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क्या देश को दूसरा सचिन मिलेगा?

by
Nov 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Nov 2013 15:37:01

आवरण कथा ह्यसचिन अद्वितीय,पारी अविजितह्ण में क्रिकेटर सचिन तेन्दुलकर की  बहुत ही तारीफ की गई है। सचिन ने भारत का नाम पूरी दुनिया में ऊंचा किया है। सचिन की सबसे बड़ी विशेषता है कि इतनी ख्याति के बाद भी वे बहुत ही नम्र हैं। वे कभी किसी विवाद में नहीं पड़ते हैं। दुनिया में जब तक क्रिकेट रहेगा तब तक सचिन का नाम रहेगा। सचिन लोगों,खासकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। ऐसे लोग विरले ही होते हैं।
-विशाल कुमार
शिवाजी नगर,वडा, जिला-थाणे (महाराष्ट्र)
० सचिन का क्रिकेट सफर पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए मैच से शुरू हुआ था। पाकिस्तानी खिलाडि़यों की बदतमीजी के बावजूद उन्होंने जिस धैर्य के साथ क्रिकेट खेला और उन्हें पराजित किया,वह कोई छोटी बात नहीं थी। सचिन ने क्रिकेट साधना के बल पर ही हर प्रकार की दुनियादारी को जीत लिया। क्रिकेट के जरिए ही उन्होंने देश में राष्ट्रवादी विचारों को मजबूत किया।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, भिण्ड(म.प्र.)
० इस लेख ह्यसचिन नहीं इसे जिन्दगी कि किताब कहिएह्ण में सचिन के बारे में   बहुत ही अच्छा समीक्षात्मक वर्णन किया गया है। इसमें सचिन के कुछ अनछुए पहलू भी उजागर हुए हैं। इसको पढ़कर सचिन के जीवन के बारे में और जानने की इच्छा होती है। सचिन तो सचिन हैं। इतने वषोंर् तक क्रिकेट खेलना भी सचिन के लिए ही संभव है। आजकल तो नए-नए क्रिकेटर बहुत जल्दी चकाचौंध की दुनिया में फंस जा रहे हैं।
-उमेदुलाल
ग्राम-पटुड़ी,पो-धारकोट
जिला-टिहरी गढ़वाल
(उत्तराखण्ड)
शुद्घ राजनीति
तेलंगाना पर शुद्घ राजनीति हो रही है। ह्यतेलंगाना पर फिर गरमाई राजनीतिह्ण रपट का सार भी यही है कि कांग्रेस दक्षिण भारत में  अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए यह सब कर रही है। झारखण्ड,छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड  एक साथ तीन राज्य बने थे उस समय तो कहीं से विरोध नहीं हुआ था। तेलंगाना पर ऐसा क्यों हो रहा है,इस पर कांग्रेस को विचार करने की आवश्यकता है।
-रामावतार
कालकाजी, नई दिल्ली
० भाजपा और कांग्रेस में यही फर्क है कि कांग्रेस जो कुछ भी करती है उसके पीछे सबसे पहले यह देखती है कि  इससे उसका कितना लाभ होगा,जबकि भाजपा यह देखती है कि इससे देश का कितना लाभ होगा। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है। जगनमोहन रेड्डी कांग्रेस की कब्र खोद रहे हैं। इससे कांग्रेस परेशान है। इसलिए वह तेलंगाना के मुद्दे को हवा दे रही है।
-गोपाल
गांधीग्राम,गोड्डा (झारखण्ड)
वोट बैंक खिसकने की चिन्ता
इस रपट ह्यमुस्लिम वोट के लिए शिवपाल की कवायदह्ण का सन्देश है कि मुलायम सिंह यादव मुजफ्फरनगर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। वे राज्य के वरिष्ठ मंत्री और अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को  मुजफ्फरनगर भेजकर जनभावना की थाह ले रहे हैं। मुजफ्फरनगर पहुंचकर शिवपाल को महसूस हुआ कि यहां लोगों में सपा को लेकर कितना गुस्सा है।
-सुधाकर कुमार
मेरठ (उ.प्र.)
० मुजफ्फरनगर के दंगों ने इस्लाम-परस्त मुलायम की असलियत देश के सामने ला दी है। दोनों बाप-बेटे को वोट बैंक खिसकने की चिन्ता सता रही है। इसलिए उन्होंने यह घोषणा की है कि पीडि़त मुस्लिमों को ही पांच-पांच लाख रुपए दिए जाएंगे। मुलायम सोच रहे हैं कि मुस्लिम तुष्टीकरण से वे अपने वोट बैंक को बचा लेंगे। उनकी यह सोच उन्हें डूबा देगी।
-सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
द्वारकापुरम, दिलसुखनगर
हैदराबाद-60 (आं.प्र.)
० बिल्कुल सही लिखा गया है कि मुजफ्फरनगर में शाहनवाज कुरैशी का घर सेकुलर तीर्थ बन गया है। शाहनवाज कुरैशी वही शख्स है जिसके कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए। ऐसा भारत में ही हो सकता है। उधर कुछ नेता शाहनवाज के घर जा रहे हैं,तो इधर केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने फतवा जारी कर दिया है कि किसी भी निर्दोष मुस्लिम युवक को आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार न किया जाए।
-सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा
जिला-रतलाम-457222 (म.प्र.)
० नेपोलियन ने कहा था,ह्यदुनिया बहुत कष्ट सहती है। बुरे लोगों की हिंसा के कारण नहीं,बल्कि सज्जन लोगों के मौन के कारण।ह्ण जिहादी तत्व कवाल (मुजफ्फरनगर) से लेकर केन्या तक गैर-हिन्दुओं को मार रहे हैं और हम उन्हें पुचकार रहे हैं। गैर-हिन्दुओं को भी जिहादी तत्वों के खिलाफ एक मोर्चा बनाना चाहिए। जब तक उन्हें करारा जवाब नहीं दिया जाएगा तब तक वे शान्त नहीं होंगे।
-धीरज भार्गव
32, पुरुषोत्तम नगर, मालीखेड़ी रोड,आगर, मालवा, 465441(म.प्र.)             
मर्यादा में रहने दो नारी को
इस लेख ह्यफिल्मों में प्रदर्शित नग्नता बढ़ाती है महिलाओं के विरुद्घ अपराधह्ण में कही गई बातों से मैं पूरी तरह सहमत हूं। ब्लेड, साबुन, चाय साड़ी जैसी वस्तुओं के विज्ञापनों में नारी देह को उघाड़ कर माल बेचा जा रहा है। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब-जब नारी की पोशाक, मर्यादा, आचरण और संस्कार की बात कही जाती है तब नारी संगठन ही इसे नारी स्वतंत्रता पर हमला बोल कर इस आधारभूत सत्य को खारिज करते हैं।    
-मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग
पश्चिम निमाड़ -451225(म.प्र.)
तब होता है आश्चर्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत पिछले दिनों उत्तराखण्ड के प्रवास पर थे। उत्तरकाशी में उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों के संस्कारों में बसी है सेवा-भावना। सच में किसी भी आपदा के समय संघ के स्वयंसेवक तुरन्त सेवा कायोंर् के लिए उतर जाते हैं। इन्ही  बातों से तो मैं संघ के साथ बचपन से जुड़ा हूं। आश्चर्य तब होता है जब कुछ राजनीतिक दल संघ को साम्प्रदायिक संगठन कहते हैं। वे जो आधार बताते हैं वे सही नहीं होते हैं।
-देशबन्धु
आर जेड-127, सन्तोष पार्क
उत्तमनगर, नई दिल्ली-110059
सिर्फ झांसा
सोनिया-मनमोहन सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून बनाया है। कहा जा रहा है कि इससे गरीब लोगों को बहुत फायदा होगा। किन्तु मुझे तो लगता है कि यह सिर्फ धोखा है। ऐसी ही बात मनरेगा के लिए कही जाती थी। मनरेगा का अब क्या हाल है,यह किसी से छिपा नहीं है। जो सरकार कहती है कि गांवों में जो लोग प्रतिदिन 26 रु खर्च करते हैं वे गरीब नहीं हैं,वह सरकार भला गरीबों की हितैषी कब से होने लगी?
-कुन्ती रानी साह
कटिहार (बिहार)
सरदार पटेल और संघ
जब से नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची एक प्रतिमा ह्यस्टैच्यू ऑफ युनिटीह्ण की निर्माण-योजना घोषित की है, सेकुलर लेखकों में इस बात की होड़ लगी है कि सरदार पटेल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोधी बताया जाए। ये तमाम लेखक बड़ी गलतफहमी के शिकार हैं। वास्तव में पटेल संघ के प्रशंसक थे और संघ के लोग पटेल के। इस विषय में जो आम धारणा है, वह गलत नहीं है। जब देश बंटवारे के साथ आजाद हुआ, संघ एक बेहद लोकप्रिय संगठन था। उसके सक्रिय सदस्यों की संख्या पचास लाख थी, और प्रशंसक करोड़ों थे। हर शाखा में सैकड़ों की संख्या रहती थी। इस बात ने नेहरू को आशंकित किया। वे संघ को अपना प्रतिद्वंद्वी मान बैठे। इस ह्यप्रतिद्वंद्वीह्ण को चित्त करना ही जरूरी लगा और उसके लिए उस पर प्रतिबंध लगाने का ख्याल उनके दिमाग में कौंधने लगा। इस बीच नवम्बर 1947 में महाराष्ट्र में संघ का एक लाख संख्या का एक बड़ा शिविर लगना प्रस्तावित था और इसमें संघ से पटेल को निमंत्रित किया। उनकी स्वीकृति मिल गयी, और सूचना-प्रसारण मंत्रालय, जो गृहमंत्रालय के अतिरिक्त उनके पास था, के अधिकारियों ने कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए शिविर स्थल पर इंतजाम भी कर लिये। पर नेहरू, जो पटेल के उक्त निर्णय से बेहद नाखुश थे, ने तमाम तरह के दबाव डालकर पटेल का शिविर में जाना टलवा दिया। बाद में संघ के पन्द्रह-पन्द्रह हजार संख्या के दस शिविर  दस स्थानों पर आयोजित हुए। नेहरू की संघ-संबंधी ह्यएलर्जीह्ण पटेल ने अच्छी तरह समझ ली। उन्होंने महसूस किया कि नेहरू संघ पर पाबंदी लगाने की सोच रखते हैं, और उनके चाटुकार नेता इसके लिये उन्हें उकसाते रहते हैं।
6 जनवरी 1948 को लखनऊ में अपने एक भाषण में पटेल ने कहा- ह्यकांग्रेस के कुछ नेता संघ को डंडे से कुचलना चाहते हैं। डंडा चोर-डाकुओं के लिये होता है। संघ के लोग चोर-डाकू नहीं, देश सेवा करने वाले राष्ट्रभक्त हैं।ह्ण यह बयान सीधे-सीधे कांग्रेस पार्टी में नेहरू-समर्थक और संघ विरोधी लॉबी की ओर संकेत था। जब 30 जनवरी 1948 को हुई गांधी हत्या के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में प्रधानमंत्री नेहरू ने इसका दोष संघ पर मढ़ते हुए प्रतिबंधित करने की बात कही तो पटेल (और अम्बेडकर) ने आपत्ति की थी। पर नेहरू ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना कर बात मनवायी। गांधी हत्याकांड की जांच के सन्दर्भ में 26 फरवरी 1948 को नेहरू ने पटेल को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि गांधी हत्या के पीछे एक व्यापक षड्यंत्र होना चाहिए, जिसमें कहीं न कहीं संघ की भूमिका है, जो देश में ऐसा वातावरण बनाता रहा जिसके चलते गांधीजी की हत्या हुई। इसके उत्तर में पटेल ने 27 फरवरी को नेहरू को पत्र लिखकर संघ को क्लीन चिट दी थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि गांधी हत्याकांड की जांच में पग-पग पर उन्होंने स्वयं निगरानी की है और इस बात से वे संतुष्ट हैं कि संघ हत्याकांड में कहीं नजर नहीं आता।
यहां यह बात उल्लेख की जा सकती है कि गांधी-हत्या के लगभग तत्काल बाद बसंत राव ओक (दिल्ली के संघ के प्रचारक) पटेल से मिले थे।  तब सरदार ने उन्हें कहा था कि वे जानते हैं कि गांधी हत्या में संघ शामिल नहीं था, पर जो कांग्रेसी नेता संघ को इसके पीछे बताते हैं, वे खुद उन्हें (यानी पटेल को) भी हत्या का दोषी ठहराते हैं।
नेहरू की तो सारी राजनीति पूरी तरह संघ के विरोध पर आधारित थी। फिर भी सबूतों के अभाव में संघ पर प्रारंभ में लगाया गया गांधी हत्या का आरोप गृह मंत्रालय ने वापस लिया और उक्त मुकदमे में संघ को अभियोगी तक नहीं बनाया गया। अंतत: 12 जुलाई 1949 को संघ भी अप्रतिबंधित हो गया। इस दौरान संघ की ओर से एकनाथ रानाडे पटेल से वार्ता हेतु मसूरी में दो-तीन बार मिले। पटेल ने उन्हें आग्रहपूर्वक कहा कि संघ कांग्रेस में शामिल होकर उनके हाथ मजबूत करे। एकनाथ जी ने संघ की अराजनीतिक भूमिका और उस पर अडिग रहने का उसका संकल्प सरदार के सम्मुख असंदिग्ध शब्दों में रखा। फिर भी पटेल ने 1950 में पहले नेहरू-विरोधी पुरुषोत्तम दास टंडन को कांग्रेस अध्यक्ष चुनवाया और फिर कांग्रेस वर्किंग कमेटी में प्रस्ताव पारित कराकर संघ के लोगों के लिए कांग्रेस के दरवाजे खोल दिये। 1934 से संघ से जुड़े लोगों का कांग्रेस-प्रवेश पर पाबंद था। पटेल ने ही सरसंघचालक गोलवलकर जी को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के पास विलय वार्ता के लिए 17 अक्तूबर 1947 को श्रीनगर भेजा था। पटेल जानते थे कि महाराजा गोलवलकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति आदर भाव रखते हैं। पटेल का गोलवलकर को प्रेषित 11 सितम्बर 1949 का वह पत्र भी उल्लेखनीय है जिसमें उन्होंने संघ स्वंयसेवकों को कांग्रेस में आकर अपनी राष्ट्रीय गतिविधियां चलाने का अनुरोध किया था। हालांकि संघ अराजनीतिक मार्ग न छोड़ने पर ही डटा रहा।
-अजय मित्तल
97, खंदक, मेरठ (उ.प्र.)
 

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