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पंजाब/ जालंधर
सबको छाया देती प्यार की छतरी
देश जिन संगठित व आदर्श परिवारों के बल पर वर्तमान में अपनी विलक्षण पहचान बनाए हुए है, उन आदर्श परिवारों में शामिल है जालंधर के सेंट्रल टाऊन में रह रहा चौधरी परिवार। इस परिवार में तीन-चार पीढि़यों के 60 सदस्य एक ही छत के नीचे सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
परिवार के मुखिया 80 वर्षीय श्री राजेश्वर चौधरी हैं, जिनके हर आदेश को परिवार के 25 महिला, 15 बच्चे और 20 पुरुष सदस्य बिना तर्क किए मानते हैं। भाई श्री राजकृष्ण (60) व श्री राजभूषण चौधरी (54) परिवार की एकजुटता के पीछे परस्पर स्नेह व आपसी सूझ-बूझ को बताते हैं। इनका कहना है कि परिवार में सभी को अपनी जिम्मेवारियों व दायित्वों का अहसास है। पुरुष सदस्य दोपहिया वाहनों का शोरूम, नट बोल्ट फैक्ट्री सहित अनेक तरह का प्रतिष्ठित व्यवसाय करते हैं। सारे व्यवसाय से हुई आय व खर्चे को मिल कर बांटा जाता है। सभी की आर्थिक व सामाजिक जरूरतों का ध्यान रखा जाता है। महिलाएं-मिल बांटकर काम करती हैं। रसोई में जिसका कार्य होता है उसका नाम व काम एक बोर्ड पर लिख दिया जाता है ताकि उसे स्मरण रहे। वैसे तो कभी परिवार में मतभेद पैदा नहीं होते, अगर कहीं छोटा-मोटा विवाद हो भी जाए तो सारा मामला परिवार के मुखिया के सम्मुख लाया जाता है और आपसी समझ से इसे सुलझा लिया जाता है।
परिवार के 46 वर्षीय सदस्य श्री सुनील चौधरी कहते हैं कि यह परस्पर प्यार ही है जो परिवार को बांधे रखता है। बाकी हम सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देते हैं और चिंता नहीं करते।
उनका कहना है कि अगर किसी को अपने घर को सम्पन्न रखना है तो पहले अपनी पत्नी को प्रसन्न रखें और बच्चों की हर बात का ध्यान रखें। अगर परिवार के सदस्य प्रसन्न रहेंगे तो उनमें स्नेह बढ़ेगा और स्नेह से ही किसी परिवार को एकजुट रखा जा सकता है। उनका कहना है कि उनके परिवार की सुबह विशेष होती है क्योंकि सभी सदस्य घर में बनी बगिया में बैठ कर एकसाथ चाय पीते हैं। इसे स्कूल की प्रात:कालीन प्रार्थना सभा कही जाए तो कोई गलत नहीं होगा क्योंकि इसी दौरान सभी की दिनचर्या निर्धारित होती है। सभी को उनके काम बांट दिए जाते हैं और सभी सदस्यों की मन की बात जानने का प्रयास किया जाता है। किसी पर मर्जी नहीं थोपी जाती और प्रयास रहता है कि कोई भी फैसला मिल-जुल कर आम राय से किया जाए परंतु अंतिम फैसला श्री राजेश्वर चौधरी का ही रहता है। शादी-विवाह के मामले भी इसी तरह निर्धारित किए जाते हैं।
चौधरी परिवार की सभी महिला सदस्य उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षित हैं परंतु सभी घर का ही काम देखती हैं। श्री सुनील चौधरी कहते हैं कि चिंताएं तो दैनिक जीवन में आती रहती हैं परंतु चिंताओं से चिंतित होने की बजाय आप खुद को व परिवार के सदस्यों को प्रसन्न रखें तो परिवार में एकजुटता बनी रहती है।
श्री राजेश्वर चौधरी कहते हैं कि उनके संयुक्त परिवार ने क्षेत्र में उन्हें एक पहचान दी है और लोग अपने घरों में उनके परिवार की एकता के उदाहरण देते हैं। उनका मानना है कि परिवार के बड़े या कह लो हमारे परिजन धन, दौलत या गाडि़यों से प्रसन्न नहीं होते, अक्सर देखने में आता है कि बुजुर्ग उसी समय अधिक प्रसन्न होते हैं जब उनका परिवार एक साथ जुटता है। बुजुगोंर् को शादी-विवाह के अवसरों की इसी कारण प्रतीक्षा रहती है कि इसी बहाने वे अपने सारे परिवार को एक साथ देख पाएंगे। आपने देखा होगा कि यही सदस्य उस समय अधिक दुखी व चिंतित होते हैं जब शादी या अन्य समारोह के बाद आए हुए परिवार के सदस्य अपना-अपना सूटकेस बांधने लगते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर हमनें अपने परिजनों व अपने स्वर्ग में बैठे पितरों को प्रसन्न रखना है तो संयुक्त परिवार में रहना होगा। जिस घर में बुजुर्ग प्रसन्न रहते हैं वहां सुख-शांति, संपन्नता का संचार स्वत: हो जाता है।
उनका कहना है कि मनमुटाव या टकराव होना परिवारों में स्वाभाविक है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि परिवार को ही तोड़ दिया जाए। परिवारों में कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसको मिल बैठ कर हल न किया जा सकता हो। परिवार के एक सदस्य के आगे हमें अगर झुकना भी पड़े तो इसमें शर्म या झिझक नहीं होनी चाहिए क्योंकि सामने वाला अपना ही तो खून है। हम अगर किसी की चार बातें मान लेते हैं तो अपनी भी बातें उनसे मनवा सकते हैं। इसी तरह के साधारण से नियम हैं जिनको अलग से सीखने की आवश्यकता नहीं बल्कि यह गुण सांझे परिवार में स्वत: ही आ जाते हैं। यह गुण हमारे सदियों के जीवन शैली का निचोड़ है। संयुक्त परिवार हमें सामाजिक, आर्थिक व भावनात्मक सुरक्षा देते हैं, हम इस परंपरा को तोड़ कैसे सकते हैं।
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