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० अधिकारी को प्रताडि़त करने के लिए हर बार नई चाल ० राबर्ट वाड्रा डीएलएफ डील रद्द होने के बाद से ही प्रतिशोध की फिराक में
हरियाणा की हुड्डा सरकार को लगता है कि खेमका से चिढ़ हो गई है। तभी तो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी खेमका को प्रताडि़त करने के लिए हर बार नई कोशिश करती नजर आती है। बेशक सरकार को अधिकारी के खिलाफ रचे हर षडयंत्र में मात खानी पड़ी है और अपने ही लिए गए हर निर्णय पर स्पष्टीकरण देकर साख बचाने पर मजबूर होना पड़ा है, लेकिन प्रतिशोध की भावना इतनी प्रबल है कि हर बार सरकार कोई न कोई नया बहाना लेकर अधिकारी को परेशान कर रही है।
वास्तव में हुड्डा सरकार गुडगांव के शिकोहपुर गांव में राबर्ट वाड्रा डीएलएफ डील रद्द होने के बाद से ही अधिकारी से नाराज चल रही है। इसे लेकर सरकार ने पहले इसी करार में उनके आदेशों को गलत करार दिया और बाद में बीज बिक्री मामले में उन्हें घसीटा जिसमें अधिकारी द्वारा पहले ही की गई शिकायत के चलते सीबीआई जांच शुरू होने के बाद सरकार को ही एक कदम पीछे हटना पड़ा। अब प्रदेश सरकार ने चुनाव ड्यूटी के बहाने अधिकारी को मौजूदा पद से हटाकर उन्हें नए तरीके से परेशान करने की नाकाम कोशिश की है। सरकार की ऐसी मानसिकता को प्रदेश के विपक्षी नेताओं ने भी कटघरे में खड़ा किया है और इसे विद्वेष की भावना से लिया गया करार दिया है। देखें तो सरकार ने गत 12 नवंबर को प्रदेश के 7 आईएएस और एक एचसीएस अधिकारी को कुछ पदों का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा। इसके अनुसार यह कार्यभार संबंधित अधिकारियों के चुनाव ड्यूटी पर चले जाने की वजह से उनके लौटने तक की अवधि के लिए दिया गया। सूत्रों की मानें तो संबंधित किसी भी अधिकारी के कार्यभार को लेने के लिए कोई भी अधिकारी नहीं पहंुचा। वहीं अभिलेखागार विभाग के महानिदेशक एवं सचिव अशोक खेमका का अतिरिक्त कार्यभार प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रधान सचिव प्रदीप कासनी को सौंपा। इसे लेकर 13 नवंबर की सुबह ही कासनी खेमका के पद का कार्यभार लेने जा पहुंचे और उन्होंने फोन पर भी खेमका से कार्यभार लेने को कहा। हालांकि कासनी के पहुंचने से पहले ही खेमका अपने कार्यालय में जा पहुंचें और उन्होंने अधिकारी कासनी को सरकार से स्थिति स्पष्ट करवाने को कहा। यही नहीं उन्होंने खुद भी मुख्य सचिव को पत्र लिख कर इसकी पूरी जानकारी देने की बात कही। लेकिन जब कुछ हासिल नहीं हुआ और विवाद को बढ़ते देखा तो सरकार ने स्पष्ट किया कि चुनाव में ड्यूटी पर चले जाने के बाद ही संबंधित अधिकारी के वापस लौटने तक कार्यभार निर्णय लागू होगा।
क्या है मामला
अभिलेखागार के महानिदेशक एवं सचिव अशोक खेमका ने इस संबंध में 20 नवम्बर को मुख्य सचिव पीके चौधरी को जो पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है उसके अनुसार वे मुख्य सचिव और अपने प्रधान सचिव से अनुमति लेकर ही निजी अवकाश पर गए थे। चुनाव ड्यूटी पर रवाना हुए बिना उनके पद का कार्यभार किसी दूसरे अधिकारी को कैसे सौंपा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो चुनाव आयोग ने भी अभी तक उनकी चुनाव ड्यूटी को निश्चित नहीं किया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि अधिकारी का प्रभार किसी दूसरे अधिकारी को पहले ही सौंप दिया गया होता। उधर चुनाव आयोग ने भी उन्हें डयूटी के आदेश नहीं दिए थे तो अधिकारी को भारी परेशानी उठानी पड़ती और वेतन न मिलने की नौबत आ जाती क्यांेकि न तो वे मौजूदा पद पर रहे और न ही उन्हें कोई आगामी जिम्मेवारी मिली थी। इसी चाल में ही सरकार की अधिकारी को फसाने की मंशा नजर आती है। जिस पर सवाल उठाते हुए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रामविलास शर्मा, वीर कुमार यादव, विपक्ष में भाजपा के विधायक अनिल विज एवं इनेलो के प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने इसे भेदभाव की राजनीति और ईमानदार अधिकारियों को परेशान किए जाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि हुड्डा सरकार हाईकमान को खुश करने के लिए ऐसे निर्णय ले रही है। जिससे सरकार की साख को बट्टा लग रहा है और मात खाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
एक नजर में अशोक खेमका
अशोक खेमका 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के बाद उन्हें हरियाणा राज्य की सरकारों द्वारा स्थानांतरित किया गया। खेमका 21 साल के सेवाकाल में 45 बार स्थानांतरित हुये हैं। ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान पांच साल में नौ बार तबादला हुआ और निदेशक के रूप में श्रम एवं रोजगार एवं प्रशिक्षण विभाग में 15 महीनों का कार्यकाल पूरा किया, जो कि सेवा के 21 वषोंर् के दौरान अपने सबसे लंबा समय है।
मौत की धमकी
कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच संदिग्ध भूमि सौदों पर कार्रवाई करने वाले खेमका को जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी हैै। इस संबंध में पंचकुला पुलिस को शिकायत दर्ज कराई गई है।
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