कांग्रेस के खिलाफ हर राज्य में गुस्सा
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कांग्रेस के खिलाफ हर राज्य में गुस्सा

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Nov 9, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Nov 2013 15:17:31

दिल्ली की देन महंगाई और भ्रष्टाचार
सूची जारी करने में भाजपा ने मारी बाजी, कांग्रेस में घमासान
चार दिसम्बर को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने बुधवार को 62 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर एकाएक कांग्रेस की सूची जारी होने से पूर्व ही बाजी मार ली है। 62 टिकटों में भाजपा-अकाली गठबंधन की चार सीटें भी शामिल हैं। वहीं शीला सरकार के लिए दिल्ली में लगातार बढ़ रही महंगाई को लेकर जनता का आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने अपनी कमर कस ली है। समय रहते प्रत्याशियों की सूची जारी कर पार्टी ने एक कदम आगे बढ़ा लिया। शेष आठ सीटों के प्रत्याशियों की सूची भी जल्द ही जारी कर दी जायेगी। पिछले कुछ समय से सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को लेकर चल रही तरह-तरह की अटकलें भी चार सीटें अकालियों को देने से थम गईं हैं। राजौरी गार्डन, हरी नगर, शाहदरा और कालकाजी विधानसभा सिख बहुल क्षेत्रों में शामिल हैं। ऐसे में चारों सीटें अकालियों को देकर भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। वर्तमान में तिलक नगर से विधायक ओपी बब्बर और ग्रेटर कैलाश से विधायक प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा के बेटे और महरौली में स्व. मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को टिकट देकर एक जुटता को और भी बढ़ा दिया है। माना जा रहा है कि निगम पार्षदों को टिकट देकर भी पार्टी काफी हद तक सभी के हितों का ध्यान रखने में सफल रही है।
वहीं कांग्रेसियों में अभी टिकट वितरण को लेकर आपसी घमासान मचा हुआ है। वहीं कांग्रेस के पास बढ़ती महंगाई को लेकर जनता को जवाब देते नहीं बन रहा है। प्याज तो छोडि़ये अब तो टमाटर भी लाल हो रहा है और उसके दाम आसमान छू रहे हैं। आम लोगों की थाली के बिगड़ते बजट पर जब मुख्यमंत्री से पूछा जाता है तो वह महंगाई कम करने के उपाय करने की बजाय अन्य राज्यों में महंगाई का हवाला देकर सीधा जवाब देने से कन्नी काट लेती हैं। वहीं भाजपा के भावी मुख्यमंत्री डा. हर्षवर्धन ने वर्ष 2010 में लोकायुक्त से शिकायत कर वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले करीब 1600 कच्ची कॉलोनियों को बिना नियमित किए उन्हें अस्थाई प्रमाण पत्र जारी करना गलत बताया था। लोकायुक्त ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि यह कदम शीला दीक्षित ने राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से उठाया था। इस संबंध में उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजते हुए आग्रह किया है कि मुख्यमंत्री को हिदायत दी जाए कि भविष्य में ऐसा कार्य दोबारा नहीं किया जाये। हालांकि मुख्यमंत्री को विज्ञापन पर धन दुरुपयोग के मामले से बरी कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि इस बार के विधानसभा चुनाव से पूर्व भी दिल्ली सरकार कॉलोनियों को मूलभूत सुविधाएं देने और उन्होंने नियमित करने का राग गा चुकी है, लेकिन यह बात सिर्फ दावा है, जो कि हकीकत से कोसों दूर है। पिछले दिनों शीला दीक्षित खुद भी आप पार्टी को लेकर नर्वस होने की बात मीडिया के सामने कह चुकी हैं। साथ ही टिकटों को लेकर कांग्रेसी नेताओं में खींचतान जारी है।
दिल्ली में कांगे्रसी भी टिकट वितरण को लेकर दो खेमों में बंटे हुये हैं। भाजपा की सूची जारी होने के बाद से कांग्रेसियों में सूची जारी होने को लेकर बेचैनी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि करीब 15 सीटों पर टिकट वितरण को लेकर जबरदस्त गहमागहमी चल रही है। पार्टी सप्ताह के अंत तक अपनी सूची जारी कर देगी। कुछ निगम पार्षद भी टिकट पाने की दौड़ में लगे हुए हैं। ऐसे में यदि वे टिकट पाने में असफल रहे तो पार्टी में बागियों के सुर पनप सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी से असंतुष्ट नेता बागी बन गए थे जिन्होंने कांग्रेसी प्रत्याशी को प्रचार तक करने में परेशानी खड़ी की थी।    
जनता मांग रही हिसाब
दिल्ली की सत्ता में काबिज कांगे्रसी विधायक अपने-अपने क्षेत्र में लोगों से जनसंपर्क बढ़ाने पहंुच रहे हैं तो उन्हें जनता की खरी-खोटी सुनने को मिल रही है। जनता उनके नये वायदे गिनाने से पहले ही पांच साल का हिसाब मांग रही है। अधूरे कार्यों को लेकर नेता तरह-तरह की सफाई देकर बच रहे हैं। महंगाई के मुद्दे पर तो किसी से भी जवाब देते नहीं बन पा रहा है। ऐसे में सभी गली-मोहल्ले में मजबूत पकड़ रखने वाले व्यक्ति का सहारा लेकर जनसंपर्क करने में ही भलाई मान रहे हैं।  ऐसे में कांग्रेस को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ पार्टी के कार्यकर्ता टिकट वितरण को लेकर दो-दो हाथ करने को तैयार है। वहीं जनता कांग्रेसियों को आड़े हाथ ले रही है। फिलहाल पार्टी के नेताओं के पास चुप्पी साधने के कोई और विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है।

केजरीवाल उन्मादी तौकीर के साथ
मुस्लिम वोट भुनाने की जुगत
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और इत्तेहाद- ए – मिल्लत कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खान के बीच हुई मुलाकात से राजनीतिक गलियारों में राजनीति एकदम गरमा गई है। अन्य दलों को साम्प्रदायिक बताकर उन पर हमला करने वाले केजरीवाल वोटों के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। हालांकि अब केजरीवाल अपनी गलती पर पछतावा करते घूम रहे हैं। पिछले दिनों केजरीवाल ने बरेली में सांप्रदायिक दंगों के आरोपी तौकीर रजा से मुलाकात कर समर्थन की बात की थी। मुलाकात के लिए केजरीवाल रजा खान के बरेली स्थित घर भी गये थे। बातचीत के बाद रजा खान केजरीवाल के समर्थन के लिए तैयार भी हो गए। केजरीवाल और रजा खान के बीच हुई मुलाकात ने बहस छेड़ते हुए एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।  भाजपा ने आप पर हमला करते हुए इसे वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि केजरीवाल को पहले मुसलमानों की याद क्यों नहीं आई। कांग्रेस ने केजरीवाल पर आरोप लगाया कि यह दावा करते रहे हैं कि उनकी पार्टी धर्म, जाति और सम्प्रदाय पर आधारित राजनीति नहीं करेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि रजा खान से मुलाकात कर वह अपने वादे से पलट गए हैं।
उल्लेखनीय है कि  कि मार्च 2010 में बरेली में हुए दंगों को भड़काने के आरोप में रजा खान की गिरफ्तारी हुई थी। जब उन्हें रिहा किया गया था, तो उसके बाद फिर से दंगे हुए थे। वर्तमान में रजा खान उत्तर प्रदेश के राज्य हथकरघा निगम के उपाध्यक्ष हैं। रजा खान पहले भी जॉर्ज बुश और तसलीमा नसरीन के खिलाफ फतवा जारी करने को लेकर काफी विवादों में रहे थे। तौकीर के साथ मुलाकात पर तसलीमा ने अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा कि एक नेता ऐसे कट्टरपंथी से मिलने जाता है, जिसने मेरा सिर काटने पर इनाम का ऐलान किया, यह जानते हुए भी कि यह गैरकानूनी और असंवैधानिक है। मुझे हैरत है कि नेता इनके पास क्यों जाते हैं ? अगर उन्हें मुसलमानों का समर्थन चाहिए तो वे आम मुसलमानों के पास क्यों नहीं जाते। मौलानाओं के पास जाने वाले नेता ही मुसलमानों के पिछड़ेपन की वजह हैं।
कलह, बगावत और असंतोष ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
तोड़-फोड़, प्रदर्शन, इस्तीफा और आत्महत्या पर उतारू हुए कांग्रेसी
मध्य प्रदेश में जैसे ही कांग्रेस प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी हुई असंतुष्ट नेताओं-कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा। बड़े नेताओं पर अपने चहेतों को टिकट दिलाने और टिकटों की सौदेबाजी करने का आरोप लग रहा है। अनेक जिलों में नेताओं-कार्यकर्ताओं द्वारा इस्तीफे का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। मानक अग्रवाल ने सुरेश पचौरी पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि वह टिकट खरीदने और बेचने का काम करते हैं। पलटवार करते हुए पचौरी ने कहा कि घटिया लोग घटिया बातें करते हैंं। पिछड़ा वर्ग विभाग के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र गहलौत और अल्पसंख्यक विभाग के अनेक पदाधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। सिंगरौली जिले में देवसर ब्लॉक कांग्रेस के सभी पदाधिकारियों ने गलत व्यक्ति को टिकट देने के विरोध में सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। पवई विधानसभा क्षेत्र से घोषित प्रत्याशी अनिल तिवारी ने अपना टिकट बदलने और मुकेश नायक को टिकट देने के विरोध में पार्टी ही छोड़ दी है। अब वे सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 
पखवाड़े पहले कांग्रेस में शुरू हुआ प्रदेशव्यापी अन्तर्कलह अपने चरम पर जा पहंचा। बड़े नेताओं ने एक-दूसरे पर टिप्पणी करने में नैतिकता और मर्यादा को ताक पर रख दिया। कांग्रेस के दिग्गज दूसरे दलों का दमन थामने में सबसे आगे हैं। टिकट नहीं मिलने से क्षुब्ध आगर विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे कांग्रेस नेता नरसिंह मालवीय ने विषपान कर आत्महत्या कर ली। वे कांग्रेस के सचिव थे। मालवीय के समर्थकों ने सांसद प्रेमचन्द गुड्डु का पुतला जलाया। जावद में नाराज कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने सांसद मीनाक्षी नटराजन को गांधी भवन में बंद कर दिया। इंदौर के प्रमोद नारायण टंडन को भी कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना  करना पड़ रहा है। नाराज कांग्रेसियों ने उनका भी पुतला फूंका। हफ्ते भर पहले भाजपा से कांग्रेस में आए देवेन्द्र पटेल को टिकट देने के कारण मामले ने इतना तूल पकड़ा कि विरोध में कार्यकर्ताओं ने प्रदेश कार्यालय में भारी तोड़-फोड़ की।
इसके पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया ने भी टिकट के लिए दबाव बनाने के लिए सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। मालवा क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण जिले इंदौर में भी कांग्रेस का अंतर्कलह उफान पर है। इंदौर की लगभग सभी 9 सीटों पर कांग्रस के प्रत्याशी का विरोध हो रहा है। मसलन कांग्रेस का आंरिक कलह पार्टी को डुबा सकता है।
 विकास में पिछड़ा राजस्थान, भ्रष्टाचार और अपराध बढ़े
महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान और मीरा बाई की जन्मस्थली के रूप में पहचाना जाने वाला राजस्थान आज व्याभिचारी मंत्रियों की सरकार वाले राज्य के रूप में जाना जाता है। पिछले पांच वर्षों के दौरान राजस्थान की पहचान ऐसे प्रदेश के रूप में बन गई है, जो भ्रष्टाचार से भरपूर, अपराध में अग्रणी और लचर सुस्त प्रशासन से युक्त है। पिछले पांच वर्षो से प्रदेश विकास के क्षेत्र में बुरी तरह पिछड़ गया है, वहीं अपराध के क्षेत्र में सिरमौर बन रहा है। वर्ष 2003 में भाजपा के सरकार के दौरान लोगों के लिए बनाई गई 32 कल्याणकारी योजनाओं को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने बंद कर दिया।
 राजस्थान की वर्तमान सरकार के कामकाज का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 11 अक्टूबर, 2011 को जोधपुर उच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रदेश में ऐसी कमजोर सरकार कभी नहीं देखी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 21 जुलाई, 2012 को प्रदेश सरकार के बारे में कहा था कि राजस्थान में कानून का शासन नहीं है और ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का हक नहीं है। राज्य सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्री बलात्कार और हत्या के मामले में जेल में बन्द है, यह तो केवल बानगी है, यदि राज्य सरकार का पूरा विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यहां का प्रशासन किस कदर लचर है।
आम आदमी के साथ होने का दावा करने वाली कांग्रेसी सरकार की वास्तविकता यह है कि उसे कार्यकाल में नौ बार बिजली की दरें बढ़ाई गईं। दूषित पानी पीने वाले राज्यों में राजस्थान देश में पहले स्थान पर है।
राजस्थान की 62 हजार से अधिक ढाणियां स्वच्छ पेयजल से वंचित है। प्रदेश में 48 प्रतिशत जलस्रोतों का पानी पीने योग्य नहीं है। यह कहा जाता है कि किसी भी प्रदेश का विकास वहां की बिजली, पानी और सड़कों की स्थिति पर निर्भर करता है। राजस्थान इन तीनों क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ है।
प्रदेश सरकार के मुखिया अशोक गहलोत सहित अनेक मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपांे को झेल रहे हैं। स्वयं मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के साथ साथ भाई भतीजावाद के अनेक आरोप लग चुके है। जलमहल लीज, एयरफोर्स भू घोटाला, जोधपुर खनन घोटाला तथा जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पदों पर अपने परिवारजनों तथा चहेतों की फर्जी नियुक्ति कराने जैसे मामलों ने गहलोत के दामन को दागदार बना दिया है। आरोपो का सिलसिला उनके पुत्र वैभव गहलोत तथा पुत्री सोनिया तक पहुंचता है।
सरकार के वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल गणपति निर्माण कार्य एकल पट्टा नया जयपुर मामले में कटघरे में है, वहीं उद्योग मंत्री राजेन्द्र पारीक डालडा मिल घोटाले में फंसे हुए हैं। सहकारिता मंत्री परसादी मीणा ऋण माफी के नाम पर किसानों के साथ ठगी तथा भूमि विकास बैंक में ऋण घोटाले में उलझे हुए हैं। कृषि राज्य मंत्री भरोसी लाल जाटव, महिला बाल विकास मंत्री बीना काक, कृषि मंत्री हरजीराम बुरडक, ऊर्जा मंत्री जितेन्द्र सिंह, पीडब्ल्यू डी मंत्री प्रमोद जैन सहित अनेक मंत्रियों पर कई घोटालों के आरोप लग चुके हैं।
एक ओर जहां कांग्रेस सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार के मामलों में नए रिकॉर्ड बना रहे थे, वहीं दूसरी ओर पूर्व पीएचडी मंत्री महीपाल मदेरणा, पूर्व खान मंत्री रामलाल जाट, पूर्व खादी मंत्री बाबू लाल नागर, विधायक मलखान सिंह विश्नोई तथा विधायक उदयलाल  आंजना व्याभिचार के आरोप झेल रहे हैं। इनमे से कई मंत्री-विधायक इस समय सलाखों के पीछे हैं। इस कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 13 मंत्रियों के विभाग बदले  और पांच मंत्रियों को हटाया। वर्ष 2011 के आकड़ों के अनुसार भ्रष्टाचार के मामलों मे राजस्थान देश में प्रथम स्थान पर था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार राजस्थान देश का दूसरा सबसे असुरक्षित राज्य बन गया है। प्रदेश की राजधानी जयपुर गुलाबी शहर की जगह आपराधिक शहर बन गया है। महिलाओं के प्रति घटित कुल अपराधों में राजस्थान देश में चौथे नम्बर पर है। राजस्थान में 24़13 प्रतिशत की दर से हो रहे आर्थिक अपराध देश में पहले नंबर पर है। पिछले पांच वर्ष के दौरान प्रदेश में 24 सांप्रदायिक दंगे और 80 जगह तनाव की घटनाएं घटित हुई हैं।
प्रदेश में चिकित्सकों के 2570 पद रिक्त है और 1200 चिकित्सकों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कर रखा है। ध्यान देने योग्य है कि 400 चिकित्सक लापता हैं जिनके बारे में विभाग को भी पता नहीं है कि वे नौकरी में रहते हुए भी है कहां पर हैं ?
राजस्थान में 40.4 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। कन्या भ्रूण हत्या में राजस्थान सिरमौर है। शिशु मृत्युदर, मातृ मृत्यु दर तथा बाल लिंगानुपात जैसे मामलों में प्रदेष की हालत
चिंताजनक है।
राज्य सरकार की कार्यप्रणाली और उदासीनता का नमूना यह है कि  केंद्र प्रदत 13 परियोजनाओं में से 11 का कार्य अधूरा है, केंद्र की ओर से दिए गए कोष का 60 प्रतिशत पैसा भी खर्च नहीं हो पाया है। 
जनहित के कार्यों से बढ़ा भाजपा में भरोसा
छत्तीसगढ़ में अपने प्रदेश की जनता की दस साल की सेवा के बाद मुख्यमंत्री डा़ रमन सिंह जब जनता जनार्दन के पास पहंुच रहे हैं तो उनके पास खाद्य सुरक्षा देने का विश्वास भरा काम है। प्रदेश का पीडीएस सिस्टम जिससे छत्तीसगढ़ के पहंुचविहीन इलाकों तक में 1 और 2 रुपये किलो में 35 किलो चावल प्रदेश के 42 लाख परिवारों को पहंुचा रहे हंै।़ देश भर में सबसे ज्यादा भ्रष्ट माना जाने वाले इस सिस्टम को छत्तीसगढ़ में पूरी प्रतिबद्घता के साथ लागू किया गया है़ वही यह योजना है जिसकी तारीफ संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट तक ने की है।
कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को भले 2008 के घोषणापत्र में वादा करने के बावजूद अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल के बाद अब जा कर  खाद्य सुरक्षा कानून लाने की सुध आयी हो़, भले उसकी नीयत चावल के एक दाना लोगों तक नहीं पहुंचाने के बावजूद इस शिगूफे को ह्यगेम चेंजरह्ण मान लेने की हो।़ हाल में केन्द्रीय खाद्य मंत्री पीसी थामस ने यह बयान भी दिया की इस कानून को जमीन पर लाने में साल भर से ज्यादा का समय लगेगा यानी यह तय है कि यूपीए-2 के राज में किसी को भी इस कानून से अन्न का एक दाना नहीं मिले, लेकिन वही लोकसभा में कांग्रेस का एक बड़ा मुद्दा होगा कि उसने खाद्य सुरक्षा कानून दिया तो जहां राजनीति ऐसी धोखाधड़ी का सामान हो गयी हो, जहां भ्रष्टाचार-अनाचार-महंगाई-असुरक्षा-भूख-आत्महत्या आदि के बावजूद भी कांग्रेस खाद्य सुरक्षा की डफली बजाने में भी शर्म महसूस नहीं कर रही हो, वहंा अगर कोई प्रदेश सरकार पिछले छह साल तक पोषण सुरक्षा देने के बावजूद भी संकोच और विनम्रता के साथ ही जनता से फिर सेवा का अवसर देने का आग्रह करती नजर आये तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए की भरोसे के संकट के इस कांग्रेसी जमाने में छत्तीसगढ़ एक नए तरह के विश्वास की कहानी तो लिख ही रहा है।
लेकिन सवाल केवल चावल का ही नहीं है। प्रदेश ने सबसे पहले खाद्य सुरक्षा कानून तो दिया ही है, उसके साथ-साथ पोषण सुरक्षा से लेकर, दो लाख शिक्षाकर्मियों को शासकीय शिक्षक जैसा वेतनमान देने से लेकर 56 लाख परिवारों तक 30 हजार रुपये का मुफ्त इलाज पहंुचा कर भाजपा सरकार थोड़ा सुकून तो महसूस कर रही है।
चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने विकास यात्रा निकाली थी। लगभग डेढ़ महीने तक प्रदेश के कोने-कोने तक घूम कर उन्होंने अपनी उपलब्धियों का बखान किया और  जनता की प्रतिक्रिया देखकर भी यह राय बना सकते हैं कि जनता ने एक बार फिर भाजपा को मौका देना तय किया है।  जनमानस को देखते हुए इस बार के चुनाव में भाजपा ने नारे भी ऐसे ही दिए हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी जगत प्रकाश नड्डा के अनुसार , इस बार भाजपा ह्यप्रो इंकम्बेंसीह्ण के आधार पर चुनाव मैदान में है। यही एकमात्र तथ्य है।
छत्तीसगढ़ के इस चुनाव में भाजपा के लिए जहां दस साल का शासन और उसका विकास केन्द्र में है, वहीं कांग्रेस ने प्रदेश में हुए कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।  प्रस्तुति : पाञ्चजन्य ब्यूरो

मोदी की रैली से भयभीत कंाग्रेस
भारतीय जनता पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 7 नवम्बर को छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभालते हुए कांग्रेस सरकार पर जमकर हमला बोला। साथ ही मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी निशाने पर लिया। मोदी ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए पूछा कि बीजेपी की पटना रैली में धमाकों के बाद वहां के मुख्यमंत्री ने क्या किया। बिहार सरकार तो छप्पन भोग कर रही थी, जैसे कोई बहुत अच्छा काम हुआ हो। किसी के चेहरे पर दर्द का नामोनिशान तक नहीं था। वहीं जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की रैली पर नक्सली हमला हुआ तो रमन सिंह ने अपनी रैली तक रद्द कर दी।
 जगदलपुर में हुई रैली में मोदी ने मुख्यमंत्री रमन सिंह के कामकाज की जमकर सराहना की और रमन के लिए वोट मांगे। मोदी ने अपने पुराने अंदाज में कांग्रेस को महंगाई के मुद्दे पर लपेटा। वहीं संप्रग अध्यक्ष सोनिया गंाधी की सभा प्रदेश के डोंगरगढ़ में प्रस्तावित थी, लेकिन वहीं पर श्री मोदी की सभा होने के कारण पहले तो कांग्रेस ने सभा को दूसरे विधान सभा क्षेत्र में कर दिया, लेकिन मोदी की सभा पास होने से कांग्रेसियों ने उसे रद्द कर दिया।
रैली से पहले मिले विस्फोटक
छत्तीसगढ़ में नक्सली दे रहे लगातार धमकी
पांच राज्यों में होने वाले चुनावों क ी शुरुआत आगामी 11 नवम्बर को छत्तीसगढ़ से हो रही है। यहां पहले चरण का मतदान बस्तर और राजनंदगांव जिले में होगा, जो कि मुख्यमंत्री के क्षेत्र हैं। मतदान के दौरान माओवादी नक्सली पहले ही से चुनाव में हिंसा फैलाने की धमकी दे चुके हैं। हालांकि निर्वाचन आयोग ने संबंधित क्षेत्रों में चुनाव के दौरान सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त के बीच शांतिपूर्ण मतदान कराये जाने का आश्वासन दिया है। लेकिन बस्तर में 169 केन्द्रों को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की सिफारिश पर बदला गया है। चुनाव को लेकर माओवादी पहले ही बहिष्कार करने का आह्वान कर चुके हैं। इसके लिये बस्तर में अतिरिक्त सुरक्षा बल मुहैया कराया गया है। उल्लेखनीय है कि माओवाजी पूर्व में बड़े स्तर पर सुरक्षा बल के जवानों और कांग्रेसी नेताओं पर जानलेवा हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार चुके हैं। नक्सली अभी भी बस्तर के मतदाताओं को धमका रहे हैं। बस्तर आदिवासी बहुल क्षेत्र है जिसके मतदाता विशेष महत्व रखते हैं।  
 

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