अम्मा
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मेहनत मजदूरी करने में,
कभी नहीं शरमाई अम्मा।
ठाठ-बाट औरों के देखें,
फिर भी ना भरमाई अम्मा।
पूरे घर में झाडू देकर,
मन्दिर भी हो आई अम्मा।
कभी किसी पे गुस्सा ना हो,
मन में रखे समाई अम्मा।
पूरा घर जब खा पी लेता,
फिर चौके में आयी अम्मा।
बचा खुचा वह खुद खा लेती,
नहीं जुबां पर लायीं अम्मा।
बच्चे जब बीमार हुए तो,
कभी नहीं सो पाई अम्मा।
बच्चों के दुख मुझको दे दो,
यह अरदास लगाई अम्मा।
मेहमां जब कोई घर आया,
कभी नहीं अलसाई अम्मा।
आस-पास का करके चलती,
सबके दिल में छाई अम्मा।
बाबू की आमदनी कम थी,
फिर भी ना घबराई अम्मा।
एक आंख में दवा डालकर,
पूरी उमर बिताई अम्मा।
बच्चे इसके पढ-लिख जाएं,
गिरवी सब रख आई अम्मा।
दो धोती में बरसों काटे,
कभी नहीं झल्लाई अम्मा।
पोते-पोते जब भी चिपटे,
फूली नहीं समाई अम्मा।
आंगन में दीवार उठी तो,
आंखें भर-भर लाई अम्मा।
जीवन अपना होम कर दिया,
और रोशनी लाई अम्मा।
उसने तो सबको पाला था,
सबसे ना पल पाई अम्मा।
लाख विपत्ति घर पर आईं,
फिर भी ना मुरझाई अम्मा।
अब भी औरों से अच्छे हैं,
बात यही समझाई अम्मा।
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