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राजस्थान में 200 विधानसभा सीटों के लिए आगामी एक दिसम्बर को चुनाव होना है। पहली बार भारतीय जनता पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी क्योंकि किसी अन्य राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं किया जा रहा है।
सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार के मंत्रियों पर भी इस बार चरित्र हनन के दाग लगने से पार्टी की खासी किरकिरी हो चुकी है। कई मंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ गया था। वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी भाई-भतीजावाद से लेकर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लग चुके हैं। सरकार पर परिवहन सेवा में सुधार नहीं करने, भ्रष्टाचार बढ़ने और अपराध बढ़ने जैसे गंभीर आरोप हैं। वहीं पेयजल संकट राज्य की प्रमुख समस्या बनकर उभरा है। सरकार पर आरोप लगे हैं कि वर्ष 2011-12 में केन्द्र से मिली 300 करोड़ रुपये की राशि में से मात्र 25 करोड़ ही खर्च हो सके। वर्ष 2012-13 में 600 करोड़ रुपये में से 18 करोड़ रुपये ही खर्च हुए। हाल ही में 1300 करोड़ रुपये की राशि में से 56 करोड़ रुपये ही खर्च हुए, जो कि बड़े स्तर पर एक प्रशासनिक विफलता है।
भाजपा ने यहां वर्ष 1980 के बाद से कभी अकेले चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन इस बार पार्टी पूरे जोश के साथ सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने सात सीटों के लिए गठबंधन किया था जिसमें से केवल एक ही सीट पर विजय पायी थी। इससे साफ है कि पार्टी का गठबंधन का अनुभव ज्यादा लाभकारी नहीं रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 96, भाजपा ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा राजस्थान में बसपा, माकपा, राजपा और निर्दलीय प्रत्याशी भी कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकते हैं। दरअसल पिछले चुनाव में बसपा ने 82 सीटों पर मजबूती बनाकर कांग्रेस को 15 से 20 सीटों पर करारा झटका दिया था। यहां पिछड़े वर्ग का मतदाता कांग्रेस को छोड़ बसपा के साथ जुड़ रहा है। यही कारण है कि पिछली बार बसपा ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 10 सीटों पर दूसरा और 66 सीटों पर तीसरा स्थान पाया था। वहीं 14 निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे थे। ल्ल पाञ्चजन्य ब्यूरो
2008 की दलगत स्थिति
कांग्रेस – 96
भाजपा – 78
बसपा – 06
निर्दलीय – 20
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