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सचिन नहीं, इसे जिंदगी की किताब कहिए

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Oct 12, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2013 16:14:34

खेल के मैदान में चमत्कारी चमक बिखेरने वाले इस इंसान को लोग क्रिकेट का भगवान करार देते हैं, लेकिन हर कामयाबी, हर कीर्तिमान के बाद आसमान की तरफ उठे हाथ बताते हैं कि सचिन के पांव हमेशा हकीकत की ठोस जमीन पर रहे, वो जानता है कि करोड़ों लोगों को चमत्कृत करने के बावजूद सर्वशक्तिमान वह नहीं कोई और है, जो ऊपर बैठा यह नजारा देख रहा है। जिन्दगी की इस किताब में श्रद्घा की सूक्तियां पढि़ए।
पाकिस्तान के खिलाफ वन डे मैच में शून्य से करिअर की शुरुआत करने वाला और बाद में रनों का एवरेस्ट खड़ा कर देने वाला यह शख्स बताता है कि नाकामी से हार ना मानने वाले ही विजेता होते हैं। शून्य से शिखर तक के दुर्गम सफर की रोमांचक दास्तान। जिन्दगी की इस किताब में सफलता के सूत्र पढि़ए।
एक दिवसीय मैच में नाबाद 200 रन बना इतिहास रचने वाले सचिन उस दिन साथी खिलाडि़यों के खाते के करीब 75 रनों के लिए भी दौड़े थे। साढ़े बाइस गज की पिच पर पौने तीन सौ रन की दौड़ और फिर तीस ओवर फील्डिंग यह विजेता जानता है कि चोटी पर बने रहने के लिए लगातार कितनी कड़ी मेहनत की दरकार होती है। जिन्दगी की इस किताब में श्रम का पहाड़ा पढि़ए।
इमरान की अगुआई वाली पाकिस्तानी टीम के तूफानी गेंदबाज जब 16 साल के बच्चे सचिन को लहूलुहान कर रहे थे तब नाक से टपकते खून और विपक्षी टीम के तमाम तानों, उलाहनों के बावजूद भी 'मी खेलेगा' की हुंकार भरता यह बच्चा क्रीज पर डटा रहा। उसे ड्रेसिंग रूम में जाकर बोतल से दूध पीने की सलाह देने वाले सूरमा तब देखते रह गए जब इस घायल बच्चे ने नामी गेंदबाजों के धुर्रे बिखेर दिए। प्रतिकूल परिस्थितिओं में हार ना मानना और दोगुनी ताकत से मुकाबला करना। जिन्दगी की इस किताब में साहस का सैलाब पढि़ए। मैच फिक्सिंग की कीचड़ चाहे कितनों के मुंह काले कर गई लेकिन सचिन बेदाग रहे। रेस का यह दमदार घोड़ा सदा देश के लिए दौड़ा, दांव के लिए नहीं। एक बार टीम मैनेजर अजीत वाडेकर को जब भारत की हार के लिए मैच के फिक्स हो जाने की भनक पड़ी तो चिंता में वे रात में ही सचिन के पास दौड़े और तब क्रिकेट के इस महानायक ने उन्हें आश्वस्त किया, 'गुरुजी बाजी नहीं पलटेगी', और अगले दिन जो हुआ वह इतिहास है। भारत की जीत पर मुहर लगने तक सचिन ने क्रीज नहीं छोड़ी। आत्मविश्वास और लाखों लोगों के भरोसे को बनाए रखने के लिए जान झोंककर लड़ने का अनूठा जज्बा। जिन्दगी की इस किताब में समर्पण का सबक पढि़ए।
2004 में विश्व विजेता अस्ट्रेलिया से भारत का मुकाबला। ब्रेड हॉज ने सचिन का विकेट लिया और कंगारू टीम झूम उठी। मैच के अंत में हॉज ने वह गेंद महानायक के आगे ऑटोग्राफ के लिए बढ़ा दी। सचिन ने हस्ताक्षर तो किए, साथ ही एक छोटा सा वाक्य भी उस गेंद पर लिख दिया, ह्यइट विल नेवर हैप्पन अगेऩह्ण उस गेंद को सहेजे हॉज ने तब से अब तक जाने कितनी बार मास्टर ब्लास्टर को गेंदबाजी की लेकिन फिर कभी सचिन रमेश तेंडुलकर का विकेट नहीं ले सके। जिन्दगी की इस किताब में आत्मविश्वास की इबारत पढि़ए।
दर्द को सहना और बढ़ते रहना। जिन्दगी का यह सबसे अहम पाठ भी इस किताब में है। 1999 के विश्वकप में केन्या के खिलाफ मैच। सचिन को पिता के देहान्त की हिला देने वाली खबर मिली। आंखों में आंसू, दिल में छटपटाहट। आंसू नहीं बहे लेकिन उस रोज तेंडुलकर के बल्ले से रनों का सैलाब बह निकला। 101 गेंदों में 140 रनों की पारी। इस पारी के बाद सचिन आकाश में दिवंगत पिता को खोजते हुए विह्वल हो उठे। जिन्दगी की इस किताब में भावनाओं का समंदर पढि़ए। इस किताब को जरूर पढि़ए, इस किताब में जिंदगी जीने का फलसफा छिपा है, इसे ध्यान से पढि़ए। इसे आपके सचिन ने बड़े जतन से लिखा है, इसे प्यार से पढि़ए।  हितेश शंकर

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