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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर-शामली जिले में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के कारण इस बार यहां दिवाली फीकी है। लोगों के मन में दहशत है और वे आशंकित रहते हैं कि न जाने कब क्या हो जाए ? यहां अभी भी हत्याओं का सिलसिला जारी है, हालांकि प्रशासन इन हत्याओं को साम्प्रदायिक हिंसा की बजाए आपसी रंजिश या लूटपाट के उद्देश्य से की गई घटना बताकर लीपापोती करने में जुटा है।
शहर के प्रमुख बाजारों की बात करें तो भगत सिंह रोड, रुड़की रोड, कोर्ट रोड, सर्राफा बाजार व लोहिया बाजार और नई मंडी के इलाके में बिंदल वाली गली व चौड़ी सड़क स्थित बाजार सूने पड़े हैं। देहात से खरीददारी करने के लिए लोग शहर का रुख तक नहीं कर पा रहे हैं जिसकी वजह सिर्फ और सिर्फ दहशत ही है। कारोबारियों का कहना है कि सितम्बर के बाद से बाजार चौपट हो गये हैं और कारोबार सिमटकर केवल 25 से 30 फीसदी ही रह गया है। मुजफ्फरनगर के ही एक कारोबारी राकेश बताते हैं कि भले ही दंगे शांत हो चुके हैं, लेकिन रंजिश के चलते हत्याओं का सिलसिला जारी है। अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमान आज भी हिन्दुओं से भिड़ने की ताक में रहते हैं और खुलेआम उन्हें देख लेने की धमकी देते हैं। उन्होंने बताया कि दिवाली के मौके पर बाजार ही नहीं, बल्कि लोगों के घरों से रौनक उड़ गई है। दिवाली पर खास मिठाई आदि का कारोबार करने वाले हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए हैं। यहां तक की सप्ताहभर पहले से लोगों के घर मिठाई का आदान-प्रदान करने वाले लोग अपने घरों से निकल नहीं रहे हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के खरड़ गांव निवासी व भारतीय किसान यूनियन के समन्व्यक धर्मेन्द्र मलिक बताते हैं कि देहात से लेकर शहर में कहीं भी दिवाली वाली बात नहीं हैं। जिन घरों के सदस्य हिंसा में मारे गए या घायल हुए उनके अलावा दूसरे परिवार भी त्योहार फीका मानते हैं। उन्होंने बताया कि देहात के लोगों ने हिंसाग्रस्त गांव में दिवाली का त्योहार नहीं मनाये जाने का आह्वान भी किया है। लोगों का मानना है कि सिर्फ औपचारिकता के लिए दिवाली सादगी से मनायेंगे और मिठाई भी नहीं बांटेंगे। दंगा प्रभावित गांवों में मुजफ्फरनगर व शामली जिले के मलिकपुरा, पुरबालिया, जौली नहर, काकडा, मुण्डभर, कुटबा, कुटबी, फुगाना, मोहम्मदपुर राय सिंह, लिसाढ़, लॉक और बिटावदा गांव शामिल हैं। बिटावदा गांव में तो किसानों की फसलों को आग लगाकर खेती के इस्तेमाल में काम आने वाले पानी के बोरिंग मुस्लिम दंगाइयों ने नष्ट कर दिये थे। जिन लोगों के खेतों में बोरिंग थे उन्हें दो से ढाई लाख रुपये का नुकसान पहंुचा है। इसके अलावा हिंसा में किसानों के ट्रेक्टर-ट्राली को भी भारी नुकसान पहंुचाया गया जिससे उनकी आजीविका भी प्रभावित हुई है। लेकिन सरकार ने ऐसे किसानों से पक्षपात कर उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया है।
दंगे में मारे गए पत्रकार
स्व. पत्रकार राजेश वर्मा के परिवार में उनकी पत्नी नीरू, बेटा सारांश और बेटी शिवानी है। उनके छोटे भाई संजय वर्मा, पत्नी गीता वर्मा, बेटी नीलिमा और राधिका सभी साथ रहते हैं। 22 वर्षीय सारांश बताते हैं कि सात सितम्बर को वह पिताजी के साथ भोजन कर रहे थे। शहर में हिंसा की सूचना मिलते ही उनके पिता पांच मिनट में घर लौटने की बात कहते हुये दौड़ गये थे। लेकिन दुर्भाग्य से उनकी हत्या की सूचना ही परिजनों को मिली। राजेश चाहते थे कि वे बेटे सारांश की शादी कर दें, लेकिन वह सपना अधूरा ही रह गया। सारांश बताते हैं कि पिता जी की हत्या के बाद से घर में सन्नाटा पसरा रहता है। घर पर मिलने के लिए आने वाले लोगों का सिलसिला जारी है। सभी दिलासा देकर परिस्थिति का सामना करने की बात कहते हैं।
पिता को भी सुख नहीं मिला
सारांश बताते हैं कि जब राजेश मात्र पांच वर्ष के थे तो उनकी दादी का स्वर्गवास हो गया था और दादा इसी वियोग में घर छोड़कर चले गये थे। किसी तरह राजेश, उनकी बड़ी और छोटे भाई ने खुद को खड़ा किया, लेकिन जब भविष्य के लिए सुनहरे सपने देखने का समय आया तो एक बार फिर से परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने बताया कि दिवाली और दूसरे सभी त्योहार केवल इस लिए मनाने पड़ेंगे कि आन न पड़ जाए, वरना आज भी परिवार को कोई भी सदस्य सदमे से निकल नहीं पाया है।
प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
सारांश बताते हैं कि पिता की हत्या के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने आश्वासन दिया था कि उन्हें सरकारी नौकरी दी जायेगी। इस बीच उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार से 15 लाख रुपये और प्रधानमंत्री कोष से 10 लाख रुपये की सहायता मिल गई है। एक अक्तूबर से सारांश की कचहरी (एडीएमई) में नौकरी लग चुकी है। अब उनकी मां नीरू वर्मा की तरफ से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर केन्द्र सरकार द्वारा दी जाने वाली नौकरी के आश्वासन को पूरा करने के लिए अनुरोध किया है। वह चाहती हैं कि उनकी 20 वर्षीय बेटी शिवानी को केन्द्र सरकार की तरफ से नौकरी मिल जाये। साथ ही पति राजेश के हत्यारों को सख्त सजा मिले और परिवार को सुरक्षा मुहैया करायी जाए।
मुस्लिमों को रेवड़ी, मृतक दामोदर की बेटी को दिया चेक बाउंस
उत्तर प्रदेश सरकार की कथनी-करनी और करनी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिम परिवारों के उजड़ने का राग अलापकर उन्हें पांच-पांच लाख रुपये के मुआवजे के तौर पर रेवडि़यां बांट रही है। ऐसे लोगों के प्रति सरकार ने सहानुभूति दिखाते हुए विस्थापित मुस्लिमों को बसाने का राग छेड़ा है। इस सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये के कई कारनामे पहले भी उजागर हो चुके हैं, लेकिन हिन्दू-मुस्लिम में इस कदर पक्षपात किया जा रहा है कि एक मृतक हिन्दू परिवार की सुध तक नहीं ली जा रही है।
मुजफ्फरनगर में सात सितम्बर को दंगा भड़कने पर सबसे पहले दक्षिणी कृष्णापुरी निवासी छोले-भठूरे की रेहड़ी लगाने वाले 40 वर्षीय दामोदर की गोली मारकर हत्या की गई थी। इनके परिवार में पत्नी सुनीता, बेटा, अजुर्ुन, बेटी पूजा और छोटू हैं। मृतक की बेटी पूजा ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार से 10 लाख रुपये, जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर से 2 लाख रुपये और मुजफ्फरनगर शहर से समाजवादी पार्टी के विधायक चितरंजन स्वरूप ने एक लाख रुपये का चेक सहायतार्थ दिया था। इसे जब परिवार ने बैंक जाकर नकदी निकालने का प्रयास किया तो वह बाउंस हो गया। परिवार ने चेक को पटवारी को सौंप दिया है। चेक पर मुजफ्फरनगर के अपर जिला अधिकारी की मोहर भी लगी हुई थी। मृतक के घर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी संवेदना व्यक्त करने नहीं पहंुचे थे। केन्द्र सरकार की ओर से भी पीडि़त परिवार को कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। किराये के मकान में रहने वाला यह परिवार चाहता है कि परिवार के सदस्यों को रहने के लिए एक आवास मुहैया कराया जाये। केन्द्र या राज्य सरकार बेटी को पूजा को उसकी शिक्षा के आधार पर नौकरी दे जिससे उनके घर के सदस्यों की आजीविका चल सके। पूजा ने बताया कि उसके बड़े भाई अर्जुन की एक अक्तूबर से कचहरी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तौर पर नौकरी लगी है।
परिवार में छाया मातम
दामोदर की मौत के बाद से परिजनों का गहरा आघात लगा है। दामोदर की मौत के साथ ही परिवार के सदस्यों के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है। इस बार परिजनों ने कोई त्योहार भी नहीं मनाया है। घरवाले दिवाली भी नहीं मनाएंगे।
पांच दीपक जलाकर मनेगी दिवाली
मलिकपुरा निवासी रविन्द्र कुमार बताते हैं कि 27 अगस्त को उनके बेटे गौरव और उसके ममेरे भाई सचिन की हत्या कर दी गई थी। दो आरोपियों को छोड़कर बाकी हमलावर अभी तक फरार चल रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार से परिवार को न्याय की उम्मीद नहीं है। इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। रविन्द्र कुमार बताते हैं कि सचिन की हत्या से करीब चार माह पूर्व उनका बड़ा बेटा नीतिन एक रेल दुर्घटना का शिकार हो गया था जिससे उसकी मौत हो गई थी। ऐसे में अब गौरव ही उनके बुढ़ापे का सहारा था। राहुल शर्मा
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