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मुजफ्फरनगर दंगा प्रकरण
मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ स्थित एक मदरसे का संचालक मौलाना नजीर, जिस पर दंगे भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज है, मुख्यमंत्री और उनके पिता मुलायम सिंह यादव का सरकारी मेहमान रहा। उसे इलाके के कई अन्य मुस्लिम मजहबी नेताओं के साथ मुख्यमंत्री ने राजकीय वायुयान द्वारा लखनऊ बुलवाया था। 28 सितम्बर को सरकारी हवाई जहाज मेरठ भेजा गया ताकि मुजफ्फरनगर-शामली के चंद शीर्षस्थ मुस्लिम मजहबी नेता मिजाजपुर्सी के लिए लखनऊ ले जाये जा सकें। इनमें मौलाना नजीर भी था। इसके खिलाफ जानसठ थाने में धारा 147, 188, 341, 353, 153 में दंगा भड़काने का मामला दर्ज है। पर जैसा समाजवादी शासन का उसूल है, आज तक कभी इसे गिरफ्तार करने की कोशिश पुलिस द्वारा नहीं की गयी। उल्लेखनीय है कि इन्हीं धाराओं में भाजपा विधायकों-सुरेश राणा व संगीत सोम- को पुलिस ने पूरी भागदौड़ कर, पूरे अमले की ताकत लगाकर, गिरफ्तार कर जेल भेजा और यही नहीं, प्रशासन ने उन पर रासुका लगायी। मौलाना नजीर के नेतृत्व में लखनऊ बुलाये गये मजहबी प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह से मिलकर मुसलमानों को आर्थिक सहायता करने, 'दंगा-पीडि़तों' को पुन: बसाने, उनकी गिरफ्तारियां न करने जैसी सोची-समझी मांगें रखीं, जिस पर पिता-पुत्र ने सहमति जतायी।
उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने मौलाना के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की प्रति संलग्न कर राष्ट्रपति व राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा है। इसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को भी प्रेषित की गयी है। डॉ. वाजपेयी का कहना है कि वे शीघ्र इस प्रकरण में कुछ चौंकाने वाले खुलासे करेंगे।
राहुल भी दंगा अभियुक्त के साथ
डॉ. वाजपेयी ने आरोप लगाया है कि तुष्टीकरण में राहुल गांधी मुलायम के प्रतिस्पर्धी हैं। जब से सोनिया-मनमोहन के साथ मुजफ्फरनगर के दौरे पर आये थे, तो उनके साथ चलने वालों में दंगों का एक अभियुक्त, जो काफी कुख्यात है, भी था। यह शख्स बसी गांव का बदलू है और उसके विरुद्ध दंगे में हत्या करने का धारा 302 में अभियोग पंजीकृत है।
एकपक्षीय कार्रवाई डाल रही आग में घी
समाजवादी सरकार निरंतर एकपक्षीय कार्रवाई कर हालात बिगाड़ने पर आमादा है। 30 अगस्त को मुजफ्फरनगर में धारा 144 के बावजूद मुस्लिमों की एक बड़ी रैली होने दी गयी थी, जिसमें बसपा सांसद कादिर राणा, विधायक नूर सलीम राणा, कांग्रेस नेता सईदुज्जमा तथा सपा नेता राशि सिद्दीकी आदि ने बेहद भड़काऊ भाषण दिये थे। प्रथम तीन व कुछ अन्य के खिलाफ रपट दर्ज हुई, पर सपाई राशिद सिद्दीकी बचा लिये गये। यही नहीं, उनकी निजी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी बढ़ा दिये गये। आरोपियों में से भी केवल नूर सलीम को पकड़ा गया, पर उन पर से गंभीर धाराएं हटा दी गयीं, इसलिए दो दिन में ही वे जमानत पर छूट गये। शेष किसी को पुलिस ने हाथ नहीं लगाया। सब खुलेआम घूम रहे हैं। पर भाजपा नेताओं को, जो 31 अगस्त की 'बहन बेटी सम्मान बचाओ महापंचायत' में शामिल थे, तंग किया गया और दो पर रासुका लगाई गई। इस समय तक रासुका में निरुद्ध 19 में 17 हिन्दू हैं।
दो पंचायतों की कथा
पहली पंचायत सम्पन्न हुई शुक्रवार 30 अगस्त को मुजफ्फरनगर शहर में। 27 अगस्त को कवाल की घटना के बाद प्रशासन ने धारा 144 लगा कर सम्पूर्ण जिले में सभा-जुलूस प्रतिबंधित कर दिये थे। पर उस दिन जुम्मे की नमाज के बाद मस्जिदों से कई हजार मुस्लिम जुलूस बनाकर खलापार के नजदीक आये और एक बड़ी सभा की शक्ल में एकत्र हुए। गर्म तकरीरें हुईं। खून की नदियां बहाने की चेतावनियां दी गयीं। पुलिस व प्रशासन के तमाम आला अधिकारी सिर झुकाये सुनते रहे। फिर जिलाधिकारी स्वयं मंच पर पहुंचे ज्ञापन ग्रहण करने। वातावरण को विषाक्त कर, कानून ताक पर रख, अपनी मूंछों पर ताव देकर कादिर राणा, सईदुज्जमा, राशिद सिद्दीकी (क्रमश: बसपा, कांग्रेस और सपा के नेता) इतराते हुए विदा हुए। बाद में प्रशासन जागा और धारा 188 आदि में कार्रवाई का दिखावा किया।
दूसरी पंचायत मेरठ जिले के खेड़ा गांव में रविवार 29 सितम्बर को हुई। भाजपा विधायक संगीत सोम पर रासुका लगाकर उरई जेल भेजने के विरोध में ठाकुर चौबीसी के चौबीस ग्रामों के बीस हजार हिन्दू इसमें उमड़ आये। उन्हें वाजिब शिकायत है कि संगीत सोम की अपेक्षा बड़ा अपराध करने वाले 30 अगस्त की सभा के नेता खुले घूमें और सोम एक दूरस्थ जेल में सड़ें। यहां भी धारा 144 द्वारा सभा प्रतिबंधित थी। पर शांतिपर्वूक सम्पन्न हो गयी, और नेतागण ज्ञापन देने अधिकारियों के पास पहुंचे। मेरठ के आयुक्त, जिलाधिकारी, एसएसपी आदि सब समीप ही थे। पर ज्ञापन लेने से इंकार किया- इस आधार पर कि यह एक 'अवैध' सभा का ज्ञापन है। लोगों ने कहा कि मुजफ्फनगर में ज्ञापन लिया गया था। जवाब में लोगों को लाठीचार्ज, अश्रुगैस और गोलीबारी मिली। और गोली चलाने वाले कई लोग सामान्य वेष में थे, पुलिस की वर्दी में नहीं। कौन थे ये? पता चला कि अपराध शाखा के कर्मचारी थे जिन्हें कभी किसी सभा को नियंत्रित करने नहीं भेजा जाता। और यहां तो सभा पूर्णत: शांत थी, नियंत्रित थी। फिर भी इन सादे वेषधारियों ने आधुनिक हथियारों, जिनमें एंटी एयरगन भी थीं, से लोगों पर फायर झोंके। एक मृतक और कई गंभीर रूप से घायल छोड़कर ये कानून के रखवाले हटे। इस बीच कई वाहन भी जलाये जा चुके थे। प्रशासन कहता है पंचायतियों ने जलाये, जनता का आरोप है कि इन सादे कपड़ों वालों ने ही सरकारी वाहन स्वयं ही फूंक डाले। सच्चाई निष्पक्ष जांच द्वारा ही सामने आ सकती है, जिसकी उम्मीद इस निजाम से तो कम से कम की ही नहीं जा सकती।
लोगों का मानना है कि सपा सरकार समुदाय-विशेष में लोकप्रिय होने के लिए हिन्दू समाज के प्रति खुली शत्रुता का बर्ताव करने पर आमादा है। पर सब मिलाकर सपा शासन के अंत की शुरुआत हो चुकी दीखती है- यह राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है। पहले जाट समाज की संस्थाओं, फिर त्यागी समाज, गुर्जर समाज और अब ठाकुर समाज की तमाम संस्थाओं ने सपा सरकार के बहिष्कार का फैसला लिया है। अब सपा के मंत्रियों-विधायकों-नेताओं के लिए जनता के बीच जाना उनकी अग्नि परीक्षा से कम न होगा। अजय मित्तल
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