संदिग्ध ईवीएम ही क्यों?
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संदिग्ध ईवीएम ही क्यों?

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Nov 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Nov 2013 14:45:09

शीघ्र ही नबंवर-दिसम्बर में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा कुछ ही महीनों के बाद सारे देश में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। विगत 10 वर्षों से केन्द्र सरकार घोटालों को लेकर चर्चा में बनी हुई है। एक नहीं बल्कि दर्जनोंं घोटाले आज जनता के सामने आ चुके हैं। साथ ही इस दौरान कांग्रेस ने भारत की सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया है। यूपीए की सरकार के दौरान भारत में चुनावों में इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोग भी सर्वत्र प्रारम्भ किया गया। कंागे्रस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार  प्रथम अपने कुशासन के बावजूद जिस तरह से पुन: 2009 में सरकार बनाने में सफल हुई, उससे ईवीएम मशीनों पर अनेक लोगों ने संन्देह उठाया। वहीं विदेशों में तो ईवीएम का चुनाव में प्रयोग अधिकतर बन्द हो ही चुका है। अत: कांग्रेस के अलावा अनेक राजनैतिक दलों व विशेषज्ञों को ईवीएम मशीनों पर ही सन्देह है। इन मशीनों के चुनावों में पुन: प्रयोग करने पर विचार किया जाना चाहिए , अन्यथा कहीं इसमें भी फिर कोई बड़ा घेाटाला करने में घोटालेबाज सफल न हो जाएं।
अमरीका, जर्मनी, इग्लैंण्ड, हालैण्ड आदि अनेक विकसित देशों में पहले ईवीएम का प्रयोग हुआ था। लेकिन लगातार आलोचनाओं तथा न्यूनतम सुरक्षा मानकों पर खरी न उतरने के कारण इन विकसित देशों ने मशीन का प्रयोग कुछ ही दिनों के बाद बंद कर दिया तथा पुन: कागजी मतपत्र प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी जो आज तक  सफलतापूर्वक वहां चल रही है। जबकि इसके ठीक विपरीत भारत का चुनाव आयोग निरन्तर इस बात का प्रचार करता रहा है कि ईवीएम पूर्णतय: सुरक्षित और पारदर्शी है।
ईवीएम का सबसे महत्वपूर्ण भाग है माइक्रो कन्ट्रोलर। इसको बनाने वाली जापानी  कम्पनी तथा जापानी सरकार भी ईवीएम को संदिग्ध मानती है और जापान भी इस प्रक्रिया को छोड़ कर चुनाव में मतपत्र प्रणाली का प्रयोग करने लगा है। विश्व में मुख्यत: तीन देशों- वेनेजुएला, नाईजीरिया तथा भारत ही ऐसे देश हैं जहां अभी भी चुनावों में ईवीएम का प्रयोग हो रहा है। अधिकतर देश इस प्रक्रिया पर विश्वास न करके कागजी मतपत्रों पर अपना विश्वास जता रहे हैंं।
यद्यपि पेरिस स्थित इन्टेलेक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन ने भी ईवीएम को एक देशी मशीन बताकर इसका पेटेंट किसी को देने से इनकार कर दिया है। चुनाव आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी 2006 की रपट में ईवीएम माइक्रोचिप के निर्माताओं को सुझाव दिया था कि वे ईवीएम में माइक्रोचिप के साफ्टवेयर ओर हार्डवेयर दोनों को प्रमाणित कर प्रमाण देने वाले ह्यअथनटिकेशन यूनिट परियोजनाह्य को प्रयोग में लाएं। लेकिन खुद निर्वाचन आयोग ने इस योजना को रुकवा दिया। क्योंकि 2007 में जैसे ही परियोजना लागू करने के लिए तैयार हुई तभी विशेषज्ञ समिति को रहस्यपूर्ण ढंग से स्थगित कर दिया गया। ईवीएम निर्माता कंपनी बीइल (भारत इलैक्ट्रनिक लिमिटेड) के महाप्रबंधक, जिनकी निगरानी में यह परियोजना लागू होने जा रही थी का समय पूर्व ही स्थानान्तरण कर दिया गया था।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 2009 के लोकसभा चुनावों में 13़78 लाख ईवीएम का प्रयोग किया गया था। इनमें से केवल 4़ 48 लाख मशीनें उन्नत (छेड़छाड़ रहित-जिनका माइक्रोचिप अधिकृत रूप से परिवर्तन ना किया जा सके।) लगाई गई थीं। शेष 9़3 लाख पुरानी ईवीएम प्रयोग की गई, जिनमें छेड़छाड़ आदि संभव हो सकती थी। ईवीएम मशीने को बनाने वाली कंपनी के अनुसार भी यह मशीनें सुरक्षा पर खरी नहीं उतरतीं। जिसके बाद उन्नत मशीनों का प्रयोग भाजपा शासित राज्यों में तथा पुरानी मशीनों का प्रयोग कांगे्रस शासित राज्यों में किया गया था। महाराष्ट्र के नांदेड़ संसदीय क्षेत्र में बूथ़ ऩ 183 में भी यह मशीनें देखी गईं एवं शिवडी, भंडारा आदि स्थानों पर इस प्रकार की घटनाएं देखने को मिलीं। भंडारा चुनाव क्षेत्र में 61 मतदान केन्द्रों में डाले गए मतों व गिने गए मतों में अंतर पाया गया।  इसी प्रकार आंध्र प्रदेश के परकाल विधानसभा क्षेत्र में 6 मतदान केन्द्रों (185, 197, 209, 212, 221 और 224) में डाले गए मत  मशीन से गुम हो गये थे। ऐसी ही संदिग्ध स्थितियां कई अन्य चुनाव क्षेत्रों में भी देखने को      मिली थीं।
इसी प्रकार महाराष्ट्र के अर्धापुरनगर में पंचायत चुनावों में निर्वाचन अधिकारी डा़ निशिकांत देशपाण्डे द्वारा सभी राजनीतिक दलों की उपस्थिति में चुनाव प्रक्रिया, मतदान पद्धति तथा मशीनों की जांच हेतु एक प्रदर्शनी  लगाई गई थी।  इस प्रदर्शनी के दौरान चुनावों में प्रयोग की जाने वाली ईवीएम मशीन में सात अलग-अलग वोट डाले गए।  जिसमें पांच वोट अकेले कांग्रेस के खाते में चले गए। ऐसी घटना दो बार हुई और सब हैरान रह गए। निर्वाचन अधिकारी ने मामले को दबा दिया। इसी प्रकार 2009 के लोकसभा के चुवाव में शिवगंगा लोकसभा सीट से कांग्रेस के नेता व वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री पी़ चिदम्बर पहली बार की मतगणना में 300 वोटों से हार  गए थे, दूसरी बार की मतगणना में भी यही परिणाम रहा। लेकिन पुन: उनके द्वारा तीसरी बार मतगणना की मांग की गई और जब तीसरी बार मतगणना की गई तो आश्चर्यजनक रूप से वे 3324 वोटों से विजय घोषित किए गए, जबकि इससे पहले सभी मीडिया चैनल चिदम्बरम की हार की खबर प्रसारित कर चुके थे। पी़ चिदम्बरम का यह निर्वाचन आज भी सन्देह के घेरे में है।
 पिछले कुछ साल पहले हालैण्ड में एक जनहित समूह ने एक वीडियो का निर्माण किया था। जिसमें दिखाया गया था कि कितनी आसानी से और तुरन्त वोटिंग मशीन को बिना किसी को पता चले ह्यहैकह्ण किया जा सकता है। जब यह वीडियो ह्यडच राष्ट्रीय चैनलह्य पर अक्तूबर-2006 में दिखाया गया तो वहां की ह्यडच सरकारह्ण ने चुनाव में ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया था। जर्मन न्यायालय ने मार्च-2009 में कहा कि ईवीएम असंवैधानिक है, क्योंकि इसमें वोट की पुष्टि करने वाला कोईभौतिक सत्यापन का प्रावधान नहीं है। आयरलैण्ड की सरकार  ने भी ईवीएम विधि से चुनावों की प्रक्रिया खत्म खत्म कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ के कई तरीके हैं, जैसे मशीनों में ट्रोजन वायरस डालना, माइक्रो वायरलेस ट्रांसमीटर या रिसीवर फिट करना, वोटिंग मशीन की गुप्त प्रोग्रामिंग से छेड़छाड़ करना आादि। वैसे भी भारतीय ईवीएम में प्रोग्राम विदेशी कंपनियों द्वारा ही डाला जाता है। इस प्रोग्राम को न चुनाव आयोग और न ही ईवीएम बनाने वाली सरकारी भारतीय कंपनियां-बीईएल, ईसीआईएल आदि जांच सकती हैं, और न ही इसकी पुष्टि कर सकती हैं कि ईवीएम चिप में सही या गलत या कौन सा प्रोग्राम डाला गया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अत्यन्त संदिग्ध ईवीएम को जानबूझ कर भारत में चुनावों में प्रयोग कराया जा रहा है। सभी विकसित देशों की तरह भारत में भी कागजी मतदान प्रणाली आगामी चुनावों में लागू की जानी चाहिए।  डा. सुशील गुप्ता

 

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