गो विज्ञान सम्मेलन में जुटे देश सैकड़ों गो भक्त
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मेरठ में हुए गो कथा व गो विज्ञान सम्मेलन में उत्तराखंड से आए गो कथाकार गोपाल मणि महाराज ने जहां मुख्यत धर्म, इतिहास और पुराणों के आधार पर म्भारतीय देसी गाय की महिमा श्रोताओं के सामने रखी, वहीं गो वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर निकाले गए निष्कर्षों से सिद्ध किया कि देसी गाय ही मानव क्रांति के स्वास्थ्य एवं आहार संबंधी तमाम समस्याओं का समाधान है।
गो विज्ञान सम्मेलन में तीन वैज्ञानिकों ने पंचगव्य गाय का दूध, दही़, घी़, मूत्र व गोबर के महत्व और उपयोगिता पर प्रकाश डाला। ये सभी वैज्ञानिक उस टीम का हिस्सा हैं जिसने अब तक देसी गाय के गो मूत्र से संबंधित चार पेटेंट अमरिका से प्राप्त किए हैं। भारतीय पशु आनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक डा. डी. के . सडाना, गुजरात आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, जामनगर के पंचकर्मा विभाग के अध्यक्ष डा. हितेश जाजी और जैन प्रौद्योगिक संस्थान पंत विश्वविद्यालय नैनीताल के डा. रामस्वरूप चौहान ने देसी गाय की वैज्ञानिक उपयोगिता लोगों को बताकर आश्चर्यचकित कर दिया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 20वीं सदी की चमत्कारी औषधि एंटीबायोटिक दवाएं वर्ष 2020 तक अपना प्रभाव खो देंगी। इसके लिए विकल्प खोजना आवश्यक है। गो मूत्र या उसका अर्क ऐसे में आशा की किरण हैं। यह गंभीर और असाधारण रोगों में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। यह मधुमेह, गठिया, वात, पित्त, कफ ़,मिरगी़, कुष्ठ रोग़, कालाजार आदि बीमारियों के अलावा एड्स व कैंसर में भी बेहद असरदार है।
डा. चौहान ने देसी गाय के मूत्र द्वारा रक्त, स्तन, लीवर और आंत के कैंसर से पीडि़त रोगियों के रोगमुक्त होने के उदाहरण गिनाए। देसी गोमूत्र कोषकीय आत्महत्या यानी सेल एपोप्टोसिस रोकता है और क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत करता है। यह फ्री रैडिकल्स बढ़ने की प्रक्रिया रोकता है और प्रभावशाली एंटीऑक्सीडेंट है। इस तरह यह व्यक्ति के युवा बने रहने मंे मददगार है। गो मूत्र का पाउडर भी गोलियों व कैप्सूल के रूप में अब उपलब्ध होने लगा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुडे़ वैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा पता लगाया है कि देसी गो मूत्र को एंटीबायोटिक दवाओं के साथ प्रयोग करने पर सूक्ष्मजीवियों में इसके प्रति प्रतिरोधकता का विकास नहीं हो पाता है और निम्न स्तर की एंटीबायोटिक भी सफल परिणाम दे सकती है। गो मूत्र महा औषधि है। भारतीय चिकित्सा पद्धति मुख्यत: पंचगव्य पर आधारित है। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपने स्तर पर पंचगव्य को लोकप्रिय करने की दिशा में कदम उठा रहा है।
देसी गाय का मूत्र एक बेहतरीन कीटनाशक है और इसलिए विति के कार्य में भी इसका आवश्यक उपयोग है। यह खराब कीटाणुओं को नष्ट करता है। इस प्रकार गोमूत्र से कीट नियंत्रण के साथ भूमि की उर्वरकता बढ़ती है गो मू़़त्र अकेला , अथवा गोबर के साथ नीम की पत्तियों के साथ मिलकर किसानों का मित्र सिद्ध हो रहा है।
देसी गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन वसा व अन्य पदार्थ जिन्हें ह्यन्यूटास्यूटिकह्ण कहते हैं, श्रेष्ठतम किस्म के हैं। यह प्रोटीन ए 2 टाइप की है, जो मानवों के लिए लाभदायक है। इसकी वसा ओभेगा 3 फेटी एसिड टाइप है। यह संपूर्ण शरीर को पोषण देता है। देसी गाय का दूध गर्भाशय को स्वस्थ करता है। इसके दूध व घी के सेवन से गर्भवती माताओं के जननांग स्वस्थ शक्तिशाली बनते हैं और ऑपरेशन के स्थान पर सामान्य प्रसव में सहायता मिलती है। देसी गाय माताओं की भी माता है। शास्त्रों में इसी कारण गाय को मनुष्य से श्रेष्ठ बताया गया है। आज शिशुओं को रोगों से बचाने के लिए 35 प्रकार की वैक्सीन और टीके दिए जाते हैं। इनके स्थान पर गो मूत्र से बनी दवाएं देना पर्याप्त रहेगा ऐसा वैज्ञानिक प्रयोगों के प्रारंभिक परिणाम बताते हैं। देसी गाय के शरीर पर हाथ फिराने से रक्तचाप कम होता है। और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
एक मिनट में हो रही 28 गायों की हत्या
जिस देसी गाय का दूध, मूत्र व गोबर सब कुछ मनुष्य जाति के लिए वरदान हैं, वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। प्रति मिनट 28 गायों की हत्या कर दी जाती है। भारत की 64 नस्लों में लगभग आधी से ज्यादा समाप्त हो चुकी हैं। बाकी में से बीस से ज्यादा नस्लें 100-200 संख्या में ही रह गई हैं। केरल के विचूर, आंध्र की पुन्गानूर और कर्नाटक की कृष्ण वैल्ली जैसी नस्लें इसी श्रेणी में हैं। साहीवाल जैसी श्रेष्ठ दुग्धदाता नस्ल 3 हजार के करीब ही बची है। हां गुजरात की गीर नस्ल 9 लाख से ज्यादा संख्या मंे है। गुजरात की काकरेज भी ठीक ठाक संख्या में हैं हरियाणा , थरपारकर, देओन, मेवाती, गंगातीरी, रेड कंधारी, मालती, सीरी नस्लें भी घटती जा रही हैं। ब्राजील, इजरायल,और चीन में भारतीय गाय की बहुत केन्द्र है। ब्राजील में 1960 में गीर, कांकरेज एवं ओंगोल नस्लों की गाय ले जाई गई थीं। उन्होंने इन्हें विशुद्घ रूप में बचाए रखा। आज इन्हीं गायों में से एक गाय 50 लीटर दूध प्रतिदिन दे रही है। गाय से एक ब्योत में 9 हजार लीटर तक दूध मिल जाता है। यह अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है। गीर गाय आज वहां एक करोड़ में मिलती है। उस गाय का बच्चा एक हजार डॉलर से कम में नहींं मिलता।
भारत में सवा करोड़ सिमट गया है गोवंश
1947 में भारत में जहां 18 करोड़ गो वंश था, आज वह कुल सवा सात करोड़ तक सिमट गया है। विदेशी गाय जर्सी का दूध मनुष्य में कई घातक रोग पैदा करता है, इस थीम को लेकर वैज्ञानिक डा. कीथ वुडफोर्ड ने विश्व प्रसिद्घ पुस्तक ह्य दि डैविल इन द मिल्कमह्ण लिखी है, इस शोध के अनुसार विदेशी गायों का दूध मानव शरीर में वीटा केशोमोर्फीन -7 बीसीएम-7 नामक विषाक्त तत्व छोड़ता है। इसके कारण मधुमेह धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, बचपन में अकाल मृत्यु ऑटिज्म और शिजोफ्रेनिया जैसी घातक बीमारियां होती हैं।भारतीय गाय के दूध में बीसीएम-7 नहीं होता। डा़ वुडफोर्ड और कई अन्य वैज्ञानिकों ने विदेशी और देशी गाय के दूध में बहुत बड़ा अंतर सिद्घ किया है। दूध में मुख्यत: कॅसीन नाम का प्रोटीन होता है। विदेशी गाय में ए-1 और देशी गाय में ए-2 नाम का कॅसीन मिलता है। ए-1 किस्म के दूध में ही उक्त बी सी एम -7 नामक हानिकारक पदार्थ पाया जाता है। आस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में इसलिए ए-2 दूध (देशी गाय का दूध) की कीमत ए-1 से काफी अधिक है। अजय मित्तल
भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा की तरफ से विद्या भारती कुरुक्षेत्र के सभागार में क्षेत्रीय विद्वत परिषद सम्मेलन एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें हरियाणा और दिल्ली से लगभग 80 विद्वानों व विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. सतीश चंद्र मित्तल ने अपने दो शोध पत्रों के आधार पर तथ्यात्मक और ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी देश का संविधान उसकी जनभावना की अभिव्यक्ति, संस्कृति एवं राष्ट्र चिंतन का द्योतक व भविष्य का मार्गदर्शक होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि डॉ. बीआर अंबेडकर का भारत का संविधान बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा, लेकिन इसमें उनकी आत्मा न थी। उन्होंने वर्ष 1953 में कहा था कि लोग कहते हैं कि मैं भारतीय संविधान का निर्माता हूं। मेरा जवाब है कि मुझे जो भी करने को कह गया था वह मैने अपनी इच्छा के विरुद्ध किया। उन्होंने दोबारा कहा कि मेरे मित्र कहते हैं कि मैने संविधान बनाया। मैं यह कहने के लिए बिल्कुल तैयार हूं कि मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो इसे जला देगा। मैं इसे नहीं चाहता, यह संविधान किसी भी व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। जब पंजाब के एक सदस्य डॉ. अनूप सिंह ने उनसे पूछा कि आप इसे जलाना क्यों चाहते हैं तो इसके उत्तर में 19 मार्च 1955 को डॉ. अंबेडकर ने राज्यसभा में कहा कि आप इसका उत्तर चाहते हैं तो सुने हमने देवता के आगमन के लिए एक मंदिर बनाया, लेकिन इससे पूर्व कि वहां देवता स्थापित हों असुरों ने वहां कब्जा कर लिया। अब इसके सिवाए क्या किया जा सकता है कि मंदिर को ध्वस्त कर दिया जाए। प्रो. मित्तल ने कहा कि समय की आवश्यकता है कि भारत के संविधान में पुन: समीक्षा हो। संक्षेप में भारतीय संविधान ऐसा हो जिसकी जड़े अतीत में हों। वर्तमान की आवश्यकता की पूर्ति करते व भविष्य के लिए प्रेरक और मार्गदर्शन हो। प्रतिनिधि
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