युवा बदल रहे हैं अपना कस्बा
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युवा बदल रहे हैं अपना कस्बा

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Nov 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Nov 2013 16:12:28

चार साल पहले महाराष्ट्र के पचौड़ा (जलगांव) में बाइस-चौबीस साल के दर्जन भर युवाओं ने जब कस्बे में लगे रक्तदान शिविर में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया तो स्थानीय लोगों ने इसे समूह के चंद युवाओं का अति उत्साह ही समझा। इसलिए उनकी गतिविधियों को समाज में अधिक तवज्जो नहीं मिली। फिर सफाई अभियान, नुक्कड़ नाटकों का सिलसिला शुरू हुआ। इन गतिविधियों से समूह को यह लाभ मिला कि नए युवा साथ में काम करने की इच्छा के साथ सामने आए। इस तरह युवाआंे का यह समूह बढ़ने लगा। धीरे-धीरे समूह के सदस्यों ने सौ का आंकड़ा पार कर लिया, लेकिन इस समय तक इनके समूह का अपना कोई नाम था, ना ही काम करने की कोई तय दिशा थी। कोई साइकिल रैली के लिए बुलाता तो हाजिर, कोई मशाल यात्रा के लिए बुलाता तो भी हाजिर।
समय के साथ टीम के सदस्यों ने खुद महसूस किया कि उनकी टीम के पास एक नाम होना चाहिए। लगभग ढाई साल पहले इन युवाओं ने मिलकर अपनी टीम को नाम दिया लक्ष्य। इस समय तक टीम में सदस्यों की संख्या लगभग एक सौ पचास हो गई थी और सभी सदस्य युवा थे। इनमें भी सत्तर फीसदी संख्या तीस साल से कम उम्र के युवाओं की थी। उम्र सभी सदस्यांंे की एक जैसी ही थी, अधिकार भी सबके बराबर क्योंकि लक्ष्य सभी सदस्यों का ही तो था, जो थोड़ा-बहुत भेदभाव था वह लक्ष्य से जुड़े सदस्यों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से ही था। क्योंकि इन सदस्यों में कोई अस्पताल का मालिक था, कोई अखबार की नौकरी वाला था, कोई वेल्डिंंग मशीन पर काम करता था, कोई होटल में प्लेट साफ करता था। लक्ष्य में सचिव की भूमिका निभा रहे और जलगांव में कानून की पढ़ाई पढ़ रहे विजय चौधरी के अनुसार- कहने के लिए हमारे अध्यक्ष डा. जयंत राव पाटिल हैं, और कार्यकारी अध्यक्ष माधव सिंह परदेसी हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि लक्ष्य के मंच पर आकर सभी बराबर हैंं।
26 वर्षीय चौधरी अपनी बात जारी रखते हैं, डॉक्टर साहब इस साल हमारे अध्यक्ष बने हैं, इनसे पहले हमारे अध्यक्ष प्रमोद बारी थे। उनको पचौरा से लगभग पचास किलोमीट दूर जलगांव में एक गैराज में नई नौकरी मिल गई तो उनकी सहमति लेकर सर्वसम्मति से डॉक्टर साहब को अध्यक्ष चुना गया। वर्तमान में बारी लक्ष्य के उपाध्यक्ष हैं। संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष परदेसी 27 साल के हैं और एक क्षेत्रीय मराठी अखबार मेंे नौकरी करते हैं।
दो साल पहले पचौड़ा और उसके आस पास के इलाकों से साम्प्रदायिक दंगों की खबरें आ रही थीं। ऐसा लग रहा था कि यह आग पचौड़ा तक भी पहुंच सकती है। उस वक्त स्थानीय पुलिस वालों ने लक्ष्य टीम से संपर्क किया। पुलिस का कहना था कि इस टीम को कुछ साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाला कार्यक्रम कस्बे में आयोजित करना चाहिए, जिससे दंगों की आग इस कस्बे तक ना पहुंचे। उस वक्त चौधरी वेल्डिंग में काम करने वाले 24 वर्षीय जगदीश चौधरी ने नुक्कड़ नाटक तैयार कर जगह-जगह उसकी प्रस्तुति दी थी। चौधरी याद करते हुए कहते हैं- ह्यउस दौरान हमारे आयोजन में हजार-हजार लोगों की भी भीड़ इकट्ठी हुई थी।ह्ण लक्ष्य को लेकर कार्यकारी अध्यक्ष युवराज कहते हैं- इस वक्त लक्ष्य के साथ दो सौ के आस पास युवा सीधे तौर पर जुड़े हैं। इनमें अधिकतर युवा कामकाजी हैं और कुछ कॉलेज जाने वाले भी हैं। कुल मिलाकर सबके पास अपनी अपनी व्यस्तता है, उसके बावजूद जब हम कोई आयोजन रखते हैं, सभी एक साथ इकट्ठे होते हैं। वैसे हमारी कोशिश होती है कि जो कार्यक्रम तय हो, वह छुट्टी वाला दिन ही हो। हमारे लिए अपने एक-एक सदस्य की राय महत्वपूर्ण है।
युवराज आगे कहते हैं, आयोजन के लिए पैसों की तकलीफ कभी नहीं आती, यदि हमने बीस-बीस रुपए भी इकट्ठे किए तो तीन-चार हजार रुपए आसानी से इकट्ठा हो जाते हैं। एक आयोजन के लिए इससे अधिक क्या चाहिए?
लक्ष्य ने पचौड़ा में अपने सौ सदस्यों के नाम, रक्त समूह और मोबाइल नंबर वाली एक डायरी तैयार की है। इस डायरी को लक्ष्य के साथियों ने पान की दूकान, टेलीफोन बुथ, दवा की दूकान और नसिंर्ग होम के अंदर रखवाया। डायरी में नाम नंबर और रक्त समूह देने के पीछे स्पष्ट संदेश यही था कि जिन्हंे खून की जरूरत हो, वे सीधा रक्तदाता से बात करें। लक्ष्य से जुड़े साथी कहते हैं, रक्तदाता और जो जरूरतमंद है, उसके बीच में हमारा होना जरूरी नहीं है, उनका सीधा संवाद हो इसीलिए यह डायरी तैयार करवाई गई। साथी यह भी कहते हैं, ब्लड बैंक में कई बार जरूरत पड़ने पर हमें खून नहीं मिला। इसी वजह से यह कदम उठाना पड़ा। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि जिन लोगों के नाम और नंबर डायरी में लिखे गए हैं, उन सभी से इसके लिए सहमति पहले ले ली गई है। एक बार लक्ष्य के एक साथी के पास रात के वक्त शिरडी से फोन आया। कोई महिला फोन पर रो रही थी। उनके बच्चे को खून की जरूरत थी। फिर क्या था, वे साथी रात को ही लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए निकल पड़े और खून देकर लौटे।
पचौड़ा में प्रबंधन की पढ़ाई कराने वाला कोई संस्थान नहीं था। बच्चों को पचास किलोमीटर दूर जलगांव जाना पड़ता था। पिछले साल कस्बे में लक्ष्य के प्रयास से एक प्रबंधन संस्थान प्रारंभ हुआ। संस्थान का सारा काम 32 वर्षीय अतुल आर सिरसमाने देख रहे हैंं। प्रबंधन में एक साल के डिप्लोमा कोर्स से जुड़े प्लेसमेन्ट के सवाल पर सिरसमाने स्पष्ट कहते हैं- ह्यहम अभी मैदान में बिल्कुल नए हैं, आने वाले समय में इस दिशा में भी हम जरूर कुछ करेंगे।ह्ण छात्रों से हम एक साल के लिए मात्र साढ़े चार हजार रुपए लेते हैं। अपनी बातचीत में सिरसमाने जोड़ते हैं। 
लक्ष्य के सदस्य गोबिन्द पाटिल के अनुसार उन्हें और उनके एक दर्जन दूसरे साथियों को महाराष्ट्र पुलिस में शामिल होने की तैयारी के लिए टी शर्ट और जूते लक्ष्य के दूसरे साथियों ने मिलकर दिलवाए। एक होटल में काम करने वाले शाइबू के अनुसार वे सुबह ग्यारह बजे से शाम सात-आठ बजे तक होटल में होते हैं। उसके बाद रात ग्यारह बजे से सुबह तीन-चार बजे तक तीन बंगलों की चौकीदारी करते हैं। इस तरह उनके पास सोने के लिए तीन से चार घंटे ही एक दिन में होते हैं। शाइबू कहते हैं- इसके बावजूद कभी लक्ष्य के साथी कोई कार्यक्रम करते हैं तो उसमें समय निकालकर शामिल होता हूं।  कौन कहता है कि आज के युवा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते। जिन्हें ऐसा लगता हो, उन्हें एक बार लक्ष्य की टीम से मिलना चाहिए। विश्वास जानिए आज के युवाओं को लेकर आपकी सोच बदल जाएगी। आशीष कुमार ह्यअंशुह्ण

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