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दिल्ली/ नजफगढ़
मेरा नाम आकाश है, मंै उत्तर प्रदेश के एटा जिले का रहने वाला हूं ,उम्र 10 साल,यहां 2 वर्ष पहले आया था, तब मंै गांव के स्कूल में कक्षा तीसरी में पढ़ाई करता था। पिताजी का सपना था कि उनका बेटा वेदों की पढ़ाई करे। जब वह मुझे दिल्ली लेकर आ रहे थे तो मन में पता नहीं क्या-क्या आ रहा था, मुझे ऐसा लग रहा था कि न जाने वह मुझे कहां लेकर जा रहे हैं। मन में अनेक ख्याल आ रहे थे। लेकिन जब वह मुझे यहां लेकर पहुंचे तो मेरे जैसे बहुत से लड़के यहां पहले से ही मौजूद थे। मेरा मन उदास था, रह रहकर मुझे मां, अपना घर और दोस्त याद आ रहे थे। रुलाई छूट रही थी। लेकिन पिताजी का आदेश था कि मैं यहीं रहकर पढ़ाई करूं। आज मुझे यहां पर दो साल हो चुके हैं, अब मेरा मन यहां रम चुका है। मुझे यहां पर वही स्नेह और प्यार मिलता है जो मुझे मेरे घर पर मिलता था।ह्ण
यह कोई कहानी नहीं बल्कि आकाश की बताई सच्चाई है। जिस उम्र में बच्चे वीडियो गेम, इंटरनेट, फिल्म देखते और खेलते हंै, उस उम्र में आकाश वेदों की शिक्षा ग्रहण कर रहा है, लेकिन वेद विद्यालय का एक नन्हा छात्र आकाश गर्व से बताता है कि उसका लक्ष्य पूरे देश में वेदों का प्रचार करना है। वह बताता है कि जब वह यहां आया था तो उसे कभी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि उसका परिवार यहां नहीं है। उसे यहां पर वही मां का प्यार, पिता का स्नेह और सहपाठी मिले, उसे ऐसा लगा मानो उसका पूरा परिवार यहां पर हो। उसने बताया कि विद्यालय में मां का प्यार देने वाली श्रीमती देवरानी शर्मा हमें इतना प्यार देती हैं कि सगी मां की याद तक नहीं आती। यदि कोई बच्चा कभी रोता है तो उन्हें काफी कष्ट होता है।
यह दृश्य है दिल्ली के नजफगढ़ स्थित संगम विहार इलाके में स्थित अनूठे वेदपाठी परिवार का। जहां पर वेदाचार्य श्री रामजी लाल पालीवाल सांगवेद विद्यालय जो ऋषि-मुनियों की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। श्री रामजी लाल पालीवाल की स्मृति में सन् 2002 में आचार्य डा. कीर्तिकांत शर्मा, जो नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में बतौर अनुसंधान अधिकारी हैं, ने अपने सहपाठी आचार्य पंडित वेदव्रत मिश्र की प्रेरणा से विद्यालय परिवार की शुरुआत की जहां पर वेद,ज्योतिष, व्याकरण एवं संस्कृत बोलना सिखाया जाता है।
विद्यालय को शुरू करने से पूर्व मन में दुविधाएं थीं कि बच्चे क्या खाएंगे, कैसे एक छोटे से घर में रहेंगे उनकों दैनिक उपयोग की चीजें कैसे उपलब्ध होंगी, लेकिन मन में अपार दृढ़ संकल्प और गृहणी के स्नेह से वेद विद्यालय की शुरुआत की गई। डॉ़ शर्मा बताते हैं कि शुरुआत में एक छोटे से घर में आठ बच्चों से विद्यालय प्रारम्भ हुआ। घर में बच्चों के रहने के लिए तीन कमरे हैं एवं खेलने के लिए एक छोटा सा मैदान है, जहां पर बच्चे संध्या के समय खेलते हैं। वही प्रेम, करूणा, अपने बच्चों जैसा स्नेह और बच्चों के द्वारा भी अपने मां और पिताजी को जो स्नेह मिलता है, सब कुछ हमें उसी प्रकार मिलता है। कभी ऐसा लगता ही नहीं यह हमारे बच्चे नहीं, बल्कि सोते-जागते,खाते -पीते उन्हीं बच्चों की चिंता-रहती कि हमारे बच्चों ने भोजन किया या नहीं किया, वह सोया कि नहीं सोया, सोया भी है तो कहां सो रहा है कहीं हमारे बच्चे को ठंड न लग जाए। इन सब चीजों की चिन्ता हर समय रहती है।
डा़ शर्मा अपने परिवार के विषय में बताते हंै कि हमारे गुरुजी ने हमें आज्ञा देकर कहा था कि आपको वेद की रक्षा के लिए वेदों का प्रचार करना है। सबसे पहले 1985 में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती जी की कृपा से कामाक्षी मंदिर ,नई दिल्ली में वेद विद्यालय की शुरुआत की। लेकिन कुछ कारणों से वह ज्यादा दिन नहीं चल सका। श्री शर्मा बताते हैं कि इस पूरे घर को संभालने में पत्नी का विशेष सहयोग है, क्योंकि इतने बड़े परिवार को संभालना छोटी बात नहीं । वह बच्चों की छोटी से छोटी जरूरतों का हर पल ध्यान रखती हंै और जो सबसे बड़ी चीज है मां का प्यार जो बच्चों को उनकी मां के पास ही मिलता है, लेकिन हमारे परिवार में बच्चों को वही मां का प्यार मिलता है। आज वह बच्चे गैर न होकर हमारी अपनी संतान बन गए हैं।
अपने परिवार के प्रति त्याग की मिसाल है यह वेद विद्यालय। शर्मा जी बताते हैं कि समय-समय पर कुछ लोगों से कुछ सहयोग प्राप्त हो जाता है, लेकिन वह सहयोग नाम मात्र के लिए ही है, क्योंकि 30 सदस्यों के परिवार को चलाने के लिए भोजन, कपड़े, रहने के लिए घर दैनिक उपयोग की चीजें और चिकित्सा सुविधा आदि की जरूरत होती है, जो कि मैं अपने वेतन से पूरा करता हूं, महर्षि सांदीपन राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, (उज्जैन) के द्वारा एक अध्यापक को 10000 रु. वेतन और प्रति बच्चे को 1000 रुपए महीने इस संस्था के द्वारा प्राप्त होता है। उन्होंने अपने परिवार के विषय में बताते हुए कहा कि समय-समय पर अनेक समस्याएं आती रहती हैं। वह बताते हैं कि पहले के समय हमारे घर के वृद्ध लोग सोचते थे कि हमारा बेटा वेद पढ़े। लेकिन समय के साथ पीढि़यों का अंतर नजर आने लगा है। आज के माता-पिता इन सब चीजों से काफी दूर जा रहें हैं। जिसका प्रभाव बच्चों पर भी हो रहा है। घर में आने वाली चुनौतियों पर वह बताते हैं कि आर्थिक समस्या सबसे बड़ी चुनौती है। जिसके कारण हम अपने बच्चों को उचित मात्रा में कैलोरी युक्त भोजन नहीं दे पाते हैं। जिसका हमें दुख होता है।
श्री शर्मा बताते हैं कि दीपावली पर हमारे घर में मेले जैसे माहौल होता है। बच्चों के द्वारा उस दिन श्री लक्ष्मी जी का श्री सूक्त से और गणेश जी का अथर्वशीष से षोडशोपचार पूजन किया जाता है। उसके बाद सभी बच्चों के द्वारा निर्धन लोगों को खाने की वस्तुएं दी जाती हंै। और आस-पास के भी लोग इस कार्य से काफी प्रसन्न होते हैं।
वह बताते हैं कि यहां से पढ़कर गए बच्चे आज कानपुर, इलाहाबाद,वाराणसी, गाजियाबाद, उज्जैन में बतौर संस्कृत अध्यापक कार्यरत हैं और कुछ छात्र दिल्ली में ही पीएचडी कर रहे हैं। यहां के छात्र ज्योतिष,पांडुलिपि और वेद पर भी शोध कर रहे हैं।
शर्मा जी की पत्नी बताती हैं कि जब कोई बच्चा यहां से कई वषोंर् के बाद अध्ययन करके अपने घर लौटता है तो बहुत पीड़ा होती है। शायद इतना दर्द खुद के बच्चे को छोड़ने पर नहीं होता। रातभर नींद नहीं आती, भोजन करने का मन नहीं होता, मन विचलित रहता है, सिर्फ एक ही सवाल घूमता रहता है कि किस प्रकार ये बच्चा यहां से न जाए, वह यहीं का होकर रह जाए पर वह संभव नहीं होता, क्योंकि उन्हें तो वेद का प्रचार करने जाना होता है। ल्ल
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