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पटना में भाजपा की ऐतिहासिक रैली को निशाना बनाकर किए गए धमाकों का विध्वंस भले सीमित दिखे, विश्लेषण व्यापक नजरिए की मांग रखता है। इस अभूतपूर्व जन ज्वार में भगदड़ की सुनामी उठाने का खूनी षड्यंत्र यदि पूरा हो जाता तो देशभर में कैसा हाहाकार मचता इसकी कल्पना भी दहलाने वाली है। ईश्वरीय कृपा कि मौके पर मौजूद जनता और मंचासीन नेताओं ने समझदारी दिखाई और त्रासदी सीमित होकर रह गई।
ऐसे में, यह वक्त खूनी इरादों वाले जिहादी संगठनों के उन दर्दमंदों की पहचान का, जिनकी शह पर देश भर में आतंक और मजहबी कट्टरवाद की जहरीली बेल फैल रही है। सेकुलर कहलाने वाले दल आतंकियों के लिए मन में क्या विचार रखते हैं यह देश को जानना चाहिए। बाटला हाउस में इसी इंडियन मुजाहिदीन के गुगोंर् की मौत पर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं, यह तथ्य देश को जानना चाहिए। यह भी जानने वाली बात है कि उसी मुठभेड़ में मारे गए शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की शहादत को फर्जी बताने वाले सारे दल वही हैं जो सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई का बिल्ला लगाए घूमते हैं।
पटना रैली के हताहतों के लिए सोनिया-मुलायम या नीतीश रोए, यह तो पता नहीं लेकिन इतना साफ है कि कथित सेकुलर ताकतों का झुकाव किस पाले में है।
कुख्यात पाकिस्तानी आतंकियों के साथ गुजरात में मारी गई इशरत को 'बेटी' बुलाने वाले और लादेन जैसे जिहादियों के लिए 'जी' का इस्तेमाल करने वाले सेकुलर सत्ताधीश कट्टरवाद से लड़ेंगे या आतंकी दानव के सामने सिजदा करेंगे, यह अपने आप समझ में आने वाली बात है।
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