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फैसले ना लेने के लिए कुख्यात और उस पर भी ह्यसेकुलरह्ण सरकार यदि किसी भगवा संन्यासी के सपने से जाग कर एकाएक फुर्ती में आ जाए तो इससे ज्यादा कमाल की बात क्या होगी। लेकिन, उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव में यही कमाल दिख
रहा है। स्वामी शोभन सरकार ने मंदिर के नीचे राजा के दबाए खजाने का सपना देखा, शिष्य के माध्यम से कांग्रेस के कुछ नेताओं तक बात पहुंची और दस जनपथ से प्रधानमंत्री कार्यालय तक सारी व्यवस्था जाग गई।
सदियों से दबे खजाने के लिए सबकुछ ऐसा झटपट हो जाएगा खुद डौंडिया खेड़ा के महंत जी ने नहीं सोचा होगा। सपना सच हो अच्छी बात, पूरे गांव में इस खजाने की आहट के बाद से जो सपना जगा है वह भी सच हो और भी अच्छी बात, मगर सवाल यह है कि शोभन सरकार अकेले स्वामी नहीं और उन्नाव का यह खजाना भारत का अकेला गड़ा धन नहीं। भगवा वस्त्रधारी स्वामी रामदेव वर्ष 2011 से खरबों रुपए के उस भारतीय खजाने का पता बता रहे हैं जो नामचीन लोगों ने स्विटजरलैंड के बैंकों में गाड़ रखा है। इस खजाने को खोदने में स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचारी व्यवस्था की नींव हिलती है इसलिए सरकार तब तक हरकत में आती नहीं दिखती जब तक कि खाते खाली ना हो जाएं और तथ्यों की बात सपना ना लगने लगे।
2011 की शुरुआत में ही स्विस बैंकों में पड़े भारतीय कालेधन का मुद्दा गरमाने लगा था जिस पर सरकार को कुछ बोलते नहीं बन रहा था। खबरें यह भी आईं कि राजस्व चोरी कर स्विटजरलैंड में खड़े किए पैसे के इस पहाड़ के सामने बाकी दुनिया के करचोरों का भ्रष्टाचार बौना दिखता है। दो वर्ष पहले ऐसी खबरेंं थीं कि स्विस बैंकों में करीब 14 खरब डॉलर यानी करीब 854000000000 रुपए मूल्य का भारतीय कालाधन जमा है। लेकिन जैसा कि होता है, जैसै-जैसे कालेधन पर हल्ला बढ़ता गया और खातों में जमा खजाना घटता गया। सरकार के लिए शर्म की बात यह है कि फरवरी 2012 में देश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी, केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के महानिदेशक ने खुद माना कि स्विस बैंकों में भारत का 5 खरब रुपया कालेधन के रूप में पड़ा है।
सरकार के पास दो वर्ष पहले से उन सभी नामों की सूची मौजूद है जिनका कालाधन विदेशी बैंको में जमा है लेकिन इन नामों को सार्वजनिक करने का विपक्षी दलों का आग्रह सरकार ने ठुकरा दिया और सारी कालिख श्वेतपत्र में लपेटकर रख दी।
स्विस नेशनल बैंक की ओर से जारी ताजा रपट के अनुसार स्विटजरलैंड में भारतीयों की ओर से खजाना लगातार तेजी से घट रहा है और अब यह 9000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। साधुओं के सपनों पर जागने वाली सरकार अन्य देशों से आती तथ्यों से भरी रपट पर नहीं जागती तो संदेह होता है। गांधी परिवार के दामाद वाड्रा के गोरखधंधे को सामने लाने वाले अधिकारी को जब आरोपपत्र से डराया जाता है तो संदेह पुख्ता हो जाता है और जब पूर्व कोयला सचिव पी.सी. पारेख 10 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा के कोयला घोटाले में कांग्रेस के सबसे साफ नाम, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे उंगली उठा देते हैं तो बात साफ हो जाती है। दागियों पर चलती और घपलों पर पलती व्यवस्था भारत का हर खजाना खोद निकालेगी मगर उन खातों पर ह्यहाथह्ण नहीं रखेगी जो ह्यखासह्ण नामों से जुड़े हैं।
कालेधन के मुद्दे पर विपक्षी हमले हों तो श्वेतपत्र की कुदाली चलेगी और डौंडिया खेड़ा के लिए आप जीपीआरएस से लेकर जेसीबी तक लेकर दौड़े जाएंगे यह खेल लंबा नहीं चलेगा, यह बात सरकार को समझनी चाहिए।
दरअसल, सच और सुहाते सच का फर्क ही अलग-अलग बाबाओं द्वारा सरकार को बताए खजाने का फर्क है। भ्रष्टाचार पर सार्वजनिक प्रहार करने वाले स्वामी रामदेव को रामलीला मैदान से भगाती व्यवस्था कांग्रेसी नेता के जरिए अपनी बात दिल्ली तक पहुंचाने वाले स्वामी शोभन सरकार के सपने पर कैसे दौड़ी चली आती है यह देखने-समझने वाली बात है। धन और कालेधन, खजाने और खातों के फर्क पर ही भ्रष्टाचारी व्यवस्था की सांस चलती है यह समझने का मौका हमें डौंडिया खेड़ा के बहाने मिला है। बहरहाल, भगवा वस्त्रधारी दोनों बाबाओं का धन्यवाद, खजाना बताने के बहाने आपने सरकार के दोहरे रूप के दर्शन इस देश की जनता को करा दिए हैं।
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