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दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी शोर जोरों पर है। इन चारों राज्यों में तो अनेक राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं,किन्तु मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। सभी दलों के दिग्गज नेता रैलियों के जरिए मतदाताओं के रूख को भांपने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा शासित मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां कांग्रेस केन्द्र सरकार की उपलब्धियों को गिनाकर मतदाताओं को रिझाने में लगी है,तो भाजपा अपनी राज्य सरकारों के 10 साल के कामों को गिना रही है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की साफ-सुथरी छवि के सामने कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार माने जा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई खास असर नहीं छोड़ पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री रमन सिंह के सामने कांग्रेस का कोई नेता अपनी धाक नहीं जमा पा रहा है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने बड़बोले बयानों की वजह से चुनाव आयोग के निशाने पर आ चुके हैं। यह कांग्रेस के लिए ठीक संकेत नहीं है।
वहीं दिल्ली और राजस्थान में कांग्रेस अपनी सरकारों के कायोंर् की दुहाई दे रही है,जबकि भाजपा उन सरकारों की नाकामियों को चुनावी हथियार बना कर कांग्रेस पर वार कर रही है। दिल्ली में भाजपा ने वरिष्ठ नेता डॉ. हर्षवर्धन को आगे किया है। भाजपा को वे कितना फायदा पहुंचा पाते हैं, यह वक्त ही बताएगा। जबकि राजस्थान में भाजपा ने वसुंधरा राजे सिंधिया को आगे कर कांग्रेस को बहुत पहले ही कड़ी चुनौती दे दी है। वसुंधरा पिछले कई महीनों से वहां की गहलोत सरकार की कमियां और कारगुजारियां मतदाताओं का बता रही हैं। साथ ही नरेन्द्र मोदी की लहर भी कांग्रेस को झकझोर रही है। बहरहाल इन सभी राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के नेता अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर अब तक हुए सभी सर्वेक्षणों में जन रुझान बता रहा है कि इन चारों राज्यों के चुनावी माहौल पर केसरिया रंग चढ़ चुका है। (जनता की राय बताते मीडिया सर्वेक्षण पृष्ठ 8-9 पर देखें) इसका मतलब तो यही हुआ कि इन चारों राज्यों में भाजपा की सरकारें बनने की ज्यादा संभावनाएं हैं। जाहिर है कांग्रेस चुनावी सर्वेक्षणों को लेकर डरी हुई है। यही वजह है कि कांग्रेस चुनाव पूर्व सर्वेक्षण पर रोक लगाना चाहती है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस समय पूरे देश में कांग्रेस के प्रति लोगों में काफी गुस्सा है। इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। लोग कांग्रेस सरकार के घोटालों से तो परेशान हैं ही। बढ़ती महंगाई और रुपए की बिगड़ती सेहत से भी लोग कांग्रेस से बेहद नाराज हैं। संप्रग सरकार की कमजोर नीतियों से आतंकवादियों और माओवादियों के बढ़ते दुस्साहस से भी आम आदमी का विश्वास संप्रग सरकार से टूट रहा है। पाकिस्तान को कड़ाई से जवाब न देना और चीन की घुड़की के सामने सरकार के हथियार डालने से भी लोग सोनिया-मनमोहन सरकार से चिढ़े दिखते हैं।
इन चार राज्यों के चुनाव को लघु आम चुनाव माना जा रहा है,क्योंकि
इसके करीब छह महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होंगे। इसलिए इन चुनावों में जिस भी पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा उसके पक्ष में पूरे देश में माहौल तो जरूर बन जाएगा। भाजपा की ओर से चुनावी कमान मुख्य रूप से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाल रखी है,तो कांग्रेसी कमान उसके ह्ययुवराजह्ण राहुल गांधी के पास है।
नरेन्द्र मोदी के धाराप्रवाह भाषणों के सामने राहुल गांधी के लिखित भाषण कहीं नहीं टिक रहे हैं। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी की रैलियों में लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं, तो भीड़ नहीं जुटने की वजह से राहुल की सभाओं का समय बढ़ाया जा रहा है।
स्वाभाविक है कि मीडिया उसी रैली को ज्यादा महत्व देता है,जिसमें भीड़ अधिक जुटती है। मीडिया का यह रवैया कांग्रेस को अच्छा नहीं लग रहा है। इसका सबूत है केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा समाचार चैनलों को भेजा गया वह नोटिस जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान और किसी भाषण के प्रसारण से बचा जाए। ऐसा 15 अगस्त को हुआ था।
उल्लेखनीय है कि उस दिन कई समाचार चैनलों ने लालकिले से प्रधानमंत्री के भाषण के साथ गुजरात से नरेन्द्र मोदी के भाषण को भी एक साथ प्रसारित किया था। सवाल है कि सरकार ने उसी समय मीडिया को यह नोटिस क्यों नहीं भेजा? जनता सब जानती है। आगे के कुछ पन्नों में जनता के ही मिजाज को बताने का लघु प्रयास किया गया है। अरुण कुमार सिंह
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