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वह महिला रैली से मुजफ्फरपुर लौट गई थी। थोड़ी घबराई, थोड़ी अचंभित, और थोड़ी रोमांचित तो थी ही। रैली से लौटे लोग आपस में अपनी आंखों देखी अनुभूतियां बांट रहे थे। घर-द्वार, चौक-चौराहे, बाजार-हाट में रैली की ही चर्चा थी। डा. तारण राय, भाजपा नेता भी उस रैली में थीं। उस शहर की एक सामान्य महिला ने उन्हें बताया-ह्यदीदी! जहां दूसरा बम फटा उसके 20-25 गज की दूरी पर ही मैं बैठी थी। मैं तो डर के मारे कांपने लगी। उधर देखा जिधर बम फटा था। एक नौजवान का दाहिना हाथ बम के टुकड़े से घायल हो गया। खून से लथपथ। आसपास के लोग भाग गए थे। उस नौजवान ने अपने ही बाएं हाथ से कंधे पर से गमछा उतारकर दाईं बांह को कसकर बांधा। बाएं हाथ ऊंचा कर बोला- ह्यहर-हर मोदी-घर-घर मोदीह्ण। और भी नारे। मैं क्या बताऊं दीदी। मेरी कंपकपी थम गई। मैं भी खड़ी हो गई। नारे लगाने लगी।ह्ण
अपनी ऐसी अनुभूति सुनाने वाली वह अकेली महिला नहीं थी। सैकड़ों होगें। मेरा ड्राइवर मोहम्मद हासिम अंसारी भाजपा नेता अचल कुमार सिन्हा और चंद्रकांता सिन्हा को लेकर नालन्दा जिला के अहिल्यापुर गांव (सरमेरा ब्लॉक) गए थे। मैंने पूछा-ह्यक्या शहीद राजेश कुमार के घरवाले और ग्रामीण भाजपा को कोस रहे थे?ह्ण
हासिम बोला-ह्यबिल्कुल नहीं। सभी भाजपा के पक्ष में दिखे। राजेश को खोने का दर्द तो है। पर भाजपा के पक्ष में अतिउत्साहित हैं सब।ह्ण पटना के हास्पिटल में अपना इलाज करा रहे सभी घायल पूछ रहे थे-ह्यनरेन्द्र मोदी जी का भाषण हम ही सुन नहीं पाए। इसी का अफसोस है।ह्ण
कमाल का जज्बा था रैली में आए लाखों स्त्री-पुरुष और नौजवानों का। पिछले चालीस वर्षीय राजनैतिक जीवन में रैलियां तो मैंने बहुत देखी है। श्री अटल बिहारी जी की रैलियां, श्री लालकृष्ण आडवाणी जी की रामरथ यात्रा (1990) से लेकर डा. मुरली मनोहर जोशी जी की एकता यात्रा तक जिसमें लक्ष्मण के रूप में थे नरेन्द्र भाई मोदी। जम्मू की रैली में युवाओं की शक्ति देख फफक कर रो पड़े थे। उन रैलियों और यात्राओं में जनता का जोश देखकर रोमांच होता था। रामरथ यात्रा में तो जनता की आंखें भरती रहीं। बिहार मंे जब रथ पटना सीटी के भीड़ भरे इलाके से गुजर रहा था तो मुस्लिम समुदाय गर्मजोशी से रथ का स्वागत कर रहे थे। उस समय जो लालकृष्ण आडवाणी की आंखें छलक आईं। समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा श्री आडवाणी के रथ रोकने और गिरफ्तार के समय सुबह पांच बजे मैं अकेली उन्हेंं विदा कर रही थी। गिरफ्तारी की खबर सुनकर हजारों कार्यकर्ताओंे ने सर्किट हाउस को घेर लिया। उनके क्रोध का भाजक मुझे भी बनना पड़ा-ह्यआपने सरकारी गाड़ी रोकी क्यों नहीं?ह्ण मुम्बई अधिवेशन में डेढ़ लाख कार्यकर्ताओं का जोश भरा नारा ह्यप्रधानमंत्री की अगली बारी, अटल बिहारी-अटल बिहारी-अटल बिहारीह्ण, सुन-सुनकर श्री लालकृष्ण आडवाणी रोमांचित हो गए। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण का अंत किया था-ह्यचुनाव होगा। देश के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी होगें। दस मिनट तक जयकार होता रहा और तालियां बजती रहीं।रैलियों, जुलूसों और बड़ी समस्याओं के विविध रंग देखा है। पर 27 अक्टूबर, 2013 की रैली अपने आप में अनोखी थी। अद्भुद। पटना की हुंकार रैली में भागीदारियों का मुड कुछ और था। पांच-छ: लाख की रैली में युवाओं की संख्या नब्बे प्रतिशत थी। उस मंच पर बैठे हुए पहली बार देखा कि गुथ कर खड़े लाखों जीवंत श्रोता वक्ताओं को अपने जोश और नारों से प्र्रेरित कर वही बुलवाते थे जो वे सुनना चाहते थे। श्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनके भावों को समझकर ही भाषण दिए। प्रफुल्लित थे मोदी और उत्साहित भी। पूर्व की रैलियों से थोड़ा भिन्न था उनका भाषण। अंत में तो वे उछल-उछल कर नारा लगवाने लगे। पहली बार देखा कार्यकर्ता और जनता का उत्साह। विश्वास जग रहा था-ह्यभारत में लोकतंत्र जीवित है।ह्ण
दिल्ली लौट आईं हूं। पर रैली का दृश्य स्मरण कर अभी भी दिल कांप उठता है। यदि उन बमों के फटने की आवाज सुनकर लाखों लोग भागने दौड़ने लगते तो क्या होती परिणति? भगदड़ में कितने लोग मरते, कुचले जाते? भर जाता गांधी मैदान जूते, चप्पल और गमछों से। दिल दहल जाता है। एक और बात। यदि बम फटने का दोष मोदी और भाज़़पा़ पर मढ़ कर भीड़ गुस्से से भर जाती तो? क्या होता दोनों का भविष्य?
कुछ ऐसा-वैसा नहीं हुआ। बिहार संतुष्ट है कि मंच पर बैठा समस्त भाजपा नेतृत्व और नरेन्द्र मोदी बच गए। भाज़़पा़ नेताओं की सूझबूझ का अभिनंदन करना ही होगा कि सबने बम फटने को आतिशबाजी की संज्ञा देकर भगदड़ होने से बचा लिया। पर मेरा मन तो आज भी उपस्थित लाखों स्त्री-पुरुषों, विशेषकर युवाओं का विशेष अभिनंदन करना चाहता है।
विश्वास जागता है कि ऐसी युवा शक्ति की भागीदारी के बल पर ही बिहार क्या, देश में भी विकास हो पाएगा। श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास में जनता को भागीदार बनाया। परिणाम सामने है। बिहार की युवा-शक्ति ने नरेन्द्र मोदी को विश्वास दिला दिया-ह्यहम किसी से कम नहीं।ह्ण रैली की इतनी भर उपलब्धि क्या कम है? भाजपा ही नहीं, अन्य दलों द्वारा आयोजित रैलियों से अलग अपनी पहचान बनाकर रैली समाप्त हुई। मैं सोचती हूँ कि यदि मैं उस रैली में मंच पर उपस्थित नहीं होती तो कितना कुछ छूट जाता देखने से। अछूती रह जाती उस रैली में उमड़े सामूहिक विश्वास से। हर भीड़ की अपनी आत्मा होती है। अलग पहचान। जो लोग शहीद हुए, उनके प्रति श्रद्घांजलि अर्पित करते हुए इतना ही कहना चाहूंगी- ह्यआपका बलिदान कभी विफल नहीं जाएगा।ह्ण
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