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मालेगांव बम विस्फोट मामले में कुछ अभियुक्त पुलिस ने पकड़े हुए थे। उन पर मुकदमा चल रहा था, और पुलिस अपनी जांच कर रही थी। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि ये सभी अभियुक्त मुसलमान थे । इनका मुसलमान होना ही देश के अल्पसंख्यक आयोग को सक्रिय करने के लिये पर्याप्त था । आयोग के अध्यक्ष वजाहत वहाबुल्लाह ने गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय, दोनों को ही स्पष्ट लिखा कि सरकार इन 9 मुसलमान युवकों को जमानत पर बाहर निकालने की व्यवस्था करे। शायद न्याय-व्यवस्था में बाहरी हस्तक्षेप का यह निकृष्टतम उदाहरण कहा जा सकता है। तब कुछ लोगों ने समझा था कि यह वजाहत वहाबुल्लाह की अपनी अति सक्रियता के कारण हो सकता है । इससे भारत सरकार का कुछ लेना देना नहीं है । भारत सरकार इन प्रश्नों पर इस प्रकार खुलकर साम्प्रदायिक दृष्टिकोण तो नहीं अपना सकती ।
लेकिन हाल ही में देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर आदेश दिया है कि आतंकवाद की घटनाओं में अनेक प्रान्तों में निर्दोष मुसलमानों को जांच एजेंसियां जानबूझकर फंसा रही हैं। इसके साथ ही जांच एजेंसियां ध्यान रखें कि ऐसा करते समय सामाजिक और साम्प्रदायिक समरसता को आघात न लगे । इसके बाद शिंदे लगभग धमकाने वाली भाषा पर उतर आये। उन्होंने राज्य सरकारों को धमकाया कि जो पुलिस अधिकारी मुसलमानों को गलत इरादे से गिरफ्तार करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के मुसलमानों को तुरन्त रिहा ही न किया जाए बल्कि उनके पुनर्वास के लिये उनको मुआवजा भी दिया जाए। यह ठीक है कि शिन्दे यह सब लिखने में ह्यअल्पसंख्यकह्ण शब्द का ही प्रयोग करते हैं, लेकिन उसका अभिप्राय मुसलमानों से है इसमें कोई शक नहीं। सुशील कुमार शिन्दे से कोई भी पूछ सकता है कि आपको यह स्वप्न कहां से आया कि इस देश में मुसलमानों को जानबूझकर फंसाया जा रहा है? इस प्रश्न के उत्तर का बन्दोबस्त भी सोनिया कांग्रेस की सरकार ने कर रखा है। उसने पहले ही केन्द्र में एक अल्पसंख्यक मंत्रालय स्थापित कर दिया है। ध्यान रहे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी अल्पसंख्यक मंत्रालय की रचना नहीं की थी। ऐसा पहली बार सोनिया गांधी के कार्यकाल में ही हुआ जब उसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दफना कर सोनिया कांग्रेस का पारिवारिक संगठन खड़ा कर लिया। अब सोनिया गांधी को रोकने वाला कोई नहीं था।
सोनिया कांग्रेस ने मुसलमानों के नाम पर केवल राजनीति ही शुरु नहीं की बल्कि मुसलमानों को इस देश की मुख्य सांस्कृतिक धारा से तोड़ने के प्रयास प्रारम्भ कर दिये। राजेन्द्र सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्रा आयोग इत्यादि की स्थापना, मुसलमानों को मजहब के आधार पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के प्रयास, राष्ट्रीय सलाहकार समिति का साम्प्रदायिक दंगा एवं लक्षित हिंसा (निरोधक) विधेयक का प्रारूप एवं उसे अधिनियम बनाने के प्रयास सभी इसी दिशा की ओर संकेत करते हैं।
पिछले कुछ साल से मुसलमानों को अपने लिये अलग विद्यालय स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। मजहबी शिक्षा देने के लिये कोई मत अपने बच्चों के लिये अलग से व्यवस्था करे, यह बात समझ में आ सकती है। मुस्लिम मत भी इस काम के लिये मदरसे चलाता है, जिसमें मौलवी मुसलमान बच्चों को मजहबी तालीम देते हैं। पर मजहबी तालीम के अलावा, पढ़ाई-लिखाई के लिये मुसलमान बच्चे भी दूसरे सामान्य स्कूलों में ही पढ़ते हैं। लेकिन अब केन्द्र सरकार मुसलमानों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे इन मदरसों को सरकारी स्कूलों के समानान्तर सामान्य विद्यालयों की तर्ज पर ही विकसित कर लें और इनमें मजहबी तालीम के अलावा अन्य विषय भी पढ़ाना शुरू कर दें। इसके लिये सरकार इन मदरसों को करोड़ों रुपये भी मुहैया करवा रही है। इस का अर्थ क्या है? सरकार की कोशिश है कि मुसलमानों के बच्चे बाकी देशवासियों के बच्चों के साथ स्कूलों में न आयें बल्कि सभी से अलग-थलग इन मदरसों में ही रहें। इन सब धन्धों में समन्वय बैठाने के लिये अलग से अल्पसंख्यक मंत्रालय भी गठित कर दिया गया।
इसी मंत्रालय के मंत्री रहमान खान ने शिन्दे को एक चिट्ठी लिख कर कहा कि मुसलमानों का कहना है कि इस देश में गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिये बने कानूनों के राक्षसी प्रावधानों का दुरुपयोग अल्पसंख्यकों के खिलाफ किया जा सकता है। वैसे तो रहमान खान से पूछा जा सकता है कि जिन कानूनों का वे जिक्र कर रहे हैं, वे भी तो उन्हीं की पार्टी की सरकार ने बनाये हैं। फिर उन के प्रावधानों को वे राक्षसी कैसे कहते हैं? शिन्दे ने तुरन्त रहमान खान के इन तमाम आरोपों से सहमति जताते हुये राज्य सरकारों को यह आपत्तिजनक चिट्ठी लिख दी । यदि चिट्ठी पर सुशील कुमार शिन्दे का नाम न होता तो कोई भी इसे पाकिस्तान द्वारा भारत सरकार को लिखी चिट्ठी समझने का धोखा खा सकता है ।
देश के मुस्लिम समुदाय ने कभी नहीं कहा कि उन के साथ देश के अन्य नागरिकों से अलग व्यवहार किया जाए, आतंकवादी गतिविधियों में जो भी संलिप्त है उस पर कानून के अनुसार कार्यवाही होनी ही चाहिए। किसी भी निर्दोष को नहीं पकड़ा जाना चाहिए। इसमें हिन्दू या मुसलमान का प्रश्न कहां आता है ? भारत की सबसे बड़ी मुस्लिम संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच तो इस को लेकर आन्दोलनरत है । लेकिन सोनिया कांग्रेस की सरकार को आतंकवाद से तो लड़ना नहीं है, उसे तो इसके बहाने हिन्दू-मुसलमान को लड़ाना है। हिन्दुस्थान के लिये यह पुरानी यूरोपीय नीति है। इसलिये शिन्दे आतंकवाद में भी राज्य सरकारों से हिन्दू-मुसलमान का प्रश्न उठा रहे हैं और पुलिस अधिकारियों को परोक्ष रूप से धमका भी रहे हैं ।
पुलिस देश भर में प्रतिदिन अनेक लोगों को कानून की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार करती है। उन पर मुकदमा चलता है। अनेक को सजा हो जाती है और अनेक छूट जाते हैं। जरूरी नहीं कि छूटने वाला निर्दोष ही हो। वह अपराधी भी हो सकता है जो किसी मिलीभगत से छूट गया हो। या फिर पुलिस पूरा जोर लगा कर भी उसके विरुद्घ साक्ष्य एकत्र न कर पाई हो। इसी प्रकार वह सचमुच निर्दोष भी हो सकता है, जिसे जांच एजेंसी ने गलती से या जानबूझकर पकड़ लिया हो। यह हमारी जांच प्रणाली और न्याय प्रणाली का 'इनबिल्ट सिस्टम' है। लेकिन इसमें हिन्दू-मुस्लिम का प्रश्न कहीं नहीं है । यह प्रणाली अपने सभी गुण दोषों सहित सभी देशवासियों पर समान रूप से लागू होती है। इसका नफा-नुकसान सभी को समान रूप से भोगना पड़ता है। लेकिन अब शिंदे चाहते हैं कि किसी आपराधिक मुकदमें में कोई मुसलमान बरी होता है, तो सरकार उसकी क्षतिपूर्ति करेगी। उसे मुआवजा दिया जायेगा। यदि सरकार की यही मंशा है तो कोई हिन्दू किसी आपराधिक मामले में बरी हो जाता है तो उसको मुआवजा क्यों नहीं ?
सोनिया कांग्रेस की सरकार उसी रास्ते पर चल पड़ी है, जिस रास्ते पर चलकर कभी अंग्रेजों ने जिन्ना को पैदा किया था। यह सरकार मुसलमानों के लिये अलग स्कूल, अलग बैंक, अलग नागरिक कानून, और अब अलग फौजदारी कानून बनाने के रास्ते पर निकल पड़ी है। शायद अगला कदम अलग निर्वाचन क्षेत्र हो सकता है, जिसमें मुसलमान ही मुसलमान प्रत्याशी को वोट दे सकता है। सोनिया गांधी को शायद न पता हो कि इस देश में हर गोरी चमड़ी वाले को अंग्रेज ही समझा जाता है और अंग्रेजों ने इस देश को तोड़ कर और अपने साम्राज्यवादी हितों की रक्षा के लिये मुसलमानों को देश की सांस्कृतिक धारा से अलग करके पाकिस्तान बनवाया था। आश्चर्य है कि लगभग सात दशक बाद सोनिया गांधी का संगठन उसी रास्ते पर चल पड़ा है। और ह्यराय बहादुरह्ण सुशील कुमार शिन्दे को क्या कहा जाए? वे तब भी 'हर मैजिस्टी' के कहने पर इस प्रकार की चिट्ठियां लिखते थे और आज भी अपने आका के इशारे को समझ कर ऐसी चिट्ठियां लिख रहे हैं।
यह सफाई दी शिन्दे ने
हाल ही में मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र को लेकर उपजे विवाद पर सुशील कुमार शिन्दे ने सफाई दी। शिन्दे ने कहा कि पत्र की पहली दो पंक्तियों में ही ह्यमुस्लिमह्ण शब्द का प्रयोग किया गया था और मुख्यमंत्रियों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया था कि पुलिस किसी मुस्लिम निर्दोष का उत्पीड़न न करने पाए। शिन्दे ने सफाई देते हुए यह भी कहा कि उनका मतलब सभी अल्पसंख्यक समुदायों के युवाओं से था। पत्र की पहली दो पंक्तियों में ह्यमुस्लिमह्ण शब्द के प्रयोग पर उन्होंने कहा कि मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मुझे उनकी ओर से कुछ ज्ञापन मिले थे।
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