चुनावी चुटकुला
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 चुनावी चुटकुला

by
Nov 30, 2013, 12:00 am IST
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सभाएं सूनी

दिंनाक: 30 Nov 2013 14:55:03

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मंगोलपुरी और दक्षिणपुरी में हुईं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की दोनों रैलियां फीकी रहीं। दोनों रैलियों में नदारद भीड़ से कांग्रेस महासचिव की खासी किरकिरी हुई। इससे सबक लेते हुए कांग्रेस ने सोनिया गांधी की रैली में साख बचाने के लिए रणनीति तक बदल डाली। दक्षिणपुरी में रैली में खाली पड़ी कुर्सियों को लेकर ह्यशहजादेह्ण की बौखलाहट प्रदेश कांग्रेस पर भारी पड़ रही है।

कांग्रेस का मजबूत गढ़ माने जाने वाले दक्षिणपुरी इलाके में 17 नवम्बर को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रैली में भीड़ नहीं जुटने को लेकर पार्टी में हलचल तेज है। अम्बेडकर नगर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी प्रेम सिंह लगातार विजयी रहे हैं। उनकी साख को देखते हुए उम्मीद जताई जा रही थी कि राहुल गांधी मंगोलपुरी की तरह यहां से निराश होकर नहीं लौटेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

भीड़ नहीं जुटी

अब रैली के प्रबंधकों को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। समझा जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद इसका ठीकरा संबंधित मैनेजरों के सिर जरूर फूटेगा। यह लगातार दूसरा मौका था कि जब गांधी की रैली में वैसी भीड़ नहीं जुटी जिसकी उम्मीद की जा रही थी। मंगोलपुरी में हुई पहली रैली को लेकर ज्यादा बखेड़ा नहीं हुआ था, लेकिन दक्षिणपुरी की दूसरी रैली में भी अपेक्षित भीड़भाड़ नहीं जुटने को लेकर पार्टी के आला नेताओं के कान खड़े हो गए हैं। पार्टी के जानकार सूत्रों का कहना है कि बड़े नेताओं की चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी प्रबंधकों की होती है और राजधानी की पिछली दोनों रैलियों को यह देखा जाना जरूरी है कि आखिर कहां कमी रही है। यह भी कहा जा रहा है कि अंदरखाने सरकार व संगठन के नेताओं के बीच जारी सियासी दांव-पेंचों की वजह से ही यह हालत हो रही है। बताया जा रहा है कि दक्षिणपुरी की रैली के लिए जो निमंत्रण पत्र छापा गया उस पर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की ओर से निमंत्रण की सूचना तो थी, लेकिन अध्यक्ष के नाम के आगे जयप्रकाश अग्रवाल का नाम तक नहीं लिखा गया था। इससे भी संगठन के बीच मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं। दक्षिणपुरी की रैली में मुश्किल से मैदान में लगी कुर्सियां भर पाई। इतना ही नहीं, उनसे पहले रैली को जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित संबोधित कर रहीं थीं तो कुछ महिलाएं उठकर जाने लगीं। ऐसे में उन्हें कहना पड़ा कि आप लोग कम से कम राहुल जी की आवाज तो सुनते जाइए। इस रैली में राहुल ने अपना भाषण महज साढ़े छह मिनट में खत्म कर दिया। उनके भाषण में सिर्फ दिल्ली सरकार की उपलब्धियां गिनाने के अलावा कोई नई बात नजर नहीं आई। वह जब भाषण दे रहे थे, तभी लोगों ने उठकर जाना शुरू कर दिया। लोग जा ही नहीं रहे थे, बल्कि बीच में खड़े भी हो गए थे। शायद यह नजारा देखकर राहुल ने इतनी जल्दी अपनी बात खत्म कर दी। सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और दक्षिणी दिल्ली के सांसद रमेश कुमार को खूब खरी-खोटी सुनाई हैं। दरअसल आयोजकों ने लोगों को सुबह 9 बजे से बुलाया हुआ था, लेकिन करीब पौने दो बजे के आसपास राहुल गांधी वहां पहुंचे। मैदान में तेज धूप के कारण भी लोग परेशान हो गए थे। रैली में भीड़ न जुटने पर कांग्रेस में अंदरखाने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का खेल भी शुरू हो गया है।

शीला सफाई

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने रैली की समीक्षा करने के लिए अपने आवास पर दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी और उत्तर पूर्वी संसदीय क्षेत्र के विधायकों की बैठक बुलाई। इस दौरान कांग्रेसी नेताओं की ओर से तर्क दिया गया कि सुरक्षा कारणों से लोगों को अंदर नहीं जाने दिया गया। पानी की बोतल तक अंदर न जाने से लोग बाहर जाने लगे। करीब चार-पांच घंटे तक धूप में बैठने के बाद लोग भूख-प्यास से भी परेशान थे। शीला दीक्षित ने इसके लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और रैली स्थल पर नेताओं का इंतजार कर रहे लोगों को पानी लेकर जाने की अनुमति नहीं देने को जिम्मेदार ठहराया। रैली फीकी रहने की वजह से कांग्रेसी नेता आला नेताओं से गुजारिश करने में लग गए हैं कि उनके इलाके में किसी बड़े नेता की चुनावी सभा न कराई जाए। प्रत्याशी घबराने लगे हैं कि इन सभाओं में फिर से भीड़ का संकट हुआ तो उन्हें चुनाव में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस परेशान है कि राहुल और अन्य बड़े नेताओं की रैलियों की तुलना भाजपा के स्टार प्रचारक श्री नरेंद्र मोदी से होगी जिससे पार्टी के खिलाफ चर्चाओं को बल मिलेगा। दिल्ली में श्री मोदी की तीन रैलियां होने वाली हैं। ऐसे में चुनाव के दौरान उलटा संदेश जा सकता है। कुछ कांग्रेसी विधायकों का कहना है कि इससे तो ज्यादा अच्छा है कि वह खुद अपने इलाकों में किए गए विकास कायोंर् और दिल्ली सरकार की उपलब्धियों के नाम पर लोगों से वोट मांग लें।

सोनिया की रैली के लिए बदली रणनीति

कांग्रेस की चुनावी सभाओं में लगातार घटती भीड़ को थामने के लिए आलाकमान से लेकर निचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने कंधे से कंधा मिलाकर 24 नवम्बर को सोनिया की रैली में भीड़ जुटाने के लिए अपनी रणनीति बदली। पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क में आयोजित हुई सोनिया की रैली में दिल्ली के अन्य इलाकों से भी लोग लाए गए थे। खास बात यह है कि सोनिया गांधी की रैली लंच के बाद आयोजित की गई। इससे पहले दिल्ली में हुई राहुल गांधी की दो रैलियां दोपहर के भोजन से पहले आयोजित की गईं थी।
इन रैलियों में लोग सुबह 7 बजे से पहंुच गए थे और रैली में दो बजे जाते थे। इसलिए जब राहुल गांधी बोलना शुरू करते थे तो भीड़ उठकर चलनी शुरू हो जाती थी। इस बात का ध्यान रखकर सोनिया गांधी की रैली भोजन के बाद आयोजित की गई। इसका थोड़ा असर भी हुआ, ज्यादा लोग उठकर नहीं गए। रैली में कुर्सियां खाली न दिखाई दें, इसके लिए रैली मैदान के एक हिस्से में ही रैली के लिए टेंट लगाया गया। मैदान का काफी हिस्सा खाली छोड़ा गया। भीड़ ज्यादा नजर आए इसके लिए रैली स्थल के चारों ओर पर्दे लगाए गए। इसके बावजूद भी पिछला हिस्सा खाली नजर आ रहा था। लोग आगे आकर नारेबाजी कर रहे थे ताकि पीछे का हिस्सा ना दिखाई दे। खुद कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी के आने के समय तक बाहर खड़े होकर लोगों को अंदर भेजते रह      राहुल शर्मा

दिल्ली की सड़कों से लेकर फेसबुक                   
की दीवारों(वॉल) तक ये नजारा आम है।
राहुल रैली में: आपको विकास चाहिए?
जवाब: नहीं।
राहुल: आपको खुशहाली चाहिए?
जवाब: नहीं।
राहुल: तो फिर आपको क्या चाहिए?
जवाब: सर, हम तो टैंट वाले हैं, ये कुर्सियां    
और माइक वापस चाहिए।
सौजन्य: फेसबुक-साभार भारत शर्मा   

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