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मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री सहित 60 विधानसभा सीटों की सुरक्षा रहेगी अर्द्धसैनिक बलों के हवाले

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Nov 16, 2013, 12:00 am IST
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कांग्रेस की मुश्किलें और संभावनाएं

दिंनाक: 16 Nov 2013 15:52:20

 

 

कांग्रेस का जादू जनता को रिझाने में सफल नहीं हो पा रहा है। टिकट वितरण से असंतुष्ट कांग्रेसी खेमा कांग्रेस के लिए इस चुनाव में विभीषण की भूमिका निभाने को राह में खड़ा हुआ है।

 

मध्य प्रदेश में आगामी 25 नवम्बर को विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा-कांग्रेस समेत सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। प्रत्याशियों के नामांकन संबंधी सभी प्रक्रिया पूरी कर ली गई हैं। भाजपा जहां दोबारा सत्ता में आने के लिए मजबूत दिखाई पड़ रही है तो वहीं कांग्रेस भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला करने के लिए आगे कर रही है। फिर भी कांग्रेस का जादू जनता को रिझाने में सफल नहीं हो पा रहा है। टिकट वितरण से असंतुष्ट कांग्रेसी खेमा कांग्रेस के लिए इस चुनाव में विभीषण की भूमिका निभाने को राह में खड़ा हुआ है। पिछले दिनों कांग्रेसी सांसद राव उदय प्रताप सिंह के भाजपा में शामिल होने और टिकट नहीं मिलने से असंतुष्ट शाजापुर जिले के नरसिंह के कीटनाशक पीकर आत्महत्या करने क ी घटना से कांग्रेस की खासी किरकिरी हो चुकी है। फिर कांग्रेस भाजपा शासनकाल की कमियां गिनाकर मतदाताओं पर प्रभाव डालना चाह रही है, लेकिन जनता उसे एक सिरे से नकार रही है। लिहाजा आगामी चुनाव में एक बार फिर से भाजपा सत्ता में काबिज होती दिखाई पड़ रह रही है।

 

मध्य प्रदेश में अब अन्तर्कलह, गुटबाजी और भीतरीघात तो कांग्रेस-भाजपा दोनों ही पार्टियों में हैं, लेकिन भाजपा ने समय रहते इसे संभाल लिया है। वहीं कांग्रेस के लिए यह बड़ी मुश्किल बन गई है। टिकट बंटवारे को लेकर राहुल का सूत्र मध्य प्रदेश में पूरी तरह असफल हो चुका है। टिकट बंटवारे की भारी गलतियों और उसके बाद पैदा हए हालात ने कांग्रेस की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है। तमाम डैमेज कंट्रोल की कवायद के बाद भी कांग्रेस के बागी शांत नहीं हो रहे हैं। ये बागी मैदान में उतरे अपने ही पार्टी के प्रत्याशी का खेल बिगाड़ने को तैयार बैठे हैं। टिकट बंटवारे से पहले लग रहा था का इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है, लेकिन कांग्रेस के अन्तर्कलह और पार्टी में बढ़ी गुटबाजी से पैदा हुई मुश्किल ने भाजपा के लिए जीत की राह आसान कर दी है। चुनावी नतीजों पर अपनी राय व्यक्त करते हुए राजनीतिक विश्लेषक यही दावा कर रहे थे कि जिस पार्टी का उम्मीदवार योग्य और सशक्त होगा जनता उसी को चुनेगी। अब जब नामांकन और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है तब प्रत्याशियों के मामले में जहां भाजपा 21 साबित हो रही है, वहीं कांग्रेस के कदम अन्तर्कलह और भीतरीघात से पीछे हट रहे हैं। विश्लेषक भी अब मान रहे हैं कि भाजपा के शासनकाल में हुई गलतियां भी अब कांग्रेसियों के सामने बौनी पड़ रही हैं।

 

कांग्रेस के लिए शिवराज सिंह चौहान और श्री नरेन्द्र मोदी दोनों ही बड़ी मुश्किल हैं। शिवराज सिंह चौहान का शांत और सरल चेहरा मध्य प्रदेश के लोगों को पसंद आ रहा है। लोग श्री मोदी की आक्रमकता में राजनीति की कई समस्याओं का निदान देख रहे हैं। शिवराज के सामने ज्योतिरादित्य भले ही खड़े हों, लेकिन मोदी के सामने राहुल टिक नहीं पा रहे। इस लिए जैसे-जैसे आने वाले आम चुनाव के लिए विधानसभा का महत्व बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे विधानसभा चुनाव में मोदी जी का प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस की मुश्किलों का बढ़ना जारी है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की संभावना को भांपकर भाजपा के बागी और असंतुष्ट ठंडे पड़ गए हैं। इनका विरोध लगभग खत्म हो चुका है। वहीं कांग्रेसी खेमे में विरोध का सुर बढ़चढ़ कर बोल रहा है जिससे कांग्रेस पार्टी लगातार पिछड़ती जा रही है।

नये, युवा और स्वच्छ छवि वाला प्रत्याशी कांग्रेस के लिए एक बड़ी संभावना हो सकता था। इसी के बल पर वे सत्ता-विरोधी भावना और भाजपा कार्यकर्ताओं के असंतोष का लाभ ले सकते थे, लेकिन अंतिम समय में कांग्रेस के दिग्गजों ने सारी नीति-राजनीति को ताक पर रख अपने-अपने समर्थकों के लिए जी-जान लग। कांग्रेस अध्यक्ष पर तो टिकट बेचने तक का आरोप लगा है। आलोट देवसर विधानसभा के कांग्रेस प्रत्याशी का पर्चा जिस तरह से निरस्त हुआ, कारण भले ही अलग-अलग हों, लेकिन दिग्गज नेताओं की बोलती बंद है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की तमाम कोशिश के बाद भी प्रदेश के हालात खराब हो गए हैं। उज्जैन के सांसद प्रेमचंद गुड्डु ने ऐसी चाल चली कि कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी कमल परमार का पर्चा निरस्त हो। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि कांग्रेस के पास प्रेमचंद के बेटे अजीत बोरासी का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। दूसरी तरफ कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता नूरी खान ने सांसद और कांग्रेस नेता प्रेमचंद गुड्डू पर भाजपा से सौदा करने और उनसे अपनी जान का खतरा होने की शिकायत भी की है। कांग्रेस के एक और सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने पचौरी पर अपने गुट के लोगोें में टिकट बंटवारे में जीतने वाले प्रत्याशियों को दरकिनार करने का आरोप लाया है। आपसी पैंतरेबाजी के काऱण कांग्रेस की संभावना अब धूमिल दिख रही है।

हालांकि कांग्रेस-भाजपा सरकार को बेनकाब करने की भरसक कोशिश कर रही है, लेकिन केन्द्र सरकार के घोटाले और भ्रष्टाचार के कारण वह डरी-सहमी है। कांग्रेस द्वारा जारी आरोपों को भाजपा ने झूठ का पुलिंदा बताते हुए इसे आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया है। आरोप लगाने के तीसरे ही दिन भाजपा ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर आरोप की शिकायत कर दी। एक लाख 46 हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप को निराधार बताते हुए भाजपा ने कार्यवाई करने की मांग चुनाव आयोग से की है। भाजपा इस मुद्दे पर मानहानि का दावा करने पर भी विचार कर रही है।

दरअसल भाजपा मध्य प्रदेश में पक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका अदा कर रही है। तथ्य और साक्ष्यों के बिना लगाए गए सभी आरोपों को भाजपा सिरे से नकार देती है। वहीं भ्रष्टाचार, घोटाले और महंगाई के सवाल पर उलटे कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। दूसरी तरफ पांच वषोंर् की निष्क्रियता पर जनता को जवाब देना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है। चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस से अधिक भाजपा आक्रामक तेवर में है। यही कारण है कि कांग्रेस को भाजपा के पलटवार का कोई जवाब नहीं सूझ रहा है। कांग्रेस के पास शिवराज के चेहरे, अनुभव और लोकप्रियता का भी जवाब नहीं सूझ रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस आलाकमान की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। सिंधिया की मेहनत की हवा उनकी पार्टी के नेता ही निकाल रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस के छत्रपों को भी सिंधिया का भय सता रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने अलग-अलग योजनाओं के द्वारा सभी वर्गांे का मन जीतने की कोशिश की है। यही कारण है कि 18 से 40 वर्ष के युवा भी मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज जी को ही पसंद कर रहे हैं।

चुनाव पूर्व तमाम सर्वे भाजपा की स्पष्ट बढ़त बता रहे हैं। भाजपा के स्टार प्रचारकों का दौरा इस बढ़त को और अधिक बढ़ाने वाला साबित होगा। चुनाव विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस की असली कठिनाई तो चुनाव के बाद शुरू होगी। चुनावी शोर में कांग्रेस का असंतोष भले ही कम दिख रहा हो, लेकिन चुनाव के बाद असंतोष का विस्फोट होना निश्चित है।

चुनाव पर्व में युवाओं की भूमिका

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में लगभग 35 प्रतिशत युवा मतदाता हैं। इस वर्ष के चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग 10169941 मतदाता अधिक हैं। इन नये मतदाताओं में अधिकांश युवा हैं और इनमें मतदान को लेकर गजब का उत्साह है। हालांकि कांग्रेस के चुनावी चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया का थोड़ा आकर्षण भी युवा मतदाताओं में है, लेकिन प्रधानमंत्री के लिए भाजपा के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी का युवाओं पर जादू चल रहा है। भाजपा उनके जादू को अपने पक्ष में करने की भरसक कोशिश कर रही है। नये और युवा मतदाताओं में मतदान के प्रति काफी उत्साह है, इस लिए वे मतदान तो करेंगे ही। अब पार्टियों के ऊपर निर्भर करता है कि युवाओं का समर्थन वे कैसे प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में युवाओं को लुभाने वाली घोषणाएं की हैं। कांग्रेस ने युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने और छात्र-छात्राओं को लैपटॉप और स्कूटी देने के लुभावने वायदे किए हैं। भाजपा ने पहले ही युवाओं के लिए, कम ब्याज पर उन्हें ऋण दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री ह्ययुवा पंचायतह्ण का आयोजन कर नौजवानों का दिल जीतने की कोशिश पहले ही कर चुके हैं। मध्य प्रदेश का युवा अपने मत के अलावा आम मतदाता को भी प्रभावित करने की स्थिति में है। मध्य प्रदेश में 18 से 35 वर्ष तक के युवाओं की काफी बड़ी संख्या है। ये युवा राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार हैं। वे राजनीति को प्रभावित कर रहे हैंं। यह वर्ष स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयन्ती का वर्ष है। इस उपलक्ष्य में अनेक शासकीय और अशासकीय कार्यक्रम आयेाजित हुए हैं। भाजपा ने भी कुछ समय पहले ह्यविवेकानन्द युवा यात्राह्ण का आयोजन सभी सभा केन्द्रों पर किया था। इसमें लाखों युवाओं ने भागीदारी की थी।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की सीट चुरहट चुनाव तक केन्द्रीय अर्द्धसैनिकल बलों के हवाले रहेंगी। चुनाव आयोग ने आर्थिक तौर पर संवेदनशील 60 विधानसभा क्षेत्रों में केन्द्रीय सुरक्षा बल तैनात करने का फैसला किया है। इनमें अधिकांश मंत्रियों सहित सीमावर्ती जिलों की सीटें शामिल हैं।
सूत्रों की मानें तो मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के अधिकारियों का कहना है कि पिछले अनुभवों के आधार पर प्रदेश की 60 सीटें आर्थिक तौर पर संवेदनशील मानी गई हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों में विशेष निगरानी के इंतजाम करने के निर्देश चुनाव आयोग ने दिए हैं। इसके मद्देनजर केन्द्र सरकार से मिली केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बल की 23 कंपनियों को प्राथमिकता के आधार पर संवेदनशील सीटों पर तैनात किया गया है। इसमें मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की सीटों के अलावा भिंड, लहार, ग्वालियर पूर्व, दतिया, पिछोर, बीना, रेहली, जतारा, बिजावर, पथरिया, दमोह, पवई, सतना, नागौद, रीवा, चितरंगी, सिंगरौली, बडवाह, मुडवारा, पाटन, जबलपुर केंट, बालाघाट, गोटेगांव, छिंदवाडा, हरदा, सिवनी–मालवा, सोहागुपर, भोजपुर, सिलवानी, विदिशा, सिरोंज, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण–पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हुजूर, सीहोर, देवास, हाटपिपल्या, हरसूद, बुरहानुपर, महेश्वर, पानसेमल, मनावर, धार, इंदौर 2, इंदौर 3, इंदौर 4, इंदौर 5, महू, महिदपुर, उज्जैन उत्तर, रतलाम सिटी, जावरा, मंदसौर, मल्हारगढ और जावद शामिल हैं।
शराबी की तस्करी पर रोक
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों का 24 घंटे पहरा शराब फैक्ट्रियों पर भी रहेगा। प्रदेश में बडवाह, नौगांव, ग्वालियर, सेतहगंज, सेजवाया, सबलपुरा बडवाह, पीलूखेडा और बोराली में डिस्टलरियां हैं। इसके अलावा पुलिस 18 विदेशी मदिरा विनिर्माणी इकाई और सात बीयर विनिर्माणी इकाइयों पर नजर रखेगी। शराब की आवाजाही को रोकने के लिए निर्वाचन कार्यालय ने एक हजार 81 नाके भी बनवाए हैं। इनमें अधिकांश उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हुए हैं।

 

 

 

 

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