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गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा गांव में रहने वाले आशाराम त्यागी का परिवार आज के दौर में पूरे क्षेत्र में एक अलग पहचान रखता है। उनक परिवार संयुक्त होने के कारण आसपास के गांवों के लोग एक दूसरे को इसकी मिसाल देते हैं। रिश्तों के इस बिखरते दौर में 28 सदस्यों वाला उनका संयुक्त परिवार आज भी एक सूत्र में बंधा हुआ है, और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कारों का आदान-प्रदान हो रहा है। भले ही आज के दौर में परिवार टूट रहे हैं, लेकिन यह परिवार मजबूती से अपने को बांधे हुए है। घर में रोजाना की चहल-पहल देखकर दूसरे लोगों को लगता है, शायद यहां कोई उत्सव है, लेकिन यह इस परिवार रोजाना की दिनचर्या है। श्री त्यागी छह महीने बाद सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। परिवार में हाल ही में जन्मा सबसे छोटा सदस्य एक माह का है, और सभी की आंखों का तारा बना हुआ है।
इस संयुक्त परिवार की धुरी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स में एकाउंट ऑफिसर के पद पर काम करने वाले आशाराम त्यागी हैं। उनके पांच छोटे भाई हैं और एक बहन। बहन की शादी हो चुकी है। परिवार में बारह बच्चे हैं। सभी सदस्यों के बीच आशाराम का परिवार में अहम किरदार है। बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी अपनी अपनी जरूरतों को पूरा कराने के लिए उन्हीं से सिफारिश करते हैं। यहां तक की शरारत करने पर पिटने वाले छोटे बच्चे भी अपने माता पिता की शिकायत भी उन्हीं से करते हैं। क्षेत्र में होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों में भी श्री त्यागी काफी सक्रिय रहते हैं। बड़ा परिवार होने के नाते गांव में दूसरे कुनबे के सदस्य भी सलाह करने इन्हीं के पास आते हैं। परिवार में होने वाले कार्यक्रमों में वह ही सर्वे सर्वा होते हैं, उन्हीं का फैसला अंतिम रहता है, जो सभी सदस्यों को मान्य होता है।
श्री आशाराम त्यागी की पत्नी लोकेश घर में महिलाओं की मुखिया हैं, यानी घर की सारी देवरानियां, उनकी पुत्रवधु और बेटियां उन्हीं के मार्गदर्शन में रहती हैं। रसोई में काम काज की जिम्मेदारी का निर्धारण भी वही करती हैं। घर की महिला सदस्यों की सुबह, दोपहर और रात के क्रम में भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी रहती है, ये सभी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं। महिला सदस्य अपनी अपनी जरूरतों की वस्तुएं भी इन्हीं के माध्यम से मंगाती हैं। पड़ोस या परिवार में जाते समय वही महिला सदस्यों की कमान संभालती हैं। यहां तक की बच्चों को कपड़े आदि खरीदवाने का जिम्मा भी इन्हीं पर रहता है।
परिवार के सदस्य पुश्तैनी खेती का व्यवसाय आज भी करते हैं। परिवार में जयकुमार त्यागी खेती को संभालते हैं। सभी भाई उनकी मदद करते हैं। एक भाई दिनेश कुमार पेशे से वकील हैं, जबकि तीन अन्य रामकुमार, शिवकुमार और महेश का अपना-अपना व्यवसाय है। जिसमें ट्रांसपोर्ट कंपनी व अन्य दूसरे काम शामिल हैं। परिवार की आय से ही सभी खर्च पूरे किए जाते हैं। शादी या अन्य समारोह में सभी भाइयों की हिस्सेदारी होती है। यदि किसी संपत्ति को खरीदना हो या फिर किसी बच्चे की शादी तय करनी हो तो सभी मिलकर सहयोग करते हैं। परिवार के सभी बच्चे पढ़े लिखे हैं, कोई इंजीनियर है तो किसी ने एमबीए किया है तो कोई एचआर एग्जीक्यूटिव है, बावजूद इसके यह परिवार अपनी परंपराओं का निर्वहन लंबे समय से करता आ रहा है। आज भी परिवार के सदस्यों ने अपनी खेती या घर की जमीन का बंटवारा नहीं किया है। यह बात दूसरे लोगों को प्रेरणा देती है
बड़ा परिवार होने के कारण त्योहारों के अवसर पर घर में बहन-बेटी और उनके बच्चे आ जाने से परिवार की रौनक और भी बढ़ जाती है। दीपावली पर पूरा परिवार संयुक्त रूप से भगवान लक्ष्मी-गणेश का पूजन करता है। इसके बाद सब मिलकर दीपों से घर को जगमगाते हैं। इससे अगले दिन घर में भगवान गोवर्धन की पूजा की जाती है, इस अवसर पर गांव में रहने वाले कुनबे के सदस्य भी शामिल होते हैं। ऐसे में परिवार की सदस्यों की संख्या सौ तक पहुंच जाती है। इससे अगले दिन भैय्या दूज पर बहन और बेटियां घर पहुंचकर परिवार की शोभा को और बढ़ा देती हैं। इसके अलावा परिवार में होली पर भी रंगारंग कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
घर की सभी महिलाएं व बेटियां पढ़ी लिखी हैं। अच्छी और ऊंची शिक्षा पाने के बावजूद श्री त्यागी के परिवार में परंपराएं आज भी जीवित हैं, जैसे की उनके घर की महिलाएं तभी खाना खाती हैं, जब सारे पुरुष खाना खा चुके होते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि कोई पुरुष घर से किसी काम से बाहर है या फिर खाने के समय वहां पर नहीं तो तभी खाना खाया जाएगा जब वह खा लेगा, लेकिन रोजमर्रा की जीवनशैली में महिलाएं पुरुषों को खाना खिलाने के बाद इकट्ठे बैठकर खाना खाती हैं। श्री त्यागी के भाइयों की पत्नियां आज भी बड़ों का सम्मान करने के लिए सिर पर पल्ला करती हैं। इसके बाद ही उनके सामने आती हैं।
उनके घेर में सुबह-शाम गांव और आसपास के इलाके में रहने वाले लोग आते हैं, इससे घेर में खासी चहल पहल बनी रहती है। यहां आए लोग नए-नए किस्से सुनाकर परिवार के माहौल को और खुशनुमा कर देते हैं। गांव में कभी कोई समस्या आने पर गांव के लोग वहां आकर विशेष रूप से चर्चा करते हैं श्री त्यागी की राय लेकर समस्या का हल निकाला जाता है।
श्री आशाराम त्यागी बताते हैं कि वर्ष 1967 में जब आसपास के गांवों में किसी के पास भी ट्रैक्टर नहीं था तब उनके पिताजी स्व.गुरुदत्त सिंह त्यागी ने रूस से खेती करने के लिए ट्रैक्टर मंगवाया था। ट्रैक्टर पानी के जहाज से लाया गया था, तब उसकी कीमत साढ़े पांच हजार रुपए थी। ट्रैक्टर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग उनकी गांव में आए थे। उनका कहना है कि आज भी वह ट्रैक्टर उनके घेर में खड़ा है। वह गर्व से कहते हैं कि हालांकि अब ट्रैक्टर का इस्तेमाल नहीं होता है, लेकिन परिवार का इस ट्रैक्टर से भावनात्मक जुड़ाव है, इसलिए ट्रैक्टर को घेर में खड़ा रखा है, ट्रैक्टर आज भी अच्छी स्थिति में है।
अशाराम त्यागी का कहना है कि घर में होने वाले हर छोटे बड़े काम के लिए सभी भाई इकट्ठे बैठकर सलाह मशवरा करते हैं, घर के बड़े बच्चों की भी सलाह ली जाती है। इसी के बाद किसी काम को किया जाता है। बड़ा परिवार होने के कारण शादियों के साये के दौरान और क्षेत्र में अच्छी प्रतिष्ठा होने के चलते सैकड़ों जगहों से न्यौता आता है, हर जगह उनका जाना संभव नहीं हो पाता है, इसलिए परिवार के जिस सदस्य को वह जिम्मेवारी देते हैं वह वहां चला जाता है। संयुक्त परिवार होने के कारण सभी रिश्तेदारियों में और परिचितों के यहां उनके परिवार से कोई ने कोई सदस्य आता-जाता रहता है, इसलिए उन्हें कोई शादी या समारोह में न आने का उलाहना भी नहीं दे पाता है।
गांव में रहने के बावजूद परिवार के सभी बच्चे चाहे वह बेटे हों या फिर बेटियां सभी ऊंची शिक्षा लिए हुए हैं। वर्तमान दौर को देखते हुए परिवार के सभी बच्चों ने प्रोफेशनल शिक्षा हासिल की है। परिवार ने गाजियाबाद में अपना एक कॉलेज खोला हुआ है, जिसे श्री आशाराम की शादीशुदा बेटी संभालती हैं। उनकी भतीजी मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर एग्जीक्यूटिव है। जबकि एक भतीजा एमबीए का छात्र है और एक नेटवर्किंग इंजीनियर हैं। उनका बेटा और एक भतीजा पत्रकार हैं। घर के बाकी बच्चे अभी छोटे हैं वे अच्छे स्कूलों और कॉलेजों से पढ़ाई कर रहे हैं।
संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा फायदा श्री त्यागी बताते हैं कि आज के दौर में जबकि महंगाई इतनी बढ़ गई है, बावजूद इसके संयुक्त परिवार में खर्चा कम होता है, चाहे वह बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर खर्च होने वाला पैसा हो या फिर शादी ब्याहों में खर्च होने वाली रकम। उनका कहना है कि एकल परिवार की बजाए संयुक्त परिवार में दिक्कतें और परेशानियां भी कम होती हैं, क्योंकि जब घर में इतने सारे सदस्य होते हैं तो मिल-बैठकर हर समस्या का समाधान निकल ही आता है।
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