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नागपुर में विजयादशमी उत्सव में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का आह्वानभारत मान बढ़ाएं

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Oct 19, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Oct 2013 15:07:00

1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। इसलिए  विजयादशमी के अवसर पर प्रतिवर्ष नागपुर में एक उत्सव आयोजित होता है। इस उत्सव को सरसंघचालक संबोधित करते हैं। इस वर्ष के विजयादशमी उत्सव की विशेष रपट यहां प्रस्तुत है।
सामान्य नागरिकों के लिए चुनाव राजनीति नहीं है वरन् वह उसके अनिवार्य प्रजातांत्रिक कर्तव्य को निभाने का अवसर है। इसलिए मतदान करते समय मतदाता के रूप में नागरिकों को दलों की नीति व प्रत्याशियों के चरित्र का सम्यक्-समन्वित दृष्टि से मूल्यांकन करना चाहिए। नागरिकों के लिए चुनाव को महत्वपूर्ण मानते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि सामान्य जनता को किसी छल, कपट अथवा भावुकता के प्रभाव में नहीं आना चाहिए, बल्कि राष्ट्रहित की नीति पर चलने वाले दल तथा सुयोग्य-सक्षम उम्मीदवार को देखकर मतदान करना चाहिए। वे गत 13 अक्तूबर को नागपुर में रेशिमबाग में आयोजित विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
नागरिकों के चुनावी समय के कर्तव्य पर जोर डालते हुए सरसंघचालक ने आगे कहा कि उदासीनता को त्यागकर इस दिशा में होने वाले सभी प्रयासों में चुनाव कराने वाली व्यवस्थाओं व व्यक्तियों से हमारा सहयोग होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि मतदान के द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने का समय निकट आ गया है। बहुत से नवीन एवं युवा मतदाता होंगे। हम अपना यह कर्तव्य निभा सकें, इसके लिए हमें सर्वप्रथम यह चिन्ता करनी पड़ेगी कि मतदाता सूची में अपना नाम सुयोग्य रीति से प्रविष्ट हुआ है या नहीं। 100 प्रतिशत मतदान होना प्रजातंत्र के स्वास्थ्य को पोषित करता है।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि विख्यात लेखक लोकेश चंद्र उपस्थित थे। साथ ही सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी, नागपुर महानगर संघचालक श्री दिलीप गुप्ता, सह संघचालक श्री लक्ष्मण पार्डिकर तथा विदर्भ प्रांत के सह संघचालक श्री राम हरकरे मंच पर विराजमान थे।
देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति के संदर्भ में श्री भागवत ने कहा कि देश की आर्थिक स्थितियां सामान्य व्यक्तियों के जीवन को त्वरित प्रभावित करने वाली होती हैं और आज हमारे देश की सामान्य जनता प्रतिदिन बढ़ने वाली महंगाई की मार से त्रस्त है। वित्तीय घाटा, चालू खाते का घाटा एवं विदेशी विनिमय कोष में निरन्तर कमी की चर्चा चल रही है। आर्थिक विकास दर में बढ़ती गिरावट को देखते हुए स्पष्ट होता है कि हमारे अर्थ तंत्र के संचालन की दिशा गलत है।
शासन की गलत नीतियां
सरसंघचालक ने सरकार की गलत नीतियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि, एक के बाद एक देश के उत्पादन के क्षेत्रों का स्वामित्व अपने देश के लोगों की तिरस्कारपूर्वक उपेक्षा कर विदेशी हाथों में देने वाली नीतियां चलाई जा रही हैं। देश की आय का बड़ा हिस्सा बनाने वाले लघु उद्यमी, छोटे उद्यमी, स्व-रोजगार पर आश्रित खुदरा व्यापारी आदि को विदेशी निवेशकों के साथ विषम स्पर्धा के संकट में अपने ही शासन द्वारा धकेला जा रहा है। रोजगार के अवसर घट गए हैं। गांवों से रोजगार के लिए शहरों की ओर जाने वाली संख्या बढ़ने से शहर व गांव दोनों में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। आर्थिक दृष्टि से सामान्य व पिछड़े वगोंर् को उसका लाभ तो मिलना दूर, जीवन चलना दूभर कर देने वाली परिस्थितियों का सामना करने की नौबत आ पड़ी है। लगातार उच्चपदस्थों के आर्थिक भ्रष्टाचार के प्रकरण उजागर होने तथा उनके विरुद्घ जनता में पनपे असंतोष के आंदोलनों द्वारा व्यक्त होने के बाद भी ऐसे कांडों के असली अपराधी खुले घूम रहे हैं।
देश की सुरक्षा
श्री भागवत ने आगे कहा कि देश की सुरक्षा पर छाए संकटों के बादल भी ज्यों के त्यों बने हैं। भारत की सीमाओं में घुसपैठ, भारत के चारों ओर के देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाकर भारत की घेराबंदी करना, भारत के बाजारों में अपने माल को झोंकना आदि का क्रम चीन के द्वारा पूर्ववत् चल रहा है। हमारी ओर से इसका पूरी इच्छाशक्ति, दृढ़ता व सामर्थ्य के साथ उत्तर दिया जाना चाहिए, पर ऐसी गंभीर घटनाओं को छुपाया जाता है।
इधर पाकिस्तान की नीतियों में भारत के प्रति उसका द्वेष स्पष्ट दिखता है, फिर भी अपनी ओर से पाकिस्तान के दु:साहस को बढ़ाने वाली नीति का वही ढीला-ढाला रुख हमारे शासन की ओर से होता है। यह बात किसी की समझ में नहीं आती।
उत्तर पूवांर्चल की समस्याओं का जिक्र करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि वहां की देशभक्त जनता की उपेक्षा कर वोट बैंक की राजनीति के चलते अलगाववादी कट्टरपंथी व घुसपैठ कर आईं विदेशी ताकतों का बेशर्म तुष्टीकरण दिखाई देता है। वहां के विकास की उपेक्षा पूर्ववत् चल रही है।
उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा की दृष्टि से इन संकटों की बिसात को देखते हुए नेपाल,  तिब्बत, श्रीलंका, बंगलादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में भारतीय मूल के लोगों के हितों का संवर्धन करते हुए उन देशों से आत्मीय संबंधों में दृढ़ता लाने की आवश्यकता है।
आंतरिक सुरक्षा
देश की आंतरिक सुरक्षा के सम्बन्ध में सरसंघचालक ने कहा कि विदेशी विचारों से प्रेरित, वहां से विविध सहायता प्राप्त कर देश के संविधान, कानून व व्यवस्था आदि की हिंसक अवहेलना करने वाली सभी शक्तियों का अब एक गठबंधन-सा बन गया है, ऐसा दृश्य देश के विभिन्न भागों में दिखाई देता है। सामान्य लोगों के शोषण, अपमान व अभाव की परिस्थिति को शीघ्रतापूर्वक दूर करना, शासन-प्रशासन का व्यवहार, उसे अधिक जवाबदेह व पारदर्शी बनाना तथा दृढ़तापूर्वक हिंसक गतिविधियों का मूलोच्छेद करना, इसमें आवश्यक शासन की इच्छाशक्ति का अभाव अभी भी यथावत् बना हुआ है। सर्वसामान्य प्रजा इन सब परिस्थितियों से ऊब गयी है, विक्षुब्ध है, वह परिवर्तन चाहती है। परंतु देश की राजनीति वोटों के स्वार्थ के चक्रव्यूह में ही खेलने में धन्यता मानकर चल रही है। इस परिस्थिति का सबसे प्रथम व सबसे अधिक भुक्तभोगी है भारत की प्रजा में बहुसंख्यक, परंपरा से इस देश का वासी हिन्दू समाज।
श्री भागवत ने बताया कि जम्मू के किश्तवाड़ में बसने वाले हिन्दू व्यापारियों की संख्या किश्तवाड़ शहर में अत्यल्प (15 प्रतिशत) है। वहां दुकानों पर सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित भीड़ ने हमला किया। राज्य सरकार के गृहमंत्री तथा वहां के पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति व उकसावे में लूटपाट व विध्वंस का यह षड्यंत्र सुनियोजित ढंग से चला। यह वही जम्मू-कश्मीर राज्य है, जहां के मुख्यमंत्री ने कुछ ही दिन पहले वहां यात्रा पर आए यूरोपीय प्रतिनिधिमंडल को यह कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय नहीं, सशर्त जुड़ाव हुआ है।  इस कथन से घाटी की राजनीति में सक्रिय उन शक्तियों की मानसिकता प्रगट होती है जो सत्ता में बैठकर तरह-तरह के अवैध कुचक्र चलाकर समूचे जम्मू-लद्दाख-कश्मीर से ही भारत की एकात्मता, अखंडता व राज्य के भारत का अविभाज्य अंग होने के पक्षधरों को क्रमश: बेदखल करना
चाहती हैं।
उन्होंने कहा, केवल सत्तास्वार्थ से मोहित होकर, आंख बंद करके देश व देशभक्तों की शक्ति कुचलने की इस कुटिल, देशघातक राजनीति का दूसरा स्पष्ट उदाहरण है हाल ही में घटी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की घटनाएं। संप्रदाय विशेष की असभ्य और असामाजिक गतिविधियों की लगातार चली घटनाओं की सत्ता समीकरणों के चलते केवल उपेक्षा ही नहीं की गई, वरन् उनको प्रोत्साहन व संरक्षण भी दिया गया। राज्य के चुनावों के पहले से ही कानून-संविधान को ताक पर रख तथाकथित अल्पसंख्यक मतों के तुष्टीकरण की स्पर्धा चली ही थी। सत्ता प्राप्ति के बाद सत्तारूढ़ दल के इशारे पर प्रशासन ने अपने अधिकारों की मर्यादा में कानून द्वारा निर्देशित कार्य करने के तथाकथित अपराध पर एक प्रशासकीय अधिकारी को निलंबित करके तथा देशभर के संतों की पूर्णत: वैध व शांतिपूर्ण अयोध्या परिक्रमा को रोककर, उसे विवादित बनाकर अपनी छद्म पंथनिरपेक्षता की आड़ में साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का खेल भी शुरू किया था। ऐसी पक्षपाती व लोकविरोधी नीति के परिणाम एक भयंकर उद्रेक के रूप में फूट पड़े, जिन पर नियंत्रण करने में शासन व प्रशासन असमंजस में पड़कर पंगु बना रहा। अब भी सत्य का सामना करने के बजाय सारी बातों का दोष हिन्दू समाज व सत्य बोलने का साहस करने वालों के माथे पर मढ़ने का, संचार माध्यमों के एक वर्ग का सहारा लेकर प्रयास चल रहा है। ऐसे सभी उपद्रवों के पीछे जो कट्टरपंथी, असहिष्णु- आतंकी प्रवृत्ति है तथा उनसे साठगांठ रख उनको बल देने वाली प्रवृत्तियां हैं उनके कारनामे तो नैरोबी के मॉल से लेकर पेशावर के चर्च तक की गईं जघन्य हत्याओं जैसी घटनाओं में सर्वत्र उजागर हो रहे हैं। परन्तु सत्ता के स्वार्थ में आंख मूंदकर चल रही राजनीति को यह सूर्य प्रकाश के समान सत्य-साक्षात् होकर भी नहीं दिखता।
दुर्भाग्य है कि देश की प्रजा को समदृष्टि से देखकर देश का शासन चलाना जिनका दायित्व है, उन्हीं की ओर से मन, वचन और कर्म से हिन्दू समाज के विरोध में अथवा तथाकथित अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिये ये चीजें हो रही हैं। देश के गृहमंत्री ने तथाकथित अल्पसंख्यक युवकों के बारे में नरमी बरतने का आदेश राज्यों के शासकों को भेजा तथा जिस प्रकार तमिलनाडु में हाल में ही घटित हिन्दू नेताओं की कट्टरपंथियों द्वारा हत्याओं की उपेक्षाओं की शृंखला की पहले उपेक्षा हुई और बाद में जांच में ढिलाई
देखी गई।

शिक्षा नीति में बदलाव आवश्यक
सरसंघचालक श्री भागवत ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर विचार करते हुए कहा कि केवल व्यापारी वृत्ति से चलने वाली आज की शिक्षा नीति में मूलभूत परिवर्तन करना आवश्यक है।  क्योंकि, इस नीति के चलते वर्तमान शिक्षा सर्वसामान्य लोगों की पहुंच से बाहर तो हो ही गई है, उसमें गुणवत्ता तथा संस्कारों का निर्माण भी बंद हो गया है। शिक्षा क्षेत्र में एतद्देशीय लोगों के उद्यम को अनुत्साहित कर, विदेशी शिक्षा संस्थाओं के अनियंत्रित संचार को आमंत्रित कर पूरी शिक्षा को ही विदेशी हाथों के सुपुर्द करने की तैयारियां चल रही हैं।
देश में महिलाओं पर अत्याचारों में वृद्घि के पीछे प्रमुख कारणों में संस्कारों का अभाव भी एक कारण है। नई पीढ़ी को उत्तम संस्कार मिलें, इसकी व्यवस्था हमारे समाज की कुटुंब-व्यवस्था में भी है। इसलिए इस दिशा में अपनी कुटुंब-व्यवस्था का अध्ययन व कुछ अनुसरण करने की इच्छा आज विश्वभर में दिखाई देती है। परन्तु कुटुंब-व्यवस्था समाज में सामाजिक सुरक्षा व सामाजिक उद्यम का कितना अहम् उपकरण रहा है, इसके अध्ययन का अभाव निश्चित रूप से दिखाई देता है।
हिन्दू समाज की अवहेलना
सरसंघचालक ने कहा कि हिन्दू समाज की अवहेलना का क्रम निर्लज्जतापूर्वक चल रहा है। इस मानसिकता के आधार पर साम्प्रदायिक गतिविधि निरोधक कानून-2011 के नाम पर सब प्रकार के गैर कानूनी प्रावधानों को लागू करने का एक प्रयास किया गया था। संविधान के मार्गदर्शन की अवहेलना करते हुए सांप्रदायिक आधार पर आरक्षण दिलाने के प्रावधान किए गए थे।  करदाताओं के धन को अपनी ऐसी पक्षपाती योजनाओं तथा भ्रष्टाचार में व्यर्थ करने वाले लोग देश के रिक्त भंडारों को भरने के लिए स्वर्ण की अपेक्षा हिन्दू मंदिरों से करते हैं। अब संपूर्ण प्रजा की श्रद्घा, पर्यावरण सुरक्षा, सागरी सीमा सुरक्षा, थोरियम जैसी मूल्यवान व दुर्लभ धातुओं के भंडारों की सुरक्षा, तटीय निवासी जनता का रोजगार आदि सबकी अपमानजनक अवहेलना की जा रही है तथा स्वयं ही के द्वारा नियुक्त समिति की अनुशंसा का अधिक्षेप कर केन्द्र शासन में बैठे लोग सत्तास्वार्थ के लिए रामसेतु को तोड़कर ही सेतुसमुद्रम् प्रकल्प पूर्ण करने पर तुले हैं।
समर्थ कुटुंब व्यवस्था
सरसंघचालक ने कहा कि समाज का संपूर्ण स्वरूप स्वयं में संजोए हुए सामाजिक संरचना की सबसे छोटी व अंतिम इकाई अपने देश में कुटुंब की मानी जाती है। समाज में जो परिवर्तन हमें अपेक्षित है, हम स्वयं के कुटुंब के आचरण व वातावरण के परिष्कार से प्रारम्भ करें।  सादगी, स्वच्छता, पवित्रता, आत्मीयता आदि का दर्शन स्वयं के कुटुंब जीवन में हो सके। अपने परिवारजनों में महिला वर्ग को हम सामाजिक दृष्टि से प्रबुद्घ व सक्रिय बनाएं। ऊर्जा, जल आदि की बचत, पर्यावरण-सुरक्षा,  स्वदेशी का व्यवहार, अन्यान्य कारणों से कुटुंब के संपर्क आने वाले सभी से आत्मीय, सम्मान व न्यायपूर्वक आचरण का उदाहरण हमारे कुटुंबियों का बने। रूढि़, कुरीति तथा अंधविश्वासों से मुक्त,  जाति, पंथ, पक्ष, भाषा, प्रान्तों के भेदों से मुक्त, समरसतापूर्ण, अहंकार रहित ह्रदय से सबका विचार व्यवहार व संचार रहें। अड़ोस-पड़ोस के निवासीजन के साथ सुख-दु:खों में संवेदनशील व सक्रिय होकर हमारा कुटुंब अनुकरणीय सामाजिक आचरण की प्रेरणा व उदाहरण बने, यह अपना कर्तव्य है।
श्री भागवत ने सामाजिक सुधार की चुनौती का आह्वान करते हुए पूछा कि अपनी इस सामाजिक पहल में सक्रिय होकर शतकों से चले दम्भ, पाखण्ड व भेद के दानव का अंत क्या हम नहीं कर सकते? हिन्दू समाज के एकरस जीवन का प्रारम्भ करने के लिए, सभी हिन्दुओं के लिए सब हिन्दू धर्मस्थान, जल के स्रोत व अंत्येष्टि स्थल खुले नहीं रख सकते? संपूर्ण समाज परस्पर आत्मीयता व भारतभक्ति के सूत्र में आबद्घ होकर खड़ा हो, उसका यही एक उपाय है। देश के तंत्र व व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन तथा उनके स्वास्थ्य के लिए भी यही एकमात्र रास्ता है। ग्राम-ग्राम व गली- मुहल्ले में इस प्रकार के आचरणों के उदाहरणों से ही सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया की गतिवृद्घि होगी।
पुरुषार्थ का संकल्प
सरसंघचालक ने पुरुषार्थ को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि देश के समक्ष बहुत सारी जटिल व विकराल चुनौतियां हैं, उन पर विजय प्राप्त करने के लिए हमें अपनी शक्ति को जागृत कर, पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करनी पड़ेगी, क्योंकि राष्ट्ररक्षण व पोषण का दायित्व प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जिन पर है, उनकी क्षमता की बात तो दूर, उनके उद्देश्यों पर ही प्रश्नचिह्न लगने की स्थिति बनी है। इसलिए हम अपने व्यक्तिगत जीवन में शक्तिसंवर्धन व जीवन परिष्कार का प्रारम्भ करें। हम अपनी दिनचर्या में शारीरिक, मानसिक व बौद्घिक बल की वृद्घि करने का नित्य अभ्यास करें। अपने भारत देश के भूतकाल का सत्य, इतिहास, गौरव, वर्तमान की यथातथ्य जानकारी, प्रामाणिक व निष्पक्ष सूत्रों से प्राप्त कर हृदयंगम करें। देश के भविष्य के संबंध में त्यागी व नि:स्वार्थी महापुरुषों के चिन्तन व उनके द्वारा अपने कर्तव्यों के संबंध में उपदेशों की समान बातों का अनुसरण करें। हम संकल्प करें कि हम जीवन की क्षमताओं को परिश्रमपूर्वक बढ़ाकर, जीवन में सब प्रकार का यश व विजय प्राप्त कर, उसका विनियोग समाज के हित में परोपकार व सेवा के लिए करेंगे।
देश के नियम-व्यवस्था का पालन करवाने का जितना दायित्व शासन-प्रशासन का है उतना ही उस नियम-व्यवस्था के अनुशासन को दैनंदिन जीवन में स्वयंप्रेरणा से आग्रहपूर्वक पालन करके चलने का दायित्व समाज का भी है। भ्रष्टाचारमुक्त शुद्घ सामाजिक जीवन का प्रारंभ भी यहीं से होता है। अनुपयुक्त नियम-कानूनों को बदलने के लिये आंदोलन आदि के अधिकार भी संविधान के दायरे में जनता को दिए गए हैं। अत: अपने सभी नागरिक कर्तव्यों  तथा नियम-व्यवस्था का पालन पूर्ण रूप से करने की आदत भी समाज में डालने का काम हमें अपने से प्रारंभ करना होगा।
स्वामी विवेकानन्द सार्धशती का स्मरण कराते हुए सरसंघचालक ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र के पुनर्जागरण की कल्पना की थी।  उन्होंने शुद्घ चरित्र, स्वार्थ व भेदरहित अंत:करण, शरीर में वज्र की शक्ति व हृदय में अदम्य उत्साह व प्रेम लेकर, स्वयं उदाहरण बन, राष्ट्र की सेवा में सर्वस्व समर्पण करने वाले युवकों के द्वारा ही अपनी पवित्र भारतमाता को विश्वगुरु के पद पर आसीन करने का निर्देश समाज को दिया था।
उन्होंने कहा कि विजयादशमी के अवसर पर अपने व्यक्तित्व की सारी संकुचित सीमाओं का उल्लंघन कर, हृदय में राष्ट्रपुरूष के भव्य स्वरूप की आराधना में सर्वस्व समर्पण का हम संकल्प लें तथा समाजहित में चलने वाले सभी कायोंर् में विवेकयुक्त व नि:स्वार्थ-बुद्घि होकर हम सामूहिकता से सक्रिय हों।
सरसंघचालक के उद्बोधन से पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में ध्वजारोहण के पश्चात् विशिष्टजन द्वारा शस्त्रपूजन किया गया। इसके बाद स्वयंसेवकों ने दंड-व्यायाम, योग आदि का प्रदर्शन किया। तत्पश्चात् कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि  डा. लोकेश चन्द्र ने अपने संक्षिप्त भाषण में भारत के इतिहास और संघभूमि की महिमा की चर्चा की। उन्होंने कहा कि शक्ति के साथ भक्ति का समन्वय हो तो हर विपरीत परिस्थिति पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्वयंसेवक व स्थानीय नागरिक उपस्थित थे। 
लखेश्वर चंद्रवंशी

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