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विलासिता नहीं, आवश्यकता है मंगल अभियान

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Nov 9, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Nov 2013 15:03:38

…अमंगलहारी

अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और कीर्तिमान स्थापित करते हुए भारत ने 5 नवंबर 2013 को मंगल ग्रह के लिए अंतरिक्षयान भेजकर दुनिया को भारतीय वैज्ञानिकों का लोहा मानने के लिए मजबूर कर दिया है। दुनिया भर के लोगों की दूसरे ग्रहों के बारे में जानने की उत्सुकता स्वाभाविक तौर पर रहती ही है, लेकिन अंतरिक्ष में खोजी यान भेजकर, वहां के बारे में जानकारियां एकत्र करने की योजना को कार्यान्वित करना कोई साधारण बात नहीं होती। मंगल अभियान के जरिए भारत ने दुनिया में इस प्रकार का प्रयास करने वाले समूह में अपनी जगह बना ली है। गौरतलब है कि अमरीका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ही मंगल ग्रह के लिए अपने अभियान सफलतापूर्वक संपन्न करवा सके हैं। अभी चीन और जापान भी मंगल ग्रह को अपने यान भेज नहीं पाये हैं।
मंगल ग्रह के लिए पहला मिशन अमरीका द्वारा 1965 में भेजा गया था, जो मंगल ग्रह की सतह के लगभग 10,000 किलोमीटर नजदीक पहुंच कर उसके वायुमंडल के आंकड़ों के साथ 22 चित्र लेने में कामयाब हुआ था। उसके बाद 1969 में फिर से अमरीका द्वारा, 1971 में रूस द्वारा अंतरिक्ष यान भेजे गए। लेकिन 1975 में पहली बार मंगल ग्रह की धरती पर अमरीका का यान पहुंच सका। इस प्रकार अब मंगल अभियान की शुरुआती सफलता के बाद भारत भी अंतरिक्ष क्षेत्र में एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो गया है।
दुनिया की सबसे बड़ी संचार प्रणाली
पूर्व में भी भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां रही हैं। भारत अनेकों बार पी़एस़एल़वी. के द्वारा भारतीय ही नहीं दुनिया भर के अनेक देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करवा चुका है। अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति के माध्यम से आज भारत सूचना प्रौद्योगिकी, मौसम की सूचनाएं ही नहीं, धरती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्र करवाने के कारण दुनिया भर के देशों को सेवाएं प्रदान कर रहा है।
सही नहीं हैं आलोचनाएं
देश और दुनिया में भारत के मंगल अभियान की यह कहकर आलोचना की जा रही है कि भारत में अभी भी बड़ी संख्या में भूख और निरक्षरता मौजूद है। मंगल अभियान से पहले इन समस्याओं से जूझना जरूरी है। इस अभियान पर किए गए खर्च की बजाय यदि निरक्षरता और भूख को दूर करने का प्रयास होता तो बेहतर होता। दिलचस्प बात यह है कि चीन द्वारा भारत के इस अभियान की आलोचना करते हुए भी यही तर्क दिया जा रहा है। यह सही है कि मंगल अभियान के बाद भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में चीन से बेहतर स्थिति में पहुंच गया है, क्योंकि चीन द्वारा अभी भी मंगल अभियान की शुरुआत नहीं हो पाई है। आलोचकों का यह भी कहना है कि भारत द्वारा चीन से आगे दिखने की कोशिश में ही यह मंगल अभियान लिया गया है। यानी कुल मिलाकर यह कहने का प्रयास हो रहा है कि भारत का मंगल अभियान जैसे कोई गैर जरूरी कार्यक्रम है, जिसे छोड़ देना चाहिए था।
ऐसा लगता है कि इस कार्यक्रम के आलोचक शायद आंकड़ों को भलीभांति देख नहीं पा रहे हैं। गौरतलब है कि भारत के इस मंगल अभियान पर मात्र 450 करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं। यह राशि दिल्ली में बनने वाले अधिकतर फ्लाई ओवरों में से किसी एक फ्लाई ओवर की लागत से भी कम है। पश्चिमी दिल्ली की बाहरी रिंग रोड पर सड़क को लाल बत्ती सिग्नल मुक्त बनाने हेतु फ्लाई ओवरों की एक श्रृंखला निर्मित की जा रही है, जिस पर 3000 करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं। यानी भारत के मंगल अभियान पर इसका छठवां हिस्सा भी खर्च नहीं हो रहा है। वास्तव में भारत का सकल अंतरिक्ष अभियान दुनिया के दूसरे मुल्कों की तुलना में अत्यंत कम लागत वाला है। देखा जाए तो भारत प्रति वर्ष 1़1 अरब डालर ही अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर खर्च करता है, जबकि जापान 3़3 अरब डालर और अमरीका 18 अरब डालर अपने अंतरिक्ष अभियानों पर खर्च करते हैं। इन अंतरिक्ष अभियानों के फायदे बहुत हैं। दुनिया की सबसे बड़ी संचार प्रणाली, उच्च कोटि मौसम की जानकारियां ही नहीं बल्कि भूगर्भ के बारे में भी हमारे उपग्रह बहुमूल्य जानकारियां प्रदान करते हैं। अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के माध्यम से भारत द्वारा दूसरे मुल्कों को दी जाने वाली सेवाओं के बदले में भी बड़ी राशियां प्राप्त होती हैं। इसलिए भारत का अंतरिक्ष अभियान अर्थशास्त्र की दृष्टि से भी भारी फायदे का सौदा है।
बढ़ रहा है भारत का सम्मान
अपने अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों के कारण भारत का सम्मान दुनिया में बढ़ता जा रहा है। भूख से निजात पाने के लिए भी अंतरिक्ष अभियानों का एक खासा महत्व है। अरबों खरबों की संपत्ति और लाखों जीवन बचाने के साथ-साथ भारत को विज्ञान की दृष्टि से अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने का भी श्रेय भारत के वैज्ञानिकों को जाता है। यदि मंगल ग्रह को भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यान के सफल प्रक्षेपण के बाद दुनिया के लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखा जाए तो यह बात स्पष्ट होती है। अमरीका का ह्यवाल स्ट्रीटह्ण अखबार लिखता है कि आर्थिक अनिश्चतता के समय भारत का लाल ग्रह में अंतरिक्ष यान भेजने के बाद भारत का एशिया का पहला देश बन जाने से देश की मनोदशा बेहतर हुई है। ह्यटेलीग्राफह्ण अखबार लिखता है कि भारत के इस अभियान के बाद अंतरिक्ष की खोज सस्ते में करने के मार्ग खुल जायेंगे। वैज्ञानिकों का अखबार ह्यन्यू साईंसटिकह्ण लिखता है कि इस अभियान से जो तकनीकी जानकारियां प्राप्त होंगी, वे उसके अगले अभियान यानी ह्यरोबोटह्ण के साथ चांद को भेजे जाने वाले अंतरिक्ष अभियान के लिए मददगार होंगी और विज्ञान की दृष्टि से ज्यादा दिलचस्प होंगी।
अभी और आगे है जाना
भारत द्वारा इतनी कम लागत पर इस अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद ये आशाएं और बलवती हुई हैं कि भारत अंतरिक्ष अभियान में नई ऊंचाइयां छू पायेगा। अभी तक भारत अंतरिक्ष क्लब के देशों द्वारा भेदभाव का शिकार रहा है। अमरीका और यूरोप के देश भारत को किसी भी प्रकार की तकनीकी सहायता इसके अंतरिक्ष अभियानों में देने के लिए तैयार नहीं थे। अमरीका के दबाव में फ्रांस द्वारा क्रायोजैनिक ईंजन भारत को नहीं देने से हमारा अंतरिक्ष अभियान कुछ समय के लिए स्थगित जरूर हुआ, लेकिन देश ने आत्मनिर्भरता के आधार पर अपनी प्रौद्योगिकी का विकास खुद करने का काम किया। भारत के वैज्ञानिकों द्वारा उत्कृष्टता के अनेकानेक उदाहरण हमारे सामने हैं, जिनमें से सबसे ताजा उदाहरण मंगल अभियान का है। वास्तव में भारत का अंतरिक्ष अभियान भारत के लोगों के लिए ही नहीं, दुनिया भर के गरीब मुल्कों के लोगों के लिए सस्ती संचार व्यवस्था, भूर्गभीय जानकारियां और मौसम संबंधी जानकारियां उपलब्ध कराने वाला है।
(लेखक पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)     डॉ. अश्विनी महाजन
तारीख के आइने में मंगल ग्रह अभियान
०1965 में अमरीका के स्पेसक्राप्ट मैरिनर-4 ने मंगल की तस्वीर पृथ्वी पर भेजी। वह मंगल के लिए पहला सफल मिशन साबित हुआ।
०    1971 में पहली बार सोवियत संघ का ऑर्बाइटर लैडरमार्स-3 मंगल ग्रह पर उतरा
०1996 में अमरीका का मार्स ग्लोबल सर्वेयर, रोबोटिक रोवर के साथ सतह पर उतरा
०2004 में अमरीका ने फिर दो रोवरयान स्पिरिट और ऑपरच्यूनिटी को मंगल की सतह पर उतारा
०    26 नवम्बर, 2011 को अमरीकी क्यूरियोसिटी रोवर लॉन्च होकर 6 अगस्त 2012 को मंगल की सतह पर सफलतापूर्वक उतरा

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