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श्री भगवती महालक्ष्मी संसार के समस्त भौतिक सुखों की स्वामिनी, धन-सम्पदा की देवी और वैभव सम्मान की अधिष्ठात्री हैं। आपकी कृपा हो जाये तो व्यक्ति संसार को निवारण की सर्वाधिक क्षमता श्री लक्ष्मी जी में होती है। अत: साधक जन लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के लिये बहुत सी साधनायें करते हैं।
महालक्ष्मी कंचन वर्ण, अति सुन्दरी और चिर यौवना है। श्री लक्ष्मी जी की प्रतिमायें, द्विभुजा और चतुर्भुजा होती हैं। द्विभुजा प्रतिमाओं के हाथ में शंख पद्म तथा चतुर्भुजा प्रतिमाओं के हाथ में शंख, पद्म, अमृतघट और बिल्वफल रहते हैं। शंख अहंकार और जयकोष का, पद्म सौन्दर्य और अनासक्ति, अमृतघट आनन्द का तथा बिल्वफल भोग का प्रतीक माना गया है।
धन प्राप्ति के लिये आराधना
दीपावली की रात्रि में 12 से 2 बजे तक के समय को महानिशा काल कहते हैं। इस काल में श्री लक्ष्मी जी के मंत्रों का जप करने से बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस समय श्री लक्ष्मी भगवान विष्णु जी के साथ गरूड़ पर आरूढ़ होकर भ्रमण के लिये आती हैं। जिस घर में पूजन होते हुए देखती हैं उस घर पर वे अपनी कृपा कर देती हैं। अत: भगवान विष्णु के साथ पूजन करें।
मंत्र
ऊं ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी
ममगृहे आगच्छ आगच्छ ह्रीं नम:।
धनाध्यक्ष कुबेर की आराधना
दीपावली की रात्रि में श्री कुबेर जी की भी साधना की जाती है। कुबरे संसार की समस्त निधियों के राजा माने जाते हैं। इन नौ निधियों को पद्म, महापदम, शंख,मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और वर्चस के नाम से जाना जाता है।
मंत्र
धनदाय नमस्तुभं निधिपदमाधिपाय च
भगवत् त्वतप्रसादेन धनधान्यादि सम्पद:।
महाकाली की साधना
दीपावली की रात्रि में श्री महाकाली के आशीर्वाद प्राप्ति हेतु भी साधना करने का विधान है। महाकाली की साधना में सर्वकार्य सिद्घि कारोबार की रक्षा, व्यापार बाधा दूर करना, विजय प्राप्त करना तथा मुकदमे में जीत प्राप्त की जा सकती है।
मंत्र
ऊं कालिका घोररूपाया सर्वकामफलप्रदा।
सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे॥
महाकाली की पूजा (काली दवात के रूप में) भी की जाती है।
अष्टसिद्घियां प्राप्त करने की रात
शास्त्रों में आठ प्रकार की सिद्घियां बताई गई हैं। सिद्घियों का अर्थ विशेष सामर्थ्य से है। अष्ट सिद्घियां निम्न हैं-
1़ अणिमा: अपनी देह को अणु के समान लघु रूप देना श्री हनुमान जी ने लंका प्रवेश के समय इस सिद्घि का प्रयोग किया। 2़ लंघिमा : अपने शरीर को भारहीन कर लेने का गुण अशोक वाटिका में वृक्ष के पत्तों पर बैठने के लिये हनुमान जी ने प्रयोग किया। 3़ महिमा : अपने शरीर को अत्यन्त बड़ा कर लेना। सुरसा नाम राक्षसी को इसी सिद्घि से पराजित किया। 4़ गरिमा : देह का भार बहुत अधिक कर लेना। भीम के अहंकार को दूर करने के लिए पूंछ भारी की। 5़ प्राप्ति : जिस वस्तु की कामना हो उसी क्षण प्राप्त हो। 6़ प्राकाम्य : इच्छितवस्तु दीर्घकाल तक स्थायी रूप में रहे। इस सिद्घि से श्री राम की भक्ति को प्राप्त किया। 7़ ईिशत्व : नेतृत्व की सामर्थ्य प्राप्त होती है। इस सिद्घि से बलशाली बानर सेना को नियन्त्रित किया। 8़ वशित्व : समस्त इन्द्रियों या संसार में उपलब्ध वस्तुओं को वश में करने की सामर्थ्य आती है।
धनदायक यन्त्रों की उपासना
दीपावली की रात्रि भोजपत्र, ताम्रपत्र, रजतपत्र, स्वर्णपत्र पर बने यंत्रों की भी उपासना की जाती है।
श्री महालक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, महालक्ष्मी बीसा यंत्र, ऐश्वर्य प्रदायक तीसा यंत्र, कुवेर यंत्र, सर्व ऐश्वर्य नवदुर्गा बीसा यंत्र, नवग्रह यंत्र आदि की पूजा अर्चना करके दीपावली की रात्रि में यंत्र सिद्घ किये जाते हैं।
महासरस्वती पूजन
दीपावली की रात्रि में श्री सरस्वती मां का भी पूजन लेखनी, डायरी एवं बहीखातों के रूप में किया जाता है।
व्यापारी वर्ग अपने तराजू, बाट, तिजोरी का पूजन बड़े मनोयोग से करते हैं, जिससे वर्ष भर महालक्ष्मी के साथ श्री सरस्वती जी की कृपा भी बनी रहती है।
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