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पिछले दिनों, कई साल बाद, एक घरेलू कार्यक्रम में गांव जाने का अवसर मिला। बहुत दिन बाद गया था, अत: पुराने संबंध ताजा करने के लिए मैं कुछ दिन और रुक गया। एक दिन मैं अपने पुराने मित्र चंपकलाल के घर बैठा था, तभी वहां एक महिला प्रेस के लिए कपड़े लेने आई। उसके साथ दस वर्षीय एक बालक भी था। मैंने उसे एक बिस्कुट देकर पूछा – क्यों बेटा, तुम कौन हो ?
मैं तो लड़के का नाम जानना चाहता था, पर उसका जवाब सुनकर मेरा दिमाग चक्कर खा गया। उसने कहा –
हूं तो मैं जुलाहा, पर फिर हुआ दरजी
आजकल हूं धोबी, आगे अम्मा की मरजी॥
बाद में चंपकलाल ने बताया कि इसका नाम रशीद है और यह एक जुलाहे पिता की संतान है। इसके जन्म के दो साल बाद पिता की मृत्यु हो गई, तो मां एक दरजी के पास जाकर रहने लगी। कुछ समय बाद उस दरजी ने किसी बात से नाराज होकर इसकी मां को घर से निकाल दिया, तो एक धोबी ने उसे शरण दे दी। रशीद भी अपनी मां के साथ ही रहता है, इसलिए उसने ऐसा परिचय दिया है।
यह प्रसंग मुझे इसलिए याद आया कि हमारे मित्र शर्मा जी भी इन दिनों कुछ ऐसी ही मन:स्थिति में से गुजर रहे हैं। अवकाश प्राप्ति के बाद उन्होंने पूरी तरह राजनीति के कीचड़ में उतरने का निर्णय कर लिया और नगर के एक बड़े नेता वर्मा जी के साथ चिपक गये। वर्मा जी ने उन्हें अपना निजी सहायक बना लिया।
वर्मा जी का मूल मंत्र था, ह्यजहां मिलेगी तवा परात, वहीं कटेगी सारी रात़.ह्ण। यों तो वे कांग्रेसी थे, पर पिछले कुछ समय से सब ओर नमो-नमो की लहर चल रही है। इसलिए वे भाजपा की रैली में मोहल्ले से एक बस में भर कर लोगों को ले गए थे।
जब से विधानसभा के चुनावों की घोषणा हुई है, तब से शर्मा जी की व्यस्तता काफी बढ़ गई थी। उन्होंने वर्मा जी के सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर एक छोटी पुस्तक छपवाई है, जिसे वर्मा जी व्यक्तिगत रूप से मिलकर सब बड़े नेताओं को दे रहे हैं। उनकी इच्छा है कि मोदी-लहर में वे भी विधानसभा का मुंह देख लें।
शर्मा जी की इस व्यस्तता के कारण उनसे मिलना कठिन हो गया। सुबह वे जल्दी निकल जाते और रात में देर से घर आते थे। इसलिए एक दिन मैंने उन्हें घर पर ही पकड़ लिया। वे कुछ उदास से लग रहे थे। पूछने पर बोले कि भा.ज.पा़ वालों ने वर्मा जी को यह कहकर टिकट नहीं दिया कि तुम तो पुराने कांग्रेसी हो। फिर से कांग्रेस वालों के पास गए, पर वहां किसी ने यह बता दिया था कि वे नरेन्द्र मोदी की रैली में गए थे। इसलिए उन्होंने भी टरका दिया।
– तो फिऱ?
– फिर क्या, इन दिनों हम लोग केजरी आपा (आम आदमी पार्टी) के संपर्क में हैं। हो सकता है वहां से टिकट मिल जाए।
– और यदि उसने भी मना कर दिया तो ?
– तो स़पा़ है, ब.स.पा़. है। दिल्ली में लाखों बिहारी हैं, इसलिए लालू, नीतीश और रामविलास पासवान भी अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे। शरद पंवार, ममता बनर्जी और ओमप्रकाश चौटाला भी कुछ सीटों पर लड़ेंगे। कोई न कोई तो फंसेगा ही, जो हमें टिकट दे देगा।
– पर शर्मा जी, इस आयाराम-गयाराम की राजनीति से देश चौपट हो रहा है, क्या अब विचारधारा का कोई महत्व नहीं रहा ?
विजय कुमार
– तुम किस जमाने की बात कर रहे हो भाई? अब न विचार है, न धारा। अच्छा बताओ, अजीत सिंह ने अब तक कितने दल बनाये हैं? ऐसा कौन सा दल है, जिससे ममता, जयललिता और मायावती ने समझौता करने के बाद तोड़ा न हो? ऐसा कौन-सा समाजवादी है, जिसने चार-छह बार केंचुल न बदली हो? भारत में कितनी कांग्रेस और कितने वामपंथी दल हैं, यह कोई ठीक-ठीक बता दे, तो उसे एक लाख रु. का पुरस्कार दिलवा दूं।
– लेकिन शर्मा जी, आप किसके साथ हैं ?
– इसका तो भाई एक ही जवाब है, वर्मा जहां, शर्मा वहां।
मुझे अचानक अपने गांव वाला रशीद और उसका उत्तर याद आ गया – आगे अम्मा की मरजी।
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