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मध्यप्रदेश में 25 दिसंबर शाम पांच बजे मतदान समाप्त हो गया और सभी प्रत्याशियों का भाग्य वोटिंग मशीन में कैद हो गया, लेकिन जीत के दावे, मतों के रहस्य, और चुप्पी बरकरार है। अनुमानों का दौर भी जारी है। यह सब कुछ आठ दिसंबर तक चलेगा, इसी दिन सभी जनमत सर्वेक्षणों, मतदान पूर्व किए गए सर्वेक्षणों की वास्तविकता सभी के सामने आ जाएगी। इसके बाद शुरू होगा, मतदान बाद की स्थितियों का विश्लेषण, जीत का जश्न और हार के बहानों का सिलसिला। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में कुल 4,64,47,767 मतदाताओं में से 71 प्रतिशत ने मत दिया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अंतिम समय में प्रत्याशी तय किए। इस बार के चुनाव में कमोबेश दोनों ही बड़ी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी देखने को मिली। राजनीतिक विश्लेषक भी यह बता रहे हैं कि चुनाव आयोग ने जिस प्रकार से मतदाता जागरूकता अभियान चलाया तब यह अनुमान था कि मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ की तरह 75 फीसदी से अधिक मतदान होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इस प्रकार 1998 में जहां 60़22 प्रतिशत मतदान हुआ, वहीं 2003 में 67़25 प्रतिशत और 2008 में 69़78 प्रतिशत। 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र 1़2 प्रतिशत की बढ़ोतरी सामान्य से कम है। यह बढ़ोतरी भी युवा और नए मतदाओं के कारण है।
राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा अपेक्षा और अनुमान के मुताबिक मतदान में बढ़ोतरी न होना सत्ता विरोधी भावना के बेअसर होने के तौर पर देखा जा रहा है। इसी प्रकार बढ़े हुए मतदान पर शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी का प्रभाव देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि युवाओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति आकर्षण तो है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी जैसा प्रभाव नहीं। राजनीतिक दलों के सार्वजनिक दावों से अलग आंतरिक मूल्यांकन, खुफिया रिपोर्ट और विश्लेषकों के अनुमानों का गणित यह बता रहा है कि भाजपा के मतों और सीटों में कुछ कमी हो सकती है, लेकिन लगभग 120 सीटों के साथ वह सरकार बनाने की स्थिति में होगी। कांग्रेस के मतों और सीटों में कुछ वृद्घि हो सकती है। लेकिन कांग्रेस 100 सीटों के भीतर ही रहेगी। बाकि बचे 10-15 सीटों पर बसपा, सपा और निर्दलियों की दावेदारी रहेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भी भाजपा सरकार की दावेदारी करते हुए कुछ मंत्रियों के चुनाव हारने की आशंका भी व्यक्त की है। जबकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने भाजपा द्वारा पिछली बार से अधिक सीटें जीतने और सरकार बनाने का दावा किया है। उन्होंने इस आशंका को सिरे से अस्वीकार कर दिया है कि भाजपा का कोई मंत्री कड़े मुकाबले में है, या किसी पर हार का संकट है। कांग्रेस ने 130 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया है।
हालांकि 2008 में भाजपा ने दूसरी बार जीत हासिल कर सरकार का गठन किया था और कांग्रेस के मतों और सीटों में वृद्घि हुई थी। कांग्रेस का लगभग एक प्रतिशत वोट बढ़ने के साथ सीटें 38 से बढ़कर 71 हो गई। उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में जहां भाजपा के सात और कांग्रेस के 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। मध्यप्रदेश में हर बार की तरह इस बार भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। लेकिन चुनावी निर्णय के बाद यह भी पता चलेगा कि भाजपा और कांग्रेस के कितने प्रत्याशियों की जमानत जब्त होती है। गौरतलब है कि 2008 में कुल 3179 प्रत्याशियों में से 2654 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
इस बार विधानसभा चुनाव में मुददों पर आरोप-प्रत्यारोप और चेहरे हावी रहे। भाजपा ने शिवराज के चेहरे और सरकार की उपलब्धियों तथा कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के घोटालों, भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, वहीं कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर आरोप को ही अपना मुख्य मुद्दा बना दिया था। हालांकि कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे करने की कोशिश की, लेकिन वह कांग्रेस क्षत्रपों के चेहरों में ओझल हो गया। अनिल सौमित्र
छत्तीसगढ़ में सिमी की बढ़ती पैठ
छत्तीसगढ़ में स्टूडेंट अफ इस्लामिक मूवमेंट इन इंडिया(सिमी) की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगा तो रखा है,किन्तु सरकार की नीतियां ऐसी हैं कि उनसे देश-विरोधियों को बढ़ावा ही मिलता है। एक तरफ केन्द्रीय गृह मंत्रालय सिमी पर प्रतिबंध लगाता है,वहीं दूसरी तरफ यह कहता है कि जेल में बन्द निर्दोष मुस्लिम युवकों को छोड़ा जाए। इसी का फायदा सिमी जैसे अलगाववादी संगठन उठा रहे हैं। कुछ ही दिन पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सिमी के राष्ट्रीय महासचिव सफदर नागौरी ने कुछ मुस्लिम युवकों के साथ एक बैठक की है। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में मुस्लिम युवकों को जिहाद के लिए उकसाया गया। पता चला है कि इस बैठक में रायपुर के अलावा दुर्ग, रायगढ़, चांपा, अम्बिकापुर, कांकेर और धमतरी से मुस्लिम युवक आये थे। इसकी जानकारी मिलते ही छत्तीसगढ़ के ए टी एस ने संदिग्धों की धर-पकड़ शुरू कर दी है। यह भी पता चला है कि सिमी उन क्षेत्रों में अधिक पैर पसार रहा है,जहां नक्सलियों का प्रभाव नहीं है। इसके दो मकसद हैं ,पहला तो यह है कि सिमी और नक्सलियों के बीच टकराव नहीं होगा,और दूसरा, यह है कि पुलिस और प्रशासन को उलझाए रखना,ताकि नक्सलियों के विरुद्घ कड़ी कार्रवाई न हो पाए।
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