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70 के दशक में हरियाणा के जिला महेन्द्रगढ़ स्थित गांव कांटी से दिल्ली आकर बसा अग्रवाल परिवार आज परिवार के एक सूत्र में बंधे होने से रिश्तेदार और पड़ोस के लोगों के बीच विशेष चर्चा में रहता है। अभी परिवार के मुखिया 80 वर्षीय श्री मदन गोपाल अग्रवाल पत्नी, तीन बेटे-बहू और पोते-पोतियों के साथ सरस्वती विहार में रहते हैं। सभी सुख-दुख संग में मिलकर बांटते हैं।
बुजुर्गों से मिली संयुक्त परिवार की शिक्षा
मदन गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि संयुक्त परिवार में रहने की शिक्षा उन्हें बचपन से ही अपने बुजुर्गों से मिली थी। गांव में कुनबे के सदस्य सदैव एक साथ ही रहते थे। इसी परम्परा को अपने गांव से लौटकर भी उन्होंने जारी रखा। आज तीनों बेटे और उनके परिवार को देखकर वह खुशी से फूले नहीं समाते हैं। इस दौर में संयुक्त परिवार के बीच रहकर उन्हें रह-रह कर अपने बुजुर्गों के दिए हुए संस्कार पूरे होने पर संतुष्टि का अहसास होता है। श्री अग्रवाल ने बताया कि शुरू से ही बच्चों की शिक्षा को लेकर वे गंभीर थे। बच्चों को स्कूल की शिक्षा के साथ-साथ वह धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन भी कराते थे। परिवार में सत्संग व कथा आदि का आयोजन अभी भी चलता रहता है। श्री अग्रवाल पूरे परिवार की धुरी हैं, परिवार में उनका निर्णय अंतिम होता है।
परिवार के सदस्य
इस परिवार में कुल 14 सदस्य हैं। श्री मदन गोपाल अग्रवाल व पत्नी गिन्नी देवी के सबसे बड़े बेटे सुभाषचंद अग्रवाल एसएमसी गु्रप में सीएमडी हैं। उनके छोटे भाई अशोक कुमार अग्रवाल भी एक निजी कंपनी में निदेशक हैं। परिवार में सभी बच्चों ने चार्टर्ड अकाउंटेंट की शिक्षा प्राप्त की है। कई बच्चे अमरीका से सीएफए भी हैं। सभी कारोबार के हिसाब से भी पूरा सहयोग करते हैं। परिवार में सुभाषचंद अग्रवाल की पत्नी हेमलता, बेटा प्रणय और बेटी श्रुति हैं। इनकी दो बेटी श्वेता और अदिति की शादी हो चुकी है और दोनों ब्रिटेन में रहती हैं। सुभाषचंद अग्रवाल के छोटे भाई अशोक कुमार अग्रवाल, उनकी पत्नी अल्का, बेटा अंकित और अर्पित, उनका छोटा भाई दामोदर कृ ष्ण अग्रवाल, पत्नी अर्चना, बेटा आयुश और बेटी अंशिका हैं।
संयुक्त परिवार क ी उपलब्धि
सुभाषचंद बताते हैं कि संयुक्त परिवार होने से परिवार को लेकर किसी प्रकार की चिंता कभी मन में नही रहती है। कारोबार को लेकर उनका देश-विदेश में आना जाना लगा रहता है। ऐसे में बड़ा परिवार होने से कोई कार्य बाधित नहीं होता है। कोई न कोई परिवार का सदस्य जिम्मेवारी पूरी कर देता है। उन्होंने बताया कि परिवार में कोई समारोह आदि होने पर किसी एक सदस्य पर दबाव नहीं रहता है। सभी मिलकर एक-दूसरे का कार्य संभाल लेते हैं। पढ़ाई कर रहे बच्चों को उनके शिक्षण संस्थान छोड़ने व लाने का कार्य भी सभी बारी-बारी से पूरा कर लेते हैं।
पुरानी याद
सुभाषचंद बताते हैं कि पिछले वर्ष उनकी बेटी श्वेता और अदिति को ब्रिटेन जाना था। ऐसे में हवाई अड्डे पर पहंुचकर उन्हें मालूम हुआ कि एक बैग घर पर ही छूट गया है। उन्होंने तुरंत घर फोन कर छोटे भाई को बैग लेकर हवाई अड्डे बुलाया, जो कि समय रहते वहां पहंुच गया। इससे किसी बाहरी व्यक्ति की मदद नहीं लेनी पड़ी और आसानी से बात बन गई। उनका कहना है संयुक्त परिवार होने से ही ऐसे अनेक बिगड़े कार्य चुटकी में बन जाते हैं।
सौभाग्यशाली मानते हैं
कारोबारी सुभाषचंद बताते हैं कि आज के समय में संयुक्त परिवार में रहना उनके लिए सौभाग्य की बात है। आज एकल परिवार के दौर में उन्हें खुद को देखकर गौरव महसूस होता है। वह कहते हैं कि आज तो शादी होने पर बेटा-बहू अलग हो जाते हैं, लेकिन यहां पर न केवल बेटा-बहू, बल्कि भाई-भाभी और उनके बच्चे भी संग रहते हैं। माता-पिता और भाइयों के साथ रहने से उनका जीवन अनमोल बन गया है। चुनौती का पता ही नहीं लगता-वह बताते हैं कि सभी के परिवार में जीवन में कोई न कोई चुनौती उभरकर आती रहती है। ऐसे में इस परिवार का कोई सदस्य कभी बीमार पड़ जाए या अन्य कोई समस्या आ जाए तो सभी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं। ऐसे में बड़ी से बड़ी समस्या भी सामान्य लगती है। ऐसा सिर्फ संयुक्त परिवार के होने से ही संभव है।
महेन्द्रगढ़ से शालीमार बाग आकर बसे थे
सुभाषचंद बताते हैं कि उनका परिवार सबसे पहले दिल्ली के शालीमार बाग इलाके में आकर बसा था। इसके बाद सरस्वती विहार रहने लगे और अब पंजाबी बाग स्थित नये घर में जाकर रहेंगे। इनके भाइयों और उनके बच्चों की शिक्षा दिल्ली में ही संपन्न हुई है।
चार्टर्ड अकाउंटेंट का परिवार
यह परिवार चार्टर्ड अकाउंटेंट के परिवार के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1981 में सुभाषचंद सीए बन गए थे। उस समय में गिने-चुने सीए हुआ करते थे। कारोबार को आगे बढ़ाने के बाद परिवार के बच्चों को भी उन्होंने भविष्य में सहयोग की दृष्टि से उच्च शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा दी। यही वजह है कि आज घर में बेटा हो या बेटी सभी सीए या सीएफए पास हैं।
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