अच्छे और प्रभावी लेखन की पाठशाला
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भा षा केवल हमारे विचारों एवं भावों की अभिव्यक्ति का ही माध्यम भ्नहीं होती है, अपितु हमारी हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी पृष्ठभूमि, हमारी सामाजिक स्थिति – इन सभी को समग्र रूप से परलक्षित भी करती है। इस दृष्टि से अच्छी व प्रभावी भाषा के प्रयोग की एक सहज इच्छा किसी के भी मन में हिलोरें ले सकती है। मानव मन की इसी सहज इच्छा की पूर्ति के क्रम में एक महत्वपूर्ण पड़ाव हैै संत समीर की पुस्तक – ह्यअच्छी हिंदी कैसे लिखेंह्ण।
भाषा को कबीर ने बहता नीर कहा है। भाषा का रूप नित नूतनता को अपनाते हुए परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर रहता है। यही किसी भाषा की जीवंतता का लक्षण भी कहा जा सकता है। किंतु इन सब परिवर्तनों के बावजूद भी किसी भाषा की आंतरिक संरचना अथवा कहें कि भाषा की अंतरात्मा में एक तारतम्यता सदैव विद्यमान रहती है। स्वयं लेखक के शब्दों में कहें तो बहते हुए नीर के लिए तटबंध अनिवार्य हैं। तटबंध हटाते ही बहते हुए नीर को बिखरता हुआ नीर बनते देर न लगेगी। इन्हीं तटबंधों से परिचित कराने वाली पुस्तक है – ह्यअच्छी हिंदी कैसे लिखें।ह्ण
लेखक का मंतव्य केवल हिंदी के व्याकरण अथवा मानक हिंदी से पाठकों को परिचित कराना भर नहीं रहा है। स्वयं लेखक ने पुस्तक के प्रारंभ में अपनी बात लिखते हुए स्पष्ट कर दिया है कि पुस्तक का शीर्षक पढ़कर एकबारगी लग सकता है कि यह पाठकों को व्याकरण और वर्तनी की भूलों के प्रति सचेत करते हुए, उन्हें शुद्ध शब्द और वाक्य लिखना सिखाएगी। ऐसा नहीं है कि इस पुस्तक में व्याकरण और वर्तनी का विषय अनछुआ रहा हो, किंतु यह पुस्तक अपनी समग्रता में इस उद्देश्य को पूरा करती है।
पुस्तक के पहले ही लेख कैसे हो कि कहें अच्छी हिंदी में लेखक ने अच्छे लेखन के सूत्रों को प्रस्तुत करते हुए उसमें सरल एवं उपयुक्त शब्दों के प्रयोग, संप्रेषणीयता, सरलता, विषय प्रतिपादन मंे सक्षमता, लेखन से पूर्व लेखक के मन में विषय की स्पष्टता, शब्द-भंडार के विकास, शब्दों और वाक्यों के कुशल प्रयोग, अनावश्यक शब्द प्रयोग से बचने, मुहावरों, कहावतों व अलंकारों के सटीक प्रयोग के महत्व को सार रूप में निरूपित किया है व आगे के अध्यायों में इन सब पर विस्तारपूर्वक चर्चा की है। भाषा में पूर्ण अधिकार अभ्यास और साधना से ही आ सकता है। अच्छी हिंदी लिखने का रहस्य शीर्षक अध्याय में लेखक ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार अच्छी भाषा के अभाव में अनुभवी, ज्ञानी और सुधी व्यक्ति भी लेखन में प्रवृत्त नहीं हो पाता है। लेखक बनने के क्रम में उपयोगी पांच सूत्रों यथा – अध्ययन, श्रवण, चिंतन, निरीक्षण और अभ्यास को पूरे विश्वास के साथ रूपायित किया गया है। लेखनी उठाने से पहले विषय कहां से लाएं, लेखन की तैयारी करें ऐसे आदि शीर्षक लेखों में पाठक को लेखन में सक्रिय करने की लेखक की प्रयत्नशीलता दिखाई पड़ती है।
अच्छा लेखक बनने का पहला चरण अच्छा पाठक बनना है। इस तथ्य को पूरी गंभीरता के साथ समझते हुए लेखक ने पढ़ने का भी सलीका सीखिए लेख में पढ़ने के ठीक तरीकों को अत्यन्त सूक्ष्मतापूर्वक बिंदुवार रेखांकित किया है। पढ़ते समय चित्त की स्थिरता, कुछ भी पढ़ने से पहले पढ़ने का उद्देश्य मन में धारण करना, चुनिंदा पढ़ना, पढ़ने के बाद उसका चिंतन करना, पढ़ते समय लिख लेना – इन सबका संकेत करते हुए लेखक ने पाठक को पढ़ने की कला में निपुण बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। आज के युग में समय का अभाव सभी अनुभव करते हैं। ऐसे में कम समय में अधिक पढ़ना अत्यन्त महत्वपूर्ण हो उठता है। पाठक की इसी आवश्यकता को समझते हुए पढ़ने की गति कीजिए तेज लेख में ग्रहण-विस्तार (अधिकाधिक शब्द समूहों को एक साथ देखना) को बढ़ाने की ज़रूरत पर लेखक ने बल दिया है और ऐसा करने के उपाय भी सुझाए हैं।
शब्दों के चयन पर ध्यान दीजिए लेख में लेखक ने गिरी-गीरी, भागना-दौड़ना, आमंत्रण-निमंत्रण, आलस्य – प्रमाद आदि जैसे एक-से प्रतीत होने वाले शब्दों के सूक्ष्म अंतर को स्पष्ट करते हुए पाठक के भीतर सही शब्द प्रयोग की उत्कंठा जगाने का प्रयास किया है और साथ ही रस बिना आनंद कहां, अलंकार की छटाएं, गाने-गुनगुनाने को चाहिए छंद जैसे रोचक शीर्षक वाले लेखों में पाठक को गूढ़ विषयों को भी आनंद के साथ पढ़ने को आमंत्रित किया है। जहां यह हिंदी को द्वितीय भाषा के रूप में सीखने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी हैं वहीं हिंदी के काम की संस्कृत सूक्तियां व हिंदी की अभिव्यक्ति में संस्कृत के न्याय लेखों में संकलित सामग्री की जरूरत को कई हिंदी भाषी भी महसूस करते होंगे। चौंतीस अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक जितनी हिंदी सीखने वालों के लिए उपयोगी है, उतनी ही लेखन कर्म में रत कलम के साधकों के लिए भी।
पुस्तक का नाम -अच्छी हिंदी कैसे लिखें
लेखक – संत समीर
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
4/19 अरुणा
आसफ अली रोड,
नई दिल्ली – 110002
मूल्य – 4.00 रु.
पृष्ठ – 468
जितेंद्र कालरा
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