हर कामना पूरी करती हैं मां
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पाञ्चजन्य के पाठकों को शारदीय नवरात्रों की शुभकामनाएं
नवरात्रि के इन दिनों अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार निम्न-लिखित अनुष्ठान करने चाहिए
1 पूजा के उपचार
पंचोपचार 1. गन्ध, 2. पुष्ष्प, 3. धूप, 4. दीप एवं 5. नैवेद्य- इनको पंचोपचार कहते हैं।
षोडश उपचार:1. आसन, 2. स्वागत, 3.पाद्य, 4. अर्घ्य, 5. आचमनीय, 6. मधुपर्क, 7.आचमन, 8. स्रान, 9. वस्त्र, 10. आभूषण, 11. गन्धाक्षत, 12. पुष्प, 13. धूप, 14. दीप, 15.नैवेद्य एवं 16. वन्दना- ये दुर्गापूजा के षोडश उपचार होते हैं। इन उपचारों से वैदिक, पौराणिक या नाममन्त्र का उच्चारण करते हुए दुर्गापूजा की जाती है।
2 मानसोपचार
ध्यानयोग से पूजा करने वाले सिद्घ कोटि के साधक या अत्यन्त अभावग्रस्त सांसारिक प्राणी मानस उपचारों से परमकल्याणी मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं, यथा-
1 ‘ऊं लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि।’
2 ‘ऊं हं आकाशत्मकं पुष्पं समर्पयामि।’
3 ‘ऊं मं वाय्वात्मकं धूपमाघ्रापयामि।’
4 ‘ऊं रं वर्ह्यात्मकं दीपं दर्शयामि।’
5 ‘ऊं वं अमृतात्यकं नैवेद्य निवेदयामि।’
इन मन्त्रों से मन में पंचोपचार की भावना से मानस-पूजा की जाती है।
3. जौ बोना
पूजाघर या कमरे के ईशानकोण में भूमि पर स्वस्तिक बनाकर तीर्थों की मिट्टी या शुद्घ मिट्टी में गोबर मिला कर मन में मां जगदम्बा का स्मरण करते हुए जौ बोये जाते हैं।
नवमी के दिन यदि जौ के ज्वारे सीधे, कोमल एवं सफेद रंग के हों तो शुभ और टेढ़े-तिरछे या काले हों तो अशुभ होते हैं।
4. कन्यापूजन
नवरात्रि एवं दुर्गापूजा के अनुष्ठान में दो वर्ष की आयु से दस वर्ष की आयु वाली नौ कन्याओं का एक बटुक के साथ पूजन किया जाता है। कन्या पूजन में सर्वप्रथम कन्याओं के पैर धोकर उत्तर आसन पर बैठाकर हलवा, पूड़ी, चना एवं अन्य व्यंजनों से उनको जिमाया (भोजन कराया) जाता है। फिर उनके चंदन, कुंकुम, अक्षत से बिन्दी लगाकर सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, आभूषण, अलंकार एवं दक्षिणा देकर कृत्कृत्य भाव से विदा किया जाता है।
5 दुर्गापाठ की विधि
नवरात्रि में दुर्गापाठ की महिमा सर्वोपरि है। इस पाठ में सर्वप्रथम कवच, अर्गलास्तोत्र एवं कीलक के पाठ के बाद नवार्णमन्त्र का जाप, फिर सप्तशतीन्यास के साथ श्रीदुर्गासप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ और बाद में उत्तर न्यास, देवीसूत्र, नवार्णमन्त्र का जाप और तीनों रहस्यों का पाठ किया जाता है।
6 दश महाविद्या
आगमशास्त्र में अविद्या, विद्या एवं महाविद्या- ये तीनों शब्द पारिभाषिक हैं। जो सांसारिक कार्यों में हमारी सहायता करती है, उसे ‘अविद्या’ कहते हैं। जो ‘मुक्ति’ का मार्ग बताती है वह ‘विद्या’ कही जाती है। जो भोग एवं मोक्ष दोनों देती है, उसको ‘महाविद्या’ कहते हैं। शाक्ततन्त्रों के अनुसार 1 काली, 2 तारा, 3 छिन्नमस्ता, 4 त्रिपुर भैरवी, 5 धूमावती, 6 बगलामुखी, 7 षोडशी, 8 भुवनेश्वरी, 9 मातंगी एवं 10 कमला- ये दश महाविद्या कहलाती हैं।
7 नव दुर्गा
कालाभेद एवं लीलाभेद से मां दुर्गा के दौ अवतारों को नवदुर्गा कहते हैं- 1 शैलपुत्री, 2 ब्रह्मचारिणी, 3 चन्द्रघण्टा, 4 कूष्माण्डा, 5 स्कन्दमाता, 6 कात्यायनी, 7 कालरात्रि, 8 महागौरी एवं 9 सिद्घिदात्री- मां दुर्गा के नौ अवसर ‘नवदुर्गा’ कहलाते हैं।
8 नवरात्र में आहार
नवरात्र के व्रत एवं अनुष्ठान में निराहार रहना सर्वोत्तम है। यदि ऐसा संभव न हो, तो फलाहार किया जा सकता है। फलाहार में फल, दूध, दही, मावा, मिश्री, कूटू एवं सिंघाड़े के आटे से बने पदार्थ ग्राह्य होते हैं। यदि फलाहार भी संभव न हो, तो एक समय ‘हविष्यान्न’भोजन में लिया जा सकता है। शुद्घ, साविक एवं शाकाहारी भोजन को हविष्यान्न कहते हैं।
आपका व्रत है…
आखिर नवरात्र हैं। हममें से तमाम लोग उपवास पर हैं। बाजार में उपवास वालों की खासी पूछ है- बड़े-बड़े रेस्त्रां में नवरात्र व्रतधारियों के लिए विशेष महंगी थाली की व्यवस्था है। हल्दीराम से लेकर तमाम बड़े मिठाई निर्माताओं ने नमकीन और नाश्ते के लिए एक से एक स्वादिष्ट सामग्री प्रस्तुत कर रखी हैं। घरों में व्रत रखने वालों के लिए क्या-क्या नहीं बन रहा। रसोई में ऐसी अच्छी चीजें आम दिनों में कहां दिखाई पड़ती हैं। असल में उपवास रखने के दौरान हम सामान्य खाना नहीं खाते लेकिन उससे कहीं अधिक पौष्टिक और गरिष्ठ खाना खा बैठते हैं। पूड़ी, हलवा और मेवे की खीर, और वह भी भरपूर मात्रा में! हालांकि लिखा-सुना यही जाता है कि उपवास के दौरान फलाहार थोड़ी मात्रा में लेना ही श्रेयस्कर है।
उपवास किया क्या?
हमने भोजन न करने को उपवास मान लिया है। क्या इसका उपवास से जरा भी संबंध है? संस्कृत में उपवास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘उप’ और ‘वास’। उप का अर्थ है ‘पास’ और वास का अर्थ है ‘रहना’। हम ईश्वर के पास होने का आनंद लें, उपवास तभी सार्थक है। खानपान नियंत्रण इसी के निमित्त साधन मात्र है।
झूमेंगे, नाचेंगे, गाएंगे
एक संपूर्ण आनंद उत्सव है नवरात्र। पूजा के साथ-साथ मस्ती का ऐसा उत्सव कि युवाओं की भीड़ उससे सराबोर हुए बिना नहीं रह पाती। एक महीना पहले से नवरात्र की तैयारी शुरू हो जाती है। शाम से रात तक चलता है युवाओं की मस्ती का सिलसिला। डिस्को से डांडिया तक, कितने सारे भव्य आयोजऩ.. कहां जाएं और किसे छोड़ें।
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