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वोट पक्के करने की जुगत

by
Nov 2, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Nov 2013 12:11:57

 

दिल्ली में रहने के बावजूद शर्मा जी की नेताओं की समाधियों पर जाने में कोई रुचि नहीं है, पर इस दो अक्तूबर को बाहर से आये एक मित्र के साथ उन्हें राजघाट जाना ही पड़ा। लौटते हुए उन्होंने खिलौने वाले से गांधी जी और उनके तीन बंदरों की मूर्तियां खरीदीं और अपने शयनकक्ष में रख दीं।
रात में एक जरूरी काम से जब वे उठे, तो देखा कि गांधी जी की मूर्ति की जगह एक बंदर बैठा था और बंदरों के स्थान पर गांधी जी का मुखौटा लगाये तीन लोग डटे थे। वे तीनों बंदर को डांट रहे थे और बेचारे बंदर जी चुपचाप आंसू बहा रहे थे।
गांधी नंबर एक – ऐ मिस्टर बंदर सिंह, हमने कितनी बार कहा है साम्प्रदायिक हिंसा के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराने वाला विधेयक हर हाल में पारित होना चाहिए। फिर उसमें देरी क्यों हो रही है ?
– मैडम जी, कोशिश तो कर रही हैं, पर दल और सरकार में उस पर बड़ा विरोध है। यदि हमने दबाव डाला, तो सरकार टूट जाएगी।
– बंदर सिंह, अब हिन्दू तो हमें वोट देंगे नहीं, पर इस विधेयक के पारित होने से मुसलमान और ईसाई वोट तो पक्के हो जाएंगे। और इस मुद्दे पर यदि सरकार गिरेगी, तो उसका भी बहुत अच्छा संदेश जाएगा। मेरी तबियत ठीक नहीं रहती। मैं अपनी आंखों के सामने पप्पू को तुम्हारी कुर्सी पर बैठे देखना चाहती हूं। इसलिए चाहे जैसे भी हो, इस विधेयक को पारित कराओ।
गांधी नंबर दो – क्यों बंदर जी, अपराधियों को राजनीति में बनाये रखने वाले विधेयक के विरोध का मेरा नाटक कैसा रहा ?
– बहुत अच्छा रहा। अखबारों ने भी कई महीने बाद आपका चित्र पहले पृष्ठ पर छापा। आपने भी तो देखा होगा ?
– नहीं बंदर जी। हिन्दी पढ़नी तो मुझे आती नहीं। अंग्रेजी अखबारों में भी हर दिन नरेन्द्र मोदी को देखकर सुबह-सुबह मेरा ह्यमूडह्ण खराब हो जाता है। इसलिए मैंने अखबार पढ़ना ही बंद कर दिया है। अच्छा कुछ ऐसे ठोस उपाय बताओ, जिससे चुनाव में नैया पार हो सके।
– आप भी क्या कह रहे हैं सर जी। ये उपाय मुझे पता होते, तो मैं ही चुनाव न जीत जाता। फिर भी एक बात बताता हूं। आप पाउडर लगाना बंद कर दें। इससे आपका उदास चेहरा गरीबों का हमदर्द सा लगेगा। बाहर के कपड़े भी स्वदेशी और कुछ पुराने से पहनें। विदेशी जूते की जगह गांधी आश्रम की चप्पल अच्छी रहेगी। इससे गांधी जी भले ही सिर पर न हों, पैरों में तो रहेंगे ही।
गांधी नंबर तीन – बंदर अंकल, राबर्ट के कारोबार के बारे में आपका एक अधिकारी बहुत शोर कर रहा है, उसका कुछ किया ?
– जी हां, कई बार उसका स्थानांतरण कर चुके हैं, फिर भी उसका दिमाग ठीक नहीं हुआ। इसलिए इस बार उसे आरोप पत्र ही थमा दिया है। मेरी पूरी कोशिश है कि उसे जेल भिजवा दूं। जिससे उसका ही नहीं, बाकी सबका दिमाग भी ठीक हो जाए।
– जरा जल्दी करो बंदर अंकल। अब कुछ महीने ही तो बाकी हैं। इसमें जितना माल बना लें, उतना अच्छा है। पता नहीं, जीवन में फिर कभी ऐसा मौका मिले न मिले ?
शर्मा जी को उनकी बात सुनते हुए नींद आ गयी। सुबह उठे, तो मूर्तियां वैसी ही थीं, जैसी खरीद कर लाये थे। अगली रात में भी ऐसा ही हुआ। आज सुबह जब वे मिले, तो उन्होंने पूरी बात सुनाकर पूछा – क्यों वर्मा जी, दिन में तो गांधी जी और बंदर अपनी जगह रहते हैं, पर रात में वे स्थान बदल लेते हैं। ये क्या तमाशा है ?
– शर्मा जी, ये भारत की राजनीति है। जो सरकार चला रहे हैं, वे दिखाई नहीं देते, और जो दिखाई दे रहे हैं, उनके हाथ में कुछ ताकत नहीं है। इसलिए जो परदे के आगे हैं, उन पर थू-थू हो रही है और परदे के पीछे वालों के हर तरह से मजे हैं। राजनीति और कूटनीति के इस अंतर को समझना आसान नहीं है।
– पर इस चक्कर में देश का शासन तो चौपट हो जाएगा ?
– वाह रे मेरे प्यारे शर्मालाल। यदि तुम्हें अब भी शासन चौपट नहीं लगता, तो अपनी आंखों का इलाज वहां कराओ, जहां हर दीवाली पर लक्ष्मी जी अपने वाहन की सर्विस कराती हैं। इससे तुम्हें दिन के अंधेरे और रात के उजाले का अंतर साफ दिखने लगेगा।
बात काफी गहरी थी, इसलिए शर्मा जी के पल्ले नहीं पड़ी। उन्होंने अपना चश्मा उतारा और आंखें पोंछते हुए प्रस्थान कर गये।                      विजय कुमार

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