|
रात की स्याही में
भोर की पहली किरण ने
रोशनी का इतिहास लिखा
स्याह पन्नों पर
लेखनी लिखती रही
तम जलता रहा
रोशनी पलती रही।
किरणों का सन्देश
हमने नहीं सुना
तुमने नहीं सुना
हां, माटी के एक दीये ने
शायद
सुनहरा ख्वाब बुना
कि तभी तो
एक लौ रात-भर
अंधकार से लड़ती रही
तम जलता रहा
रोशनी पलती रही।
एक दीप
सूरज न बन सका, तो क्या
उसने एक संकल्प तो किया था
रात-भर, जल-जल के
तम को पिया था
तो शायद उसी संकल्प से
विश्वास को
जिन्दगी मिलती रही
तम जलता रहा
रोशनी पलती रही।
टिप्पणियाँ