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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मतदाता को ह्य राइट टू रिजेक्टस ह्ण यानी चुनाव में उम्मीदवार को नकारने का अधिकार दे दिया है। न्यायालय ने वोटिंग मशीन में इसके बटन की व्यवस्था करने को कहा है। इस फैसले के बाद यदि चुनाव में मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो वह वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नन ऑफ द अबोवह्ण यानी उपरोक्त में कोई नहीं के विकल्प पर मुहर लगा सकता है। मुख्य न्यायाधीश पी़ सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि संविधान एक व्यक्ति को वोट डालने का अधिकार और उसको खारिज करने का अधिकार देता है, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है। उल्लेखनीय है कि यह याचिका पिछले नौ साल से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित थी। इस वर्ष 29 अगस्त को न्यायालय ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था, जबकि सरकार ने विरोध। दो साल पहले अन्ना ने अनशन के दौरान भी यह मांग की थी। उनका कहना था कि 'राइट टू रिकॉल' और 'राइट टू रिजेक्ट' जैसे अधिकारों से जनप्रतिनिधियों को सीधे तौर पर नियंत्रित किया जा सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इसे एक सराहनीय कदम बताया और कहा कि इस आदेश को आने वाले चुनावों में लागू किया जाना चाहिए।
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