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बाटला हाउस घटना के बाद आजमगढ़ सेकुलरों का 'तीर्थ' बन गया था। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद कवाल गांव में कुख्यात गुंडे शाहनवाज कुरैशी का घर इनका नया 'तीर्थ' है। शाहनवाज, जो सालों से अपने गिरोह के शोहदों के साथ हिन्दू लड़कियों से सरेआम छेड़खानी, अपशब्द कहने, अपमानित करने और अपहरण की धमकियां देने के काम करता था, जिसकी दबंगई से कवाल के कुछ शांतिप्रिय मुस्लिम भी परेशान थे, और जो 27 अगस्त को अपने समाज विरोधी दुस्साहस का शिकार होकर चल बसा, भ्रमणकारी सेकुलर कबीले के सामने एक संत बनाकर पेश किया जा रहा है। सोनिया, राहुल, मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव आदि तमाम सेकुलर नेता मुजफ्फरनगर से सबसे पहले शाहनवाज के घर जाकर उसके पिता सलीम कुरैशी से अवश्य मिले हैं, जिसने अपने बेटे की तारीफों के पुल बांधकर उसके तमाम कुकर्म ढकने की होशियार कोशिश की है।
सभी सेकुलर नेताओं ने शाहनवाज के मारे जाने पर गहरा अफसोस जताया है। उसके तमाम गुंडे साथी, जो मलिकपुरा के गौरव-सचिन की पाशविक हत्या के जिम्मेदार हैं, 27 अगस्त की रात को गिरफ्तार किये जाने के बावजूद कथित रूप से आजम खां के निर्देश पर थाने से ही रिहा कर दिये गये थे, और इस कारण इलाके में उनका स्कूल-कॉलिज जाना बंद हो गया है। शाहनवाज के घर ह्यसेकुलर टूरिज्मह्ण पर जाने वाले नेतागण इस क्षेत्र की हिन्दू छात्राओं के अंधकारपूर्ण भविष्य के बारे में न जानते हैं, न जानने की कोशिश करते हैं, उसे बदलने की कोशिश तो दूर की बात है।
मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में हिन्दू लड़कियों से छेड़छाड़ और बदतमीजी की घटनायें यथावत जारी हैं। लगता है कवाल की घटना से कोई सबक नहीं लिया गया। 24 सितम्बर को शामली जिले के बनत और बाबरी तथा मुजफ्फरनगर जिले के खेड़ी सराय ग्रामों में तीन घटनाओं में लड़कियों के साथ मुस्लिम शोहदों ने जबरदस्ती की कोशिशें कीं। तीनों घटनाओं में पुलिस ने गैर जिम्मेदार रवैया अपनाकर मामलों को दबाना चाहा है। इससे एक दिन पूर्व मेरठ में एक हिन्दू लड़की के असफल अपहरण का आरोपी थाने से ही एक स्थानीय सपा नेता रफीक अंसारी द्वारा पुलिस गिरफ्त से छुड़ा लिया गया। पिछले माह एक सामूहिक बलात्कार के आरोपियों की पैरवी सपा जिलाध्यक्ष ने की थी।
ह्यमुस्लिम शरणार्थियोंह्ण पर निगाहें
शासन द्वारा मुजफ्फरनगर में मुस्लिम समाज को दंगा पीडि़त दर्शाने के लिए और उन पर सरकारी खजाना लुटाने के काम में शासन प्रशासन जुटा है। कुल 41 शिविर चलाये जा रहे हैं। इनमें वास्तविक दंगा पीडि़त 5 हजार से अधिक नहीं हैं। पर सहायता लगभग 50 हजार के लिए आ रही है। यही नहीं, इन शिविरों में सरकारी सहायता पाने के लिए अनेक मुस्लिम गर्भवती महिलाएं बच्चा पैदा करने भी पहुंच रही हैं, क्योंकि यहां इसके लिए प्रति प्रसव बीस हजार रुपये शासन दे रहा है। यही नहीं, इन शिविरों में दर्जनों की संख्या में निकाह भी सम्पन्न करवाये जा रहे हैं। 25 सितम्बर को शाहपुर कैंप में 27 सामूहिक निकाह हुए। प्रत्येक जोड़े को सरकार ने एक-एक लाख रुपये दिये हैं। इनमें कई नाबालिग भी हैं। अब यहां से घर लौट जाने वाले इन कथित पीडि़तों को 400 रुपये माहवार पेंशन का भरोसा भी सपा के मंत्री दिला रहे हैं। माले मुफ्त में पाने के लिए लोग अपने घर छोड़कर शिविरों का रुख कर रहे हैं।
मुआवजे के लिए
बेटे की हत्या का प्रयास
दस लाख का मुआवजा पाने के लिए समुदाय विशेष के लोग कितना गिर सकते हैं, बड़े विचित्र और अविश्वसनीय उदाहरण भी सामने आ रहे हैं। ग्राम खरदौनी में नदीम नामक युवक को उसके ही पिता व एक भाई ने घातक पिटाई कर मारना चाहा, ताकि मुआवजा मिल सके। वे तो समझे कि नदीम मर गया है, पर वह केवल अचेत था। होश आने पर उसने पुलिस को सच्चाई बता दी। बताते हैं कि नदीम का घर वालों से अक्सर झगड़ा होता था। इसलिए दंगे के माहौल का फायदा उठाने की कुचेष्टा की गयी। अब पुलिस ने धारा 307 में नदीम के बाप-भाई के विरुद्ध केस दर्ज किया है। अजय मित्तल
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