कश्मीर में हिन्दू पूजा स्थलों की दयनीय स्थिति
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प्राचीन मंदिर के कुंड की जमीन पर खड़ा किया था गैर कानूनी ढांचा
आन्ध्र प्रदेश के सुप्रसिद्घ हिन्दू तीर्थ तिरुपति बालाजी के आस-पास कट्टरवादी मुस्लिमों और ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां किस कदर बड़ी हैं, जिसकी जानकारी पाञ्चजन्य में समय-समय पर दी जाती रही है। ऐसी ही एक गतिविधि का संचालन एक मुस्लिम महिला नौहीरा शायिक द्वारा किया जा रहा है। उसके द्वारा तिरुपति में एक बड़ा इस्लामिक महिला कालेज स्थापित किया जा रहा है। तिरुपति में बनाये गए इस कालेज की शुरुआत 1998 में मदरसा निस्वान नाम से की गई थी। जिसमें 150 मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा दी जानी थी। इसके बाद वहीं पर हीरा अन्तरराष्ट्रीय इस्लामिक कालेज स्थापित किया गया जो चन्द्रगिरि स्थान पर है, जो कभी बहुत बड़े मन्दिर का कुण्ड हुआ करता था जिसे आततायी हैदर अली ने ध्वस्त कर कर दिया था। इस कालेज के अन्तर्गत गैरकानूनी ढंाचा खड़ा किया जा रहा था, जिसका विरोध होना स्वाभाविक ही था। इसी विरोध के बाद गत 17 नवम्बर को कित्तूर जिले के जिलाधिकारी के़ रामगोपाल ने स्थानीय थोन्दवडा ग्राम पंचायत के सचिव को निर्देश दिया कि कालेज परिसर में दो अबैध ढंाचे जी +2 और जी +6 को तुरन्त ध्वस्त किया जाए। कालेज को चलाने वाले न्यास को ग्राम पंचायत के सचिव ने 25 फरवरी 2012 और 28 मई 2012 को दो बार नोटिस भेजकर गैरकानूनी ढंाचे को बनाने से बाज आने को कहा था, लेकिन अक्खड़ कालेज प्रबंधन ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों और तिरुमला तिरुपति परिरक्षण समिति के तीव्र विरोध के बाद अन्तत: जिलाधिकारी को गैरकानूनी निर्माण ध्वस्त करने के निर्देश जारी करने पड़े । प्रतिनिधि
कश्मीर में हिन्दू पूजा स्थलों की दयनीय स्थिति
कश्मीर घाटी में हिन्दू मंदिरों तथा अन्य पूजा स्थलों की सुरक्षा संबंधी विधेयक शीघ्र पारित होने की संभावना नहीं है। इसे राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किए पांच वर्ष बीत चुके हैं। विधेयक को कई प्रकार की प्रक्रियाओं में डाल दिया गया है। कई धार्मिक नेताओं को इसके नाम पर ही आपत्ति है। इसे कश्मीरी हिन्दुओं के पूजा स्थलों की सुरक्षा विधेयक नाम दिया गया है।
इस पर आपत्ति उठाने वालों का कहना है कि इन पूजा स्थलों को कश्मीरी हिन्दुओं के साथ जोड़कर देखना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। कश्मीर घाटी में एक सरकारी सूची के अनुसार मंदिरों तथा अन्य पूजा स्थलों की संख्या 493 है, जिनकी स्थिति दयनीय बनी हुई है। घाटी से हिन्दुओं के पलायन के बाद इन मंदिरों में पुजारी तक नहीं बचे हैं। ऐसे में यहां अतिक्रमण शुरू हो गया है। कुछ जिहादी सोच वाले इन स्थलों को हानि पहंुचाने में लगे हैं। पूजा स्थल सिर्फ इसलिए बचे हैं क्योंकि वहां पर सुरक्षा बलों ने अपने शिविर लगाए हुए हैं। अलगाववादी तरह-तरह के आरोप लगाकर यहां से उन्हें हटाना चाहते हैं।
पूजा स्थलों को लेकर एक मत यह भी सामने आ रहा है कि नेता इस बात पर बल दे रहे हैं कि मंदिर के प्रबंधन के कार्य में केवल कश्मीरी पंडितोंे को ही भागीदार बनाया जाए, जबकि कुछ इसके खिलाफ हैं। यह भी चर्चा है कि भिन्न-भिन्न प्रकार के विचारों को फैलाने तथा सारी प्रक्रिया को लटकाने के पीछे कुछ सरकारी तत्व अपना काम कर रहे हैं। कुछ नेता कहते हैं कि पूजा स्थलों की चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। साथ ही यहां तक कहा जा रहा है कि जब वहां हिन्दू ही नहीं रहे तो वहां मंदिर की आवश्यकता ही क्या है? जम्मू प्रतिनिधि
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