सहारा सेबी को सौंपे संपत्ति के दस्तावेज-सर्वोच्च न्यायालय
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सहारा समूह को सर्वोच्च न्यायालय से करारा झटका लगा है। सहारा को तीन सप्ताह के भीतर भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) के पास 20 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज (टाइटल डीड) जमा कराने का सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि इस अवधि के भीतर आदेश का पालन नहीं करने पर सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय व कंपनी के तीन अन्य निदेशक बिना न्यायालय की अनुमति के देश नहीं छोड़ सकेंगे।
लेकिन एक नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय और उनके दो निदेशकों को 11 नवंबर तक विदेश यात्रा की अनुमति दे दी है। इस तिथि तक उन्हें निवेशकों के धन की सुरक्षा के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिकाना हक के वास्तविक दस्तावेज जमा कराने होंगे। न्यायाधीश के़एस़ राधाकृष्णन और जे.एस. खेहर ने अपने कक्ष में सहारा के आवेदन पर सुनवाई करके अपने पहले वाले आदेश में बदलाव करते हुए यह आदेश दिया। इससे पहले 30 अक्तूबर को याचिका अस्वीकार कर दी गई थी। पिछली याचिका में सहारा प्रमुख के वकील ने न्यायालय के समक्ष आदेश व वेबसाइट में दर्शाए आदेश को एक-दूसरे से भिन्न बताया था।
न्यायाधीश के. एस. राधाकृष्णन और जे.एस. खेहर की पीठ ने ये निर्देश निवेशकों की राशि वापस लौटाने के मामले में सेबी की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी कि ये। संपत्तियों के मालिकाना हक के ये दस्तावेज सहारा को वर्ष 2008-2009 में बांड जारी कर जमा किये धन की वापसी की जमानत के तौर पर जमा कराने हैं। समूह की दो कंपनियों सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉर्प और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प ने आम लोगों से यह धन जुटाया था। इसे लेकर पूंजी बाजार नियामक सेबी ने आपत्ति जतायी थी। न्यायालय ने पिछले वर्ष 31 अगस्त को सहारा समूह निदेशक को निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपये 30 नवंबर तक लौटाने का आदेश दिया था।
28 अक्तूबर को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सख्ती बरतते हुए कहा कि अब सहारा समूह निवेशकों की राशि देने से नहीं बच सकेगा। सेबी सहारा की तरफ से जमा कराये दस्तावेजों व मूल्यांकन रिपोर्ट की जांच करेगा। इस मामले की अगली सुनवाई 20 नवम्बर को होगी। सहारा समूह के वकील सी. सुंदरम ने संपत्तियों के मालिकाना हक के मूल दस्तावेज जमा कराने का विरोध करते हुए कहा था कि पंजाब नेशनल बैंक कंपनी की भूमि की सुरक्षा ट्रस्टी बनने को तैयार है। पहले सहारा की ओर से जमा कराए गए दस्तावेजों की जांच कराई जाए। इसके अलावा कंपनी की ओर से जमा कराए गए 5120 करोड़ रुपये का आकलन किया जाए। यदि फिर भी राशि कम पड़े तो बैंक की ओर से दी गई सुरक्षा को बेचकर बकाया राशि वसूली जाए। कंपनी की ओर से जमा कराए गए दस्तावेजों की जांच से पहले ही संपत्तियों के मालिकाना हक के कागजात लेने से रीयल एस्टेट के कारोबार में लगी कंपनी को अपूरणीय क्षति होगी, लेकिन सहारा के इस सुझाव पर सेबी के वकील तैयार नहीं हुए।
सीबीआई की सूची में शीर्ष उद्योगपति
1-कुमार मंगलम बिरला, अध्यक्ष आदित्य बिरला समूह-वर्ष 2005 में मिलीभगत के तहत ओडिशा में कोयला खाद्यान पाने का आरोप। इसी माह हुई बिरला के खिलाफ एफआईआर दर्ज। सीबीआई ने जांच की शुरू।
2-सुनील मित्तल, अध्यक्ष भारती एयरटेल-स्पेक्ट्रम घोटाले के दौरान अपनी कंपनी भारती-एयरटेल की अनियमितता के बारे में मालूम था कि जब एनडीए सरकार ने उन्हें लाइसेंस आवंटन किया था। इस वर्ष मार्च माह में आरोपी बने थे।
3-रतन टाटा, पूर्व निदेशक टाटा समूह-आरोप है कि टाटा रियलटी ने 2जी लाभ पाने वाली यूनिटेक को 1700 करोड़ रुपये का लोन दिया। जून, 2011 में अदालत से क्लिन चिट मिली। अब सर्वोच्च न्यायालय ने सीबाआई को निर्देश दिया कि टाटा मोटर्स व टाटा स्टील के संबंध में राडिया टेप की जांच की जाए।
4-अनिल अंबानी, अध्यक्ष रिलायंस एडीएजी व गौतम दोषी, रिलायंस एडीएजी समूह के प्रबंध निदेशक-आरोप है कि रिलायंस ने स्वेन टेलीकॉम को आगे कर पात्रता के योग्य नहीं होने पर 2जी लाइसेंस लिया। इस मामले में अंबानी सरकारी गवाह बन गए। गौतम दोषी वर्ष 2011 में गिरफ्तार हुए। फिलहाल जमानत पर बाहर और सुनवाई जारी।
5-मुकेश अंबानी, अध्यक्ष रिलायंस इंडस्ट्री-शासकीय गुप्त अधिनियम के उल्लंघन का आरोप। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई कर रही है पूछताछ।
6-नवीन जिंदल, अध्यक्ष जिंदल स्टील एंड पावर-कोयला आवंटन मामले में पूर्व केन्द्रीय कोयला मंत्री के साथ मिलीभगत कर वर्ष 2006 से वर्ष 2009 के बीच झारखंड में कोयला खाद्यान्न पाने का आरोप। इस साल हुआ मामला दर्ज, जांच जारी।
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