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जर्मनी में स्कूल जाने वाली मुस्लिम छात्राओं के लिए स्कूल के बाकी छात्रों के साथ तैराकी सीखना जरूरी है। बर्लिन की एक अदालत ने कहा है कि उन्हें मुस्लिम होने के नाम पर तैराकी की कक्षाएं न लेने की छूट नहीं दी जा सकती। हां, अदालत ने उन्हें पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनकर तैराकी सीखने की छूट जरूर दी है। इस फैसले से यहां के मुसलमानों की भौहें तिरछी हो सकती हैं। लेकिन देश की सबसे बड़ी जन एवं प्रशासनिक अदालत ने साफ कहा है कि बच्चों की शिक्षा की देश की संवैधानिक जिम्मेदारी किसी व्यक्ति की मजहबी मान्यताओं से ऊ पर है। अदालत में स्कूल की तैराकी कक्षाओं से छूट की अपील करने वाली मुस्लिम छात्रा वैसे मूल रूप से मोरक्को की है। उसके माता-पिता उसके स्कूल के बाकी लड़कों के साथ तैराकी सीखने के विरुद्घ थे। अदालत में जब यह मामला शुरू हुआ था तब उस छात्रा की उम्र 11 साल थी। देश के करीब 40 लाख मुस्लिमों से संवाद कायम करने की इच्छुक जर्मनी की चांसलर मेरकील की सरकार ने भी पहली शर्त यही रखी है कि जर्मनी में मुसलमानों को जर्मन सीखना और यहां के कायदों के तहत घुलना-मिलना होगा। आखिर वहां भारत की केन्द्र और कई कांग्रेसी राज्य सरकारों जैसी सेकुलर सरकार तो है नहीं, जो मुस्लिम वोट बैंक की चाहत में देश के कायदे-कानूनों को तोड़-मरोड़ देने को तैयार रहे। आलोक गोस्वामी
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