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आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता में काबिज करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल के दोहरे चेहरे से न सिर्फ राजनीतिक दल बल्कि ऑटो वाले भी परिचित हो गए हैं। कुछ माह पहले तक गरीबों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का दावा करने वाले केजरीवाल भी दूसरे नेताओं की तरह साम्प्रदायिक भाषा बोलने लगे हैं। यह कहना है दिल्ली में ऑटो चलाने वाले नेमीचंद का।
नेमीचंद बताते हैं कि जब अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते और बोलते सुना तो एक पल के लिए लगा था कि शायद दिल्ली पूरी तरह से बदल जाएगी। आम आदमी के हितों की सुनने वाला चलो कोई तो इस शहर में खड़ा हुआ, लेकिन हाल ही में केजरीवाल के इत्तेहाद ए मिल्लत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद तौकीर रजा से मिलने के बाद हमारी आंखों पर चश्मा उतर गया है। इससे साफ हो गया कि वे भी कांग्रेस व दूसरे राजनीतिक दलों की तरह वोटों की राजनीति के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
यही नहीं इससे पहले ओखला के जामिया नगर में वर्ष 2008 में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की मुठभेड़ को लेकर भी केजरीवाल ने मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया था।
नेमीचंद कहते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस की तरह ही ह्यआपह्ण भी अपने हितों के लिए ही काम करेगी उसे आम लोगों की परेशानी से कुछ लेना नहीं है। कुछ समय तक केजरीवाल ऑटो वालों के हमदर्द बने घूमते थे, लेकिन आज साफ हो चुका है कि उनका मकसद सिर्फ राजनीति करना ही है। नेमीचंद किराये पर ऑटो चलाकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। परिवार में पत्नी और पांच बच्चे हैं जिन्हें पालने के लिए उन्हें दिन-रात मशक्कत करनी पड़ती है। वह चाहते हैं कि उनका भी अपना ऑटो हो जिससे मेहनत की कमाई से घर का गुजारा ठीक से हो सके। अभी दिनभर की कमाई ऑटो मालिक का हिस्सा, सीएनजी और पुलिस के चालान भुगतने में चली जाती है। उन्हांेने बताया कि वर्ष 2008 में ऑटो के परमिट के लिए दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग में आवेदन किया था, लेकिन ऊपरी पहंुच नहीं होने की वजह से आज तक परमिट नहीं मिला, जबकि दलालों का परिवहन कार्यालय में बोलबाला है। उनका आरोप है कि दिल्ली सरकार राजधानी में ऑटो मालिक को ही ऑटो चलाने की अनुमति होने की बात का दावा करती है, जबकि दिल्ली में अभी भी अधिकांश ऑटो किराये पर मालिकों ने दिए हुए हैं।
हकीकत तो यह है कि एक ही आदमी के नाम पर पांच-पांच परमिट जारी किए हुए हैं। परमिट नहीं मिलने पर नेमीचंद ने अदालत की ओर रुख किया और निचली अदालत से लेकर उच्च न्यायालय तक गए। कभी यातायात पुलिस वाले चालान कर देते हैं तो अदालत द्वारा लगाया जुर्माना भरने के साथ-साथ यातायात पुलिस की मार भी झेलनी पड़ती है। जुर्माने के अलावा कई दिनों परमिट निलंबित होने से घर का चूल्हा जलाना मुश्किल हो जाता है। वरिष्ठ संवाददाता
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