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दीपों की फिर एकता, देखो लाई रंग।
अंधकार मारा फिरे, दीपक जीते जंग।।
ज्योति-पर्व ने दोस्तों, रखे इस तरह पांव।
झिलमिल-झिलमिल कर उठे, गली-मुहल्ले-गांव।।
ज्योति-पर्व वंदन करें, शत-शत करें प्रणाम।
अंधियारों की साजिशें, तुमने कीं नाकाम।।
अंधकार की एक भी, साजिश चली न आज।
झिलमिल दीपक जल रहे, सच के सर पर ताज।।
राम तुम्हारी वापसी, को तरसें ये नैन।
गली-गली रावण उगे, है जन-जन बेचैन।।
ज्योति-पर्व पर दोस्तों, ले संकल्प विशेष।
जैसे अंधियारा मिटा, मिटे ह्रदय से द्वेष।।
जीवन की संभावना, कभी न हो अवरुद्ध।
एक दीप करता सदा, अंधकार से युद्ध।।
अशोक अंजुम
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