बाबा से क्षमा मांगते हुए कहा कि हम इस मन्दिर के चमत्कार को मानते हैं। अब कभी इस मन्दिर को नहीं छुएंगे। जब सब कुछ सामान्य हो गया तो औरंगजेब बाबा बालगिरी महाराज से मिला और सेवा की अनुमति मांगी। बाबा की स्वीकृति मिलने पर उसने सैकड़ों बीघा भूमि के ऊपर भव्य बाघम्बरी पीठ की स्थापना कराई। उस समय से आज तक बाघम्बरी पीठ की परम्परा के अनुसार हनुमान जी की सेवा पूजा होती है। वर्तमान में बाघम्बरी पीठ के महंत श्री नरेन्द्र गिरी जी महाराज हैं।
आज हनुमान जी की कृपा से संगम तट पर बने बांध पर भव्य मन्दिर बना हुआ है। सामान्य दिनों में भी यहां हजारों श्रद्धालु पूजा, दर्शन और अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।
हनुमान जी के मन्दिर के समीप ही पावन संगम और सामने संगम क्षेत्र है, जहां माघ मास में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माघ मेला आयोजित होता है।
मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं के मनोरथ पूर्ण होने के हजारों किस्से हैं।
प्रयाग के लेटे हुए हनुमान जी से पतित पावन गंगा जी का बड़ा अटूट रिश्ता है। हर वर्ष जुलाई-अगस्त में मां गंगा का पावन जल हनुमान जी को स्नान कराता है। जानने वाले बताते हैं कि ऐसा अपवाद में होता है कि गंगा का जल यहां न पहुंचे। लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह निराशा का समय होता है क्योंकि मन्दिर को गंगा के वापस लौटने तक बंद करना पड़ता है। इस वर्ष 40 दिन तक हनुमान जी पावन गंगा जल में डूबे रहे और मन्दिर बंद रहा?
प्रयाग आने वाले श्रद्धालु यहां सुबह 5.30 बजे से 2.00 बजे तक सायं 5 बजे से 11 बजे तक लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना कर सकते हैं। मन्दिर में मंगलवार तथा शनिवार को रात्रि 8.30 बजे, अन्य दिनों में 8.00 बजे भव्य आरती होती है, जिसमें नगर तथा बाहर से आये श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
देवालय बन गया सेवालय
यह मन्दिर सामाजिक सेवा का भी केन्द्र है। मन्दिर सेवा व्यवस्था का कार्य देखने वाले योगाचार्य आनन्द गिरी बताते हैं कि इस मन्दिर की ओर से श्री मां गंगा संरक्षण समिति प्रयाग का गठन किया गया है जिसमें समाज के सभी वर्गों को जोड़ा गया है। सामान्य दिनों में तो समिति से जुड़े लोग संगम तट पर साफ-सफाई तथा श्रद्धालुओं की सहायता करते हैं परन्तु माघ मेले, कुंभ या अर्ध कुंभ मेले में इस समिति, जिसे आम लोग गंगा सेना कहते हैं, के लोग बड़ी जिम्म्ेदारी से श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं।
अन्नक्षेत्र
मन्दिर की ओर से प्रतिदिन अन्न क्षेत्र चलता है। सुबह हलवा और चाय के साथ खिचड़ी भी बंटती है। सामान्य दिनों में इसका लाभ 200-250 लोग लेते हैं तो मंगलवार व शनिवार को यह संख्या हजारों में पहुंच जाती है। आज नगर में यह एक मात्र ऐसा सेवालय है जहां नियमित रूप से प्रात: 9 बजे से 2 बजे तक अन्न क्षेत्र चलता है।
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