ईमानदार और साहसी होने के रचे गए आभामंडल सच की एक कौंध से कैसे चकनाचूर हो जाते हैं यह चंद घंटों में देश-दुनिया ने देख लिया। तहलका के तेजपाल और आम आदमी पार्टी के केजरीवाल के पीछे लामबंद उनके सारे सिपहसालार एकाएक लोगों के मन से उतर गए। संयोग है कि जिन तीरों से धर्मनिरपेक्षता के सूरमाओं ने समय-समय पर विरोधियों पर वार किए आज वह तीर दोनों के अस्तित्व में जा धंसे हैं। स्टिंग तरुण का पसंदीदा हथियार था, आज अरविंद की पार्टी इस डंक का शिकार होकर छटपटा रही है। आरोपों की धार केजरीवाल की खासियत थी, आज तेजपाल की पेशेवर पहचान इससे लहूलुहान है। तहलका मचाने वाले खुलासे तरुण ने बहुत किए, चुन-चुनकर शिकार करने और एकपक्षीय पत्रकारिता के आरोप भी लगातार लगे, किन्तु स्टिंग महारथी का यह विषधर रूप लोगों की कल्पना से भी परे था। तरुण के समस्त तेज को एक झटके में हर लेने वाली यह घटना एक खिड़की की तरह है जहां से देखा जा सकता है कि 'निर्भय और निरपेक्ष' कहलाने वाला मीडिया गिरोह कैसा दुस्साहसी और निर्लज्ज हो चला है। नैतिकता की बात छोडि़ए, कानून से भी बेपरवाह। अपनी सजा खुद ही तय करने वाला। आम आदमी पार्टी के बारे में वेबसाइट के खुलासे उन लोगों के लिए दिल तोड़ देने वाले हैं जो इस पूरी टोली को ईमानदारी का पर्याय मान बैठे थे। ..'बिजनेस क्लास' में सफर, सभी उम्मीदवार 'डमी' और भाड़े के स्वयंसेवक जैसे खरे वचन विधानसभा चुनाव में पार्टी का बुलबुला बैठा दें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि पार्टी ने तमाम फजीहत के बावजूद अपने समर्थकों को हौसला दिलाने के लिए प्रेस कांफ्रेंस के जरिए सफाई जारी की लेकिन बुझे हुए चेहरे बता रहे थे कि बात बिगड़ चुकी है। वैसे, दोनों ही मामलों में 'प्रबंधन पक्ष' की भंगिमा मामले पर लीपापोती करने वाली रही है। आम आदमी पार्टी (ए.ए.पी.) प्रमुख केजरीवाल की तरफ से जहां 'अभी तो और कई स्टिंग आएंगे' जैसे बेपरवाही भरे बयान आए, वहीं तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी तरुण तेजपाल के घृणित अपराध की गंदगी छिपाने वाली मुद्रा में दिखीं। ध्यान रखना चाहिए कि यही केजरीवाल कुछ रोज पहले तक अपनी पार्टी और उम्मीदवारों को अन्य से अलग और ईमानदार बता रहे थे और यही शोमा चौधरी कुछ रोज पहले बलात्कार संबंधी आपत्तिजनक बयान मामले में ट्वीटर पर सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा के निष्कासन की मांग कर रही थीं। कठघरे में खड़ी ए.ए.पी. का खुद ही इस मामले की जांच के लिए कहना और तरुण तेजपाल का स्वयं को प्रायश्चित तौर पर छमाही सजा देना अपर्याप्त, अस्वीकार्य और न्याय व्यवस्था को बौना बताने वाला कदम है। बहरहाल, इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट के 'एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म' या प्रतिष्ठित मैगसायसाय जैसे पुरस्कार अपनी जगह, अपनी और अपनी मंडली की करतूतों का फल भोगने के लिए केजरीवाल और तेजपाल को तैयार रहना चाहिए। यह मौका मीडिया के लिए भी परीक्षा की घड़ी है। जनता की आंखें खोलने वाली ऐसी बड़ी खबरों पर छिटपुट-खानापूरी की खबरों को वरीयता देना, दोषी का खामोशी से साथ देने जैसा अपराध है। किसने यह अपराध किया.. इस खबर पर किस-किस चैनल की हल्ला बोल टोली न्यूज रूम में चुप्पी मारती दिखी, इस बात की पड़ताल पत्रकारों, दर्शकों और पाठकों को करनी चाहिए। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के चौंकाऊ स्टिंग की प्रामाणिकता साबित करना और इस तहलका कांड का पूरा सच दुनिया के सामने लाना हर न्यूज रूम की जिम्मेदारी है। चंद रोज पहले सरकार के साथ डौंडिया खेड़ा में सोना तलाशने निकले मीडिया के लिए यह साख बचाने का एक मौका है। किसी के 'तेज' से विचलित हुए बगैर, खरे सत्य को उद्घाटित करने के लिए यह अग्निपरीक्षा यदि उसने पास कर ली तो कुंदन होकर निकलेगा।
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