हकीमुल्ला की मौत से हकबकाए पाकिस्तानी नेता
|
पिछले दिनों पाकिस्तान के कबायली इलाके पर अमरीका के ड्रोन हमले में बड़े वाले तालिबानी हकीमुल्ला महसूद की मौत हो गई। तालिबानियों ने तूफान खड़ा कर दिया। महसूद की छलनी लाश को जिहाद की पैरवी करने वाली इंटरनेट साइटों पर दिखाया गया। पाकिस्तानी तालिबानियों ने प्रस्तावित शांतिवार्ता की ईंट से ईंट बजा देने की तकरीरें कीं, ओबामा प्रशासन को लानतें भेजी जाने लगीं। अमरीका और लंदन की ठण्डक में तफरीह करके लौटे प्रधानमंत्री नवाज पर सबकी गुस्सैल निगाहें टिकीं, शरीफ बगलें झांकने लगे। वे क्या कहते, गए थे कि ओबामा को राजी कर लेंगे कि, जनाब ड्रोन की मार तो न मारो। पर ओबामा ने उन्हें चेक पकड़ाकर उल्टे पैर लौटा दिया, कोई वादा नहीं किया। पाकिस्तान के कबीलाई इलाके खैबर पख्तूनख्वाह में तालिबानियों की कथित मदद से जीते पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी ने मौका ताड़ लिया। इमरान ने कहा, ड्रोन बम मारते रहे तो नवाज के शांति प्रयास पटरी से उतर जाएंगे। इतना ही नहीं, लाहौर में इमरान ने तेवर दिखाते हुए कहा, ड्रोन नहीं रुके तो ह्यनाटोह्ण की रसद ले जाने वाले रास्ते बंद कर दिए जाएंगे। इन बातों पर उनकी नवाज की हुकूमत के साथ ठन गई है। माहौल गर्माता देख राजधानी इस्लामाबाद और दूसरे अहम शहरों में हाई अलर्ट कर दिया गया। इमरान तो इमरान, तालिबानी भी बौखलाए घूम रहे थे। दक्षिण वजीरिस्तान में तालिबानी प्रवक्ता आजम तारिक ने पत्रकारों के सामने भौहें तरेरते हुए कहा, ह्यहकीमुल्ला के खून की एक-एक बूंद एक फिदायीन की शक्ल ले लेगी।ह्ण इस बीच, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक खबर आई है कि उत्तरी वजीरिस्तान में पाकिस्तानी तालिबानियों के कार्यवाहक सरगना अस्मतुल्ला शाहीन ने हकीमुल्ला की मौत के बाद मुल्ला फजलुल्लाह को गुट का नया सरगना घोषित किया है। अभी तक वह उत्तर पश्चिम स्वात घाटी की इकाई का सरगना था। पता चला है कि फजलुल्लाह ही वह जिहादी कमांडर है जो पिछले साल पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई पर हुए हमले का जिम्मेदार माना जाता है। उसके बारे में और भी कई सनसनीखेज बातें सुनने में आई हैं, जैसे उसने हाल में एक इंटरव्यू में कहा था कि उसका अगला निशाना पाकिस्तान के सेना प्रमुख कियानी होंगे।
तिब्बत में बचे-खुचे बौद्घ धर्मावलंबी अपने पूज्य दलाई लामा के बारे में चूं तक न करें, उनकी कोई तस्वीर न लगाएं, उनके प्रवचनों की सीडी न चलाएं, दूसरे देशों से इंटरनेट के जरिए उनके भाषण न सुन सकें, उनका सिमरन तक करने की जुर्रत न करें, इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने पहले से लगी पाबंदी का शिकंजा और कस दिया है। ताजे फरमान जारी हुए हैं कि जो कोई चोरी-छुपे दलाई लामा से जुड़ा कुछ भी करता या सुनता पाया गया तो उसकी खैर नहीं। चीन लंबे अर्से से दलाई लामा के खिलाफ दुष्प्रचार चलाए हुए है कि वे लोगों को भड़काते हैं, उन्हें खुद को जला लेने को उकसाते हैं, चीन के टुकड़े कराने की मंशा पाले हैं, वगैरह वगैरह। लेकिन फिर भी चीनी कामरेडों की घुड़कियों को नजरअंदाज करके दलाई लामा के बड़ी संख्या में भक्त तिब्बत में गुपचुप इंटरनेट या दूसरे साधनों से तिब्बत आंदोलन की ताजा स्थिति पर नजर रखकर दलाई लामा के प्रवचन सुनते हैं। शायद चीनी थानेदारों को इसकी भनक लग गई है। कम्युनिस्ट पार्टी के असरदार माने जाने वाले मुखपत्र ह्यकीयुशिह्ण के ताजे अंक में तिब्बत में पार्टी के प्रमुख चेन कुआंग्वो ने साफ लिखा है कि सरकार चाहती है कि केवल उसी की बात सुनी जाए। इसके लिए सरकार को जो इंतजाम करने हैं वे करेगी। चेन ने लिखा है,ह्यअलगाववादी प्रतिक्रियावादी दुष्प्रचार के तिब्बत में घुसने पर कड़ी चोट की जाए।ह्ण ऐसा करने के लिए सरकार क्या करेगी? चेन की मानें तो, सरकार तमाम गैरकानूनी सेटेलाइट डिशों को हटवाएगी, इंटरनेट की निगरानी बढ़ाएगी और ये ताकीद करेगी कि टेलिफोन और मोबाइल लेने वाले अपने असली नाम से उन्हें पंजीकृत कराएं। कामरेड चाहते हैं कि पूरे तिब्बत में सरकार और पार्टी की बात ही सुनी जाए, दुश्मनी ताकतों और दलाई की आवाज और तस्वीर न देखी न सुनी जाए।
बंगलादेश में जमात नहीं लड़ पाएगी चुनाव
बंगलादेश के चुनाव आयोग ने जमाते इस्लामी के अगला चुनाव लड़ने के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। चुनाव आयोग ने कहा कि चूंकि उच्च न्यायालय ने जमात के पंजीकरण को गैरकानूनी ठहराया है, इसलिए अब वह चुनाव लड़ने की अपनी योग्यता गंवा चुकी है। वैसे सब जानते हैं, जमाते इस्लामी वह कट्टरवादी संगठन है जिसने बंगलादेश में भीषण उपद्रव मचाया हुआ है क्योंकि इसके तमाम बड़े नेताओं को वहां का विशेष ट्राइब्यूनल ह्ण71 में देश से गद्दारी करने और बड़े पैमाने पर आम नागरिकों की हत्याएं करने के जुर्म में फांसी या उम्रकैद की सजाएं दे चुका है। अब चुनाव आयोग ने उस पर गाज गिराई है। जमाते इस्लामी वही पार्टी है जिसका साथ लेकर बीएनपी की खालिदा जिया ने पहले सरकार बनाई थी। तब जमात के मजहबी उन्मादी तत्वों को हिन्दुओं पर अत्याचार करने की खुली छूट मिली हुई थी।
रूस में भी हैं आयुर्वेद के चाहने वाले
अभी 5 नवम्बर को रूस के मंत्रियों-अधिकारियों का एक नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल केरल के मुख्यमंत्री से मिला और इच्छा जताई कि वे रूस में आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं। वे केरल से मिलकर सदियों पुरानी इस उपचार पद्घति का अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्घति से मेल कराकर देखना चाहते हैं। रूस के उप स्वास्थ्य मंत्री क्रावोई सरगेई तो इसे लेकर खासे उत्साहित दिखे। उनके उत्साह को देखकर लगा कि अब मास्को और लेनिनग्राद जैसे रूसी शहरों में भी धन्वंतरि आयुर्वेदशाला लिखे बोर्ड दिखेंगे, जहां भारत की प्राचीन औषधियों के अर्क की गंध तिरा करेगी। रूसी चाहते हैं कि रूस में न केवल आयुर्वेद चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए बल्कि रूसी विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ाया जाए, इसके लिए एक खास पीठ बनाई जाए। Aok Goswami
टिप्पणियाँ