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भारत के इतिहास में महात्मा गांधी (1869-1948) तथा पंडित नेहरू (1889-1964) दोनों का व्यक्तित्व अद्भुत, चमत्कारिक तथा विस्मयकारी है। महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी में विश्व की श्रेष्ठतम प्रतिभाओं में से एक थे। वे एक मौलिक चिंतक, समाज सुधारक तथा एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। पंडित नेहरू भारत के राजनीतिक आन्दोलन के नेता और देश की आर्थिक नीति के नियोजक तथा स्वतंत्रता के पश्चात भारत की विदेश नीति के संयोजक थे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने गांधी जी के जन्मदिवस को अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की, जबकि भारत में पंडित नेहरू का जन्म दिवस ह्यबाल दिवसह्ण के रूप में मनाया जाता है। दोनों के सम्बंधों में परस्पर मधुरता तथा कटुता का मिश्रण था। दोनों का व्यक्तित्व प्रभावशाली होते हुए भी अनेक अन्तर्द्वन्द्वों तथा विरोधाभासों से पूर्ण है।
पारिवारिक परिवेश तथा शिक्षा
महात्मा गांधी गुजरात के एक सम्पन्न, संस्कारित वैश्य परिवार में जन्मे थे। घर में पूर्ण सांस्कृतिक वातावरण था। परिवार में इत्र आदि का व्यापार था, अत: इसी कारण इनके परिवार को ह्यगंधीह्ण या ह्यगांधीह्ण कहा जाता है। गांधी जी ने प्राचीन भारतीय साहित्य, पाश्चात्य दर्शन तथा समकालीन विचारधाराओं का गंभीर अध्ययन किया था। इनमें हिन्दुत्व के गौरव तथा भारतीय सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के प्रति अमिट निष्ठा थी। उनका वेदों की पवित्रता पर पूर्ण विश्वास था (देखें, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय, खण्ड 4, पृ. 542-43) 1888 में उन्होंने पहली बार गीता का ज्ञान प्राप्त किया, जिसे वे ह्यगीता माताह्ण कहते तथा अपने ह्यदैनिक जीवनह्ण का आध्यात्मिक स्वरूप निर्धारित करते थे। वे स्वामी विवेकानन्द के अनन्य भक्त थे। इंग्लैण्ड वकालत की पढ़ाई पढ़ने गए थे। वापस आने पर महात्मा गांधी ने राजकोट तथा अन्य स्थानों पर वकालत की थी। 1893 में एक मुकदमे की पैरवी के लिए वे दक्षिण अफ्रीका गए थे, जहां अंग्रेजों की रंगभेद नीति का उन्होंने कटु विरोध किया था।
दूसरी ओर पंडित नेहरू का जन्म प्रयाग में एक अत्यत समृद्ध वकील श्री मोतीलाल नेहरू के यहां हुआ था। इनके पूर्वज नहर के किनारे रहते थे, अत: ह्यनेहरूह्ण कहलाये। इनके पितामह श्री गंगाधर, 1857 के महासमर के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी की ओर से चांदनी चौक, दिल्ली के पुलिस अधिकारी थे, जो दिल्ली में क्रांति होते ही आगरा भाग गए थे (देखें, बी.आर. नन्दा, श्री मोतीलाल नेहरू, पृ.1) गांधी जी का इनके पिता मोतीलाल नेहरू से बड़ा स्नेह था तथा वे मोतीलाल को ह्यबड़ा भाईह्ण कहते थे। महात्मा गांधी के प्रभाव से मोतीलाल के घरेलू वातावरण में बड़ा परिवर्तन हुआ था परन्तु वे मोतीलाल की शराब पीने की आदत को न छुड़ा सके। उदाहरण के लिए जब मोतीलाल को असहयोग आन्दोलन में जेल जाना पड़ा था तो उनके मित्र संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर हरकोर्ट बटलर ने नित्य जेल में उनके लिए ह्यशैम्पेनह्ण की व्यवस्था की थी। (रफीक जकारिया, ए स्टडी ऑफ नेहरू, पृ. 173;बी.आर.नन्दा, पृ. 140) परन्तु 1924 में गांधी जी के आग्रह पर उन्होंने नशाबंदी पर हस्ताक्षर किये थे। पंडित नेहरू ने प्राप्त समृद्धिपूर्ण वातावरण को स्वयं स्वीकार किया। परन्तु उनके घर का सांस्कृतिक वातावरण बिल्कुल भिन्न था। नेहरू को न विस्मृत भारतीय संस्कृति का ज्ञान था और न ही संस्कृत का। वे स्वयं अपने को ह्यसंयोगह्ण से ही हिन्दू मानते थे। वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए तथा हैरो, कैम्ब्रिज तथा लन्दन में वर्ष रहे। पहली बार फेबियनों के प्रभाव से समाजवाद की ओर आकृष्ट हुए। ब्रिटिश जीवन दर्शन तथा उदारवाद से अत्यधिक प्रभावित थे।
परस्पर विरोधी राजनैतिक चिंतन
गांधी जी को भारतीय इतिहास में ह्यआदर्शवादीह्ण, ह्यमहात्माह्ण तथा ह्यअराजकवादी विचारह्ण का व्यक्ति माना जाता है। वे स्वामी विवेकानंद की भांति धर्ममय राजनीति के पोषक थे। उनकी हिन्दू धर्म के नैतिक मूल्यों, सत्य, अहिंसा, स्नेह, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य के प्रति गहरी आस्था थी। वे कार्ल मार्क्स के मार्क्सवाद या साम्यवाद के घोर विरोधी थे। प्रसिद्ध विचारक के.जी.मशरुवाला तथा प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार ने भारत में कम्युनिस्टों की असफलता का मुख्य कारण महात्मा गांधी को माना है। (देखें, मशरुवाला, गांधी एण्ड मार्क्स, पृ. 38, तथा जैनेद्र कुमार, ह्यअकाल पुरुष गांधीह्ण, पृ. 164) गांधी जी के परम शिष्य विनोबा भावे ने कम्युनिस्ट विचारधारा को ह्यआत्मविहीन विचारधाराह्ण तथा कम्युनिस्टों की दृष्टि को ह्यबौद्धिक पीलियाह्ण से ग्रस्त माना है। गांधी जी पूंजीवाद एवं गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या पर गंभीर चिंतित थे। उन्होंने ग्रामीण स्वराज्य के महत्व विचार रखे थे। पट्टाभि सीतारमैया के अनुसार गांधी जी के समाजवाद की रचना भारत में हजारों सालों से पूर्व की थी। (देखें, सोशलिज्म एण्ड गांधी जी) गांधी जी ने लिखा था, ह्ययदि बोल्शेविक व्यवस्था अच्छी है तो मौत की सजाएं, दंगे, अन्य बातें क्यों हो रही हैं। (देखें, यंग इंडिया, 30 अप्रैल। 1925)ह्ण
गांधी जी के विपरीत पं. नेहरू के विचारों में जमीन आसमान का अंतर रहा। रूस के विद्वान प्रो. आर. उल्यानोवास्की ने एक पुस्तक की भूमिका में लिखा, ह्यजवाहरलाल नेहरू ने राजनीतिक विकास का लम्बा रास्ता अपनायाह्ण (देखें, ओरेस्ट मार्टिशन, जवाहरलाल नेहरू एण्ड हिज पालिटिकल व्यूज, मास्को, 1999) यद्यपि पं. नेहरू पाश्चात्य, समाजवाद तथा राजनीतिक चिंतन से पूर्णत: प्रभावित थे तथापि उन्होंने समय-समय पर मार्क्सवाद, समाजवाद, गांधीवाद तथा पाश्चात्य देशों से आयातित राष्ट्रवाद पर अपने विचार व्यक्त किए थे। विश्व तथा भारत में तीव्रता से परिस्थितियां बदलने के कारण उनके विचारों में एकरूपता, सततता तथा क्रमबद्ध विकास का सदैव अभाव रहा।
1916 में पं. नेहरू का गांधी जी से पहला सम्पर्क हुआ। वे गांधी के चुम्बकीय व्यक्तित्व तथा भारतीय जनता पर उनके प्रभावों से अत्यधिक प्रभावित हुए, परन्तु उनके वैचारिक मूल्यों से नहीं। यूरोप की अपनी दूसरी यात्रा के दौरान नवम्बर, 1927 में पं. नेहरू रूस भी गए, तथा वहां के समाजवादी क्रियाकलापों को देख चकाचौंध हो गए। बाद में उसी की नकल के फलस्वरूप भारत में पंचवर्षीय योजनाएं प्रारम्भ की थीं। उन्होंने अपने कांग्रेस अधिवेशनों के अध्यक्षीय भाषणों में (1929, 1936, 1937) में अपने भाषण का विषय ह्यसमाजवादह्ण का यशोगान रखा। उन्होंने देश की गरीबी दूर करने का मार्ग समाजवाद बताया। (देखें, सलेक्टिड वर्क्स आफ जवाहरलाल, भाग 4, पृ. 192) प्रो. उल्यानोवास्की, पं. नेहरू के 1930 से उनके अंतिम दिनों के काल में उनके विचारों में विरोधाभास मानते है। पं. नेहरू केवल ह्यहृदय से समाजवादीह्ण थे परन्तु साथ ही वे ह्यबुर्जुआ राजनीतिक संगठन के मुखियाह्ण थे।
प्रत्यक्ष राजनीति में टकराव
गांधी जी आयु में पंडित नेहरू से २० साल बड़े थे, परन्तु भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में दोनों ने लगभग एक साथ ही प्रवेश किया था। गांधी जी सबसे पहले कांग्रेस के अधिवेशन 1901 में कोलकाता गए थे, परन्तु उनकी भूमिका एक सामान्य दर्शक की थी। उन्होंने वहां की अव्यवस्थाओं की कटु आलोचना की थी। पंडित नेहरू ने 1912 में बांकीपुर अधिवेशन में पहली बार बस यूं ही हल्के-फुल्के अंदाज में देखने भर के लिए भाग लिया।
1916 में गांधी जी तथा नेहरू के सम्पर्क प्रगाढ़ होते गए। संक्षेप में पं. नेहरू ने गांधी जी द्वारा चलाए प्रत्येक आन्दोलन-चम्पारण, असहयोग, सविनय अवज्ञा आन्दोलन व्यक्तिगत आन्दोलन और 1942 के आन्दोलन में भाग लिया। वे लगभग 10 वर्षों तक जेल में भी रहे।
परन्तु यह भी सत्य है कि वे किसी भी आन्दोलन के स्थापित होने या रोकने से गांधी जी पर क्षुब्ध तथा क्रोधित हो जाते थे, उदाहरणत: जब 5 फरवरी, 1922 को गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन स्थगित किया, तो जहां पं. मोतीलाल नेहरू गुस्से में भरकर बाहर हो गए, वहीं पंडित नेहरू ने गांधी जी को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा कि गांधी जी ने शून्य कर देने वाली खुराक दी।
1944 में कांग्रेस संगठन में नेहरू गुट का वर्चस्व स्थापित हो गया। अब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद का महत्व नहीं रहा और साथ ही महात्मा गांधी का प्रभाव भी तीव्रता से क्षीण होता गया। गांधी जी ने स्वयं कहा कि, मैं तो अब खोखला कारतूस रह गया हूं।
कांग्रेस का भविष्य
इसमें कोई सन्देह नहीं कि 1915 से 1937 तक कांग्रेस के संविधान में समय-समय पर संशोधनों, परिवर्तनों में गांधी जी को सर्वोच्च भूमिका रही। तभी 1919 में कांग्रेस एक जनव्यापी संगठन बन सका। अन्यथा यह केवल एक राजनीतिक मंच था। गांधी जी ने 1937 में भारत के सात प्रांतों में कांग्रेस सत्ता की स्थापना तथा उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार से अत्यन्त दु:खी हो गए थे। तभी से वे कांग्रेस के भविष्य के बारे में सोचने लगे थे। उनके तत्कालीन लेखों, भाषणों, प्रस्तावों से उनकी मानसिक स्थिति की स्पष्ट झलक मिलती है। उन्होंने 1946 में कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिए कुछ पग उठाए परन्तु राजसत्ता के उतावलों ने कोई ध्यान न दिया। अंत में निराश होकर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विधिवत समाप्त कर लोक सेवक संघ की स्थापना की घोषणा की। पर अब गांधी जी की आवाज सुनने वाला कोई कांग्रेसी न था, अत: 1885 में ए.ओ.ह्यूम द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक प्रकार से अन्त महात्मा गांधी की घोषणा से हो गया। अनेक पुराने कांग्रेसी नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए।
वर्तमान में कांग्रेस को महात्मा गांधी की कांग्रेस कहना उनके नाम को अपमानित तथा लज्जित करना होगा। काश! यदि आज महात्मा गांधी जीवित होते तो कांग्रेस की दुर्दशा देखकर निश्चय ही मूर्छित हो गए होते। डा. सतीश चन्द्र मित्तल
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