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वर्षा गई, शरद् ऋतु आई,
थोड़ी-थोड़ी सर्दी लाई।
गर्मी जाकर पीहर बैठी
सर्दी लौट पिया घर आई।
दिन में धूप सुहानी लगती
रातों में खुल गई रजाई।
हवा सिहरती, बदन कांपता
याद आ गई सबको माई।
बदन-बदन पर स्वेटर हंसते
गुलूबन्द ने ऐंठ दिखाई।
सिर पर सुन्दर टोपी फबती,
सूट-कोट ने शान दिखाई।
जगह-जगह पर आग तापते
अंगारों ने आंच दिखाई।
किट-किट करते लोग बोलते
सर्दी इतनी क्यों है भाई?
यह ऋतु-चक्र बड़ा अच्छा है
जीवन की इसमें सच्चाई।
वर्षा, गर्मी और शीत ऋतु
जीवन का सुख देते भाई।
राकेश भ्रमर
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