यदा यदाहि धनस्य
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यदा यदाहि धनस्य

by
Oct 12, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2013 17:24:07

अपने बेटे को वो संस्कार मैं नहीं दे पाया जो चाहता था। उसके जीवन मूल्य वे नहीं हैं जिनकी मुझे अपेक्षा थी।  पहले समझाने का प्रयत्न करता था ,पर पुराने मुहावरे के अनुसार जबसे मेरे जूते उसके पैरों में आने लगे हैं प्राय: उसे समझाने की प्रक्रिया में मैं गुलाटी खा जाता हूं उस दिन भी ऐसा ही हुआ बेटे को गीता के उस श्लोक का उच्चारण करते सुना जिसे फिल्मी गीतों के अभयस्त उसके होंठों पर सुनने की आशा नहीं की थी। वह अखबार पढ़ते हुए बुदबुदा रहा था-ह्य यदायदाहि धनस्य ग्लानिर्भवतिभारत: अभयुत्थान धनस्य तदात्मानं सृजाम्यहम़ ह्ण।    
मैंने सुधारते हुए बताया बेटा, वह  धनस्य नहीं, धर्मस्य है़,अखबार से बिना नजरें उठाये वह बोला आप कहां रहते हैं? धर्म की चर्चा अब केवल लुप्त प्रजातियों के सन्दर्भ में होती है, मैं तो रुपये को लगातार लुढ़कता देखकर चिंतित हूं।  मेरी बीसवीं वर्षगांठ पर डालर चवालीस रुपये का था, इक्कीसवीं आते-आते इकसठ का हो गया है मेरे एम् बी ए पूरा करने तक सेंचुरी मार देगा ़विदेश जाने का मेरा सपना कहीं सपना ही न रह जाए! पर धन की अवनति जब-जब हुई है वे ही उसके अभयुत्थान के लिए आगे बढे़ हैं इस बार भी रूपये को रसातल से उबारने के लिए वे ही स्वयं आगे आयेंगे।
मैंने कहा भगवान का उपहास मत करो, उनके पास डलर-रुपये के संबंधों को सुधारने से बढ़कर कहीं महती समस्याएं हैं वह बोला मैं भगवान का नहीं उनका ध्यान कर रहा हूं जो पहले समस्याओं का पहाड़ खड़ा करते हैं फिर असीम दया के सागर में उसे विलुप्त कर देते हैं। कुछ भी उनकी इच्छा के बिना नहीं  होता ,वे ही संकट लाते हैं वे ही पार लगाते हैं तभी तो हमारे प्रधानमंत्री भी अपनी निर्धनता का दर्द उन्ही के सामने बयान उनके दरबार में करने जाते हैं ।     
मैंने पूछा कौन हैं तुम्हारे वे संकट मोचन? वह बोला वही, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्घ में पापियों को सजा दी तो उनकी मार से आहत जर्मनी को हिटलर ने समझाया कि पुराने अपमान भुलाने के लिए द्वितीय विश्व युद्घ की आवश्यकता है उन्होंने हिटलर को सुधारने के लिए दुबारा जर्मनी और उसके  मित्रों  को नेस्तनाबूद किया । फिर जर्मनी ़इटली जापान सभी की आर्थिक तबाही करने के बाद वे ही जीवनरक्षक दवाएं उनके गले के नीचे उतारने में लग गए। मैकार्थर योजना की औषधि पिला-पिला कर जापान को फिर से एक आर्थिक महाशक्ति बना दिया ।  उन्होंने  ही पहले ईराक को झूठी तोहमत लगाकर मटियामेट किया, बाद में उसी के पुनर्निर्माण में जुट गये।   वे ही पहले अफगानिस्तान में घुसे,  अब फिर वहां से निकलकर उसके अभुत्थान के सद्कार्य में लग गए हैं।   
मैंने कहा भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है जो सच्चे हृदय से अपने कर्तव्य करता हुआ मेरी शरण में आता है वही मुझे परमप्रिय है।  अगर डूबते हुए रूपये की रक्षा वही करेगा तो हमें उसकी शरण में जाना ही चाहिए ।   
बेटा मुस्करा कर बोला यही तो अंतर है कुरुक्षेत्र के पार्थसारथी में और आज के विश्व शक्ति रूपी उस संकट हारी  में ये   प्रेम के नहीं घृणा के भूखे हैं।  इन पर घुड़सवारी करते हुए इन्ही की पीठ में जो छुरा भोंकता है वही इनका प्रियपात्र बनता है भारत पचास साल पहले जब दुर्भिक्ष  के कगार पर था तो ह्यपी एल -ह्ण के अंतर्गत  लाखों  टन अनाज हमें देकर बदले में हमसे प्रेमपूर्वक लाखों गालियां सुनाते रहे। सोवियत रूस से हमने जितनी निकटता बढ़ायी उतनी ये हमें आर्थिक सहायता देने को आतुर हुए ़इन्हें पाकिस्तान परमप्रिय है क्यूंकि उसने इन्ही की भिक्षा पर जीते हुए इनके सबसे बड़े दुश्मन ओसामा को अपनी फौजी छावनी में बरसो पनाह दी। विश्वासघात खुल गया तो आई एस आई के निदेशक ने कहा ह्यहमें गर्व है कि ऐसी महाशक्ति हमारे दामन में छुपे  इस अनमोल रत्न का  पता इतने सालों के बाद लगा पाईह्ण। इस राज के खुलने के बाद भी वे पाकिस्तान को नवीनतम हथियारों से ह्यलैसह्ण करने और आर्थिक सहायता  झोंकने से कतराये नही,  इसीलिये मुझे विश्वास है कि ऐसे उदार,क्षमाशील, विशाल  हृदय    कृपासिंधु हमारे असहाय रुपये को इस तरह से  डूबने नहीं  देंगे । हमारे धन की क्षति बढ़ती रहे और साथ में हम भी उन्हें दिनरात गालियां देते रहें तो वे अवश्य ही अपनी करुणा से हमें अभिभूत करेंगें ।      
मैं अवाक रहकर अपने बेटे के पैरों की साइज देखने में लग  गया  देखा ,अब  उसके जूते में मेरे दोनों पैर समा जायेंगे।  अरुणेन्द्र नाथ वर्मा 

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